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शनिवार, 16 जनवरी 2010

सांझा चूल्हा

आज बहुत दिनों बाद कार से पंजाब जाते हुए, सड़क के किनारे बने एक ढ़ाबे पर तन्दूर की गर्मा-गर्म रोटी खाने को मिली तो बचपन के दिन याद आ गये। उन दिनों घरों में अक्सर लोग अंगीठी और स्टोव जला कर ही काम किया करते थे। शाम को मुहल्ले के कुछ घर मिलकर एक तन्दूर जलाते थे, जिससे सब परिवार मिलकर रोटियां बनाते थे। औरतें और बच्चे शाम से ही इकट्ठे होकर देर रात तक वहीं महफिल लगाये रहते थे। उधर घर के सब बुजुर्ग और मर्द मिलकर कालोनी और समाज की समस्याओं पर गौर करते और उन्हें सुलझाने का कोई न कोई रास्ता खोजते।
अकेले आदमी का जीवन कोई जीवन नहीं होता, हर समय एक खालीपन सा खाने को दौड़ता है। वो क्या कमाता है, क्या खाता है, कब आता है कोई पूछने वाला नहीं होता। इंसान अकेला रहते हुए कितना भी पैसा कमा ले लेकिन उस पैसे से सुख नही ले सकता। होटल का खाना कुछ दिन तो जरूर अच्छा लगता है, फिर मां के हाथ की बनी रोटी खाने को मन तरसता है। यहां तक की अपने सुख-दुख को भी किसी से नहीं बांट सकता। परिवार में एक सदस्य के आने से ही पूरी दिनचर्या ही बदल जाती है। लेकिन साथ ही जिम्मेदारियों का बोझ भी बढ़ जाता है। कुछ लोग तो घर के छोटे सदस्याें को अच्छे संस्कार देकर एक अच्छा नागरिक बनाने की जी तोड़ कोशिश करते है। लेकिन वहीें दूसरी ओर कुछ स्वार्थी लोग सारा जीवन अपने लोभ और मोज मस्ती में ही उलझे रहते हैं।
परिवार को एक माला की तरह जोड़कर रखने में सब सदस्यों का अहम किरदार होता है। जहां छोटे सदस्याें को चाहिये, कि वो बुजुर्गों का आदर सत्कार करें, वही घर के बड़े सदस्याें को जरूरत है छोटे बच्चों की हर बात को गौर से सुनें। किसी बात को मानना या न मानना एक अलग बात है, लेकिन बिना किसी की बात को सुने उसे डांट कर चुप करा देने से घर के सदस्यों में एक आक्रोष सा पनपने लगता है। अगर प्रेशर कुकर में से भी साथ साथ भाप न निकाली जाए तो उसके फटने का डर बना रहता है। अधिकतर परिवारों में किसी विषय पर खुलकर बात न करने की वजह से ही कलेश पनपते हैं।
जहां एक और विज्ञान की तरक्की ने हमारे जीवन को सुखमय बनाया है, वही सांझे चूल्हे की विरासत को खत्म करने में भी इनका बहुत बड़ा योगदान है। युवा पीढ़ी अपने आपमें इतनी मस्त है, कि उसे जब तक पैसों या किसी चीज की जरूरत न हो वो घर के दूसरे सदस्यों से बात करना भी जरूरी नहीं समझते। हमारे बच्चे यह भी भूल गये हैं कि घर का हर सदस्य एक दूसरे का पूरक होता है, और सयुंक्त परिवार में परेशनियां कम और जीवन अधिक आनन्दमयी होता है।
अमरीका दुनिया का सबसे प्रगतिशील और ताकतवर देश होते हुए भी पारिवारिक मूल्यों में भारत से पिछड़ा हुआ है। उनके अपने आकड़ों के हिसाब से यहां पर लोग औसतन शादीशुदा जिन्दगी आठ से दस साल ही निभा पाते हैं, नतीजतन सबसे अधिक तलाक। अब कुछ अरसे से विदेशो के इस प्रकार के ग्रहण हमारे देश में भी दिखाई देने लगे हैं। नयी पीढ़ी में सब्र और धैर्य की कमी होती जा रही है। परिवार के सदस्यों के साथ समय बिताना उनको एक बोझ सा लगता है। मौज मस्ती के नाम पर उन्हें आजादी ज्यादा पसंद है।
आज के समय में यह काम थोड़ा मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं है, कि हम लोग ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी, जात-पात और अन्य छोटी-छोटी बातों के भेदभाव मिटाकर एक सांझे चूल्हे का निर्माण करने की कोशिश करना चाहें तो सब कुछ हो सकता है। जौली अंकल तो इस बात से हैरान है कि अगर कुछ लोग एक मैखाने में सभी भेदभाव मिटाकर अपने खुशी और गम आपस में बांट सकते हैं, तो सब बुध्दिजीवी मिलकर एक संगठित समाज में सांझे चूल्हे का निर्माण क्यूं नहीं कर सकते?         

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