एक बार एक टीचर ने क्लास में बैठे बच्चो से यह पूछ लिया कि क्या कोई यह बता सकता है कि भगवान कहां रहते है? गप्पू ने झट से जवाब देते हुए कहा कि भगवान तो हमारे बाथरूम में रहते है। टीचर को ऐसा अजीब अटपटा सा जवाब सुन कर बहुत ही हैरानगी हुई, लेकिन उसने अपना संयम बरकार रखते हुए गप्पू से पूछा कि तुम्हें यह सब कुछ किस ने बताया? उस बच्चे ने बड़ी ही मासूमयित से जवाब देते हुए कहा कि आज सुबह जब मैं बहुत देर से अपने बाथरूम में बैठा था तो मेरी मम्मी ने सारे घर में मुझे ढ़ूंढने के बाद बाथरूम में आते ही बोली कि है भगवान तुम यहां बैठे हुए हो।
भगवान के बारे में कोई कुछ जानकारी रखता है या नही इस मुद्दे पर गहराई से विचार करने की जगह अक्सर लोग अपनी-अपनी समझ और बुद्वि अनुसार तर्क देने लगते है। एक और कुछ लोगो का मानना है कि अंधविश्वास का दूसरा नाम ही भगवान है, वहीं कुछ लोगो का मानना है कि जब कभी हमारे जीवन में किसी प्रकार का कष्ट या डर आता है तो उसी कारण हमें भगवान की याद सताने लगती है। संसार में हम हर चीज को पहले अच्छी तरह से देख परख कर फिर उस पर विश्वास करते है, लेकिन भगवान के मामले में ऐसा करना मुमकिन नही होता। जिस प्रकार हमनें आज तक हवा को नही देखा, बिजली के तार से बिजली को आते-जाते नही देखा, ठीक उसी तरह हमें भगवान पर बिना देखे ही उस पर विश्वास करना पड़ता है।
पश्चिमी देशो में रहने वाले अधिकाश: लोग अपना जीवन मौज मस्ती में केवल इसलिये गुजार देते है क्योंकि उनके विचार से भगवान नाम की कोई चीज इस दुनियां में है ही नही। ज्ञानी लोगो का मानना है कि ऐसे लोगो का मन ही रोगी होता है। जैसे-जैसे मन पर रोग का बोझ बढ़ने लगता है तो उस रोग का असर शरीर पर शुरू हो जाता है। आमतौर पर हम सभी शरीरिक रोगो को तो देख लेते है और उसका इलाज शुरू करवा देते हैं लेकिन मन के रोगो को जानते हुए भी हम उस की तरफ ध्यान नही देते।
हमारे समाज में लोग अक्सर यही कहते है कि जवानी तो मौज मस्ती के लिये बनी है। पाठ पूजा तो हम बुढ़ापे में भी कर लेगे। वो शायद यह सब इसलिये कहते है क्योंकि बुढ़ापे में हमारा शरीर हमारा साथ नही देता और हमारा हर अंग दर्द से दुखने लगता है। क्या भगवान सिर्फ दुख दर्द के समय ही हमें याद आता है। क्या सारे ज्ञानी और विद्ववानों को ज्ञान की रोशनी सिर्फ बुढ़ापे में ही दिखाई देती है। ऐसा नही है सच्चे भक्त छोटी उंम्र से ही भगवान के नाम के दीवाने हो जाते है। भगत प्रहलाद, धुव्र, सिख धर्म से जुड़े बाबा बुव जी इत्यदि इसके जीते जागते उदारण है।
इंसान की अनेक कमियों में से सबसे बड़ी कमी यह भी है कि वो सिर्फ उसी बात या रिश्ते को मानता है, जिसे हमारा दिल खुशी-खुशी स्वीकार करता है। जिस बात को हमारा मन नही मानता उस रिश्ते को निभाने के लिये हम लोग अनेको प्रकार के ढोंग रचते है। हम अपने प्रियजनों को चाहे वो हमारा बेटा, बेटी, मां-बाप या अन्य कोई रिश्तेदार हो उसे झट से कबूल कर लेते है, क्योंकि इस रिश्ते को मानने में हमारा मन हमारे साथ होता है। बरसों तक लगातार गुरूद्ववारे, मंदिर और दूसरे धार्मिक स्थानों पर माथा रगड़ने के बाद भी हमारा मन कई बार भगवान के होने पर शक करने लगता है। ऐसे में हमारा मन प्रभु को प्रभु समझ कर फिर भी नही मानता। कई लाखों-करोड़ो लोगो में से कोई एक अपने आप को सम्पूर्ण तौर पर भगवान को समर्पित करता है।
भगवान को पाने की सबसे आसान राह है कि धन सदैव उस का देखो जो तुम्हारे से गरीब और पिछड़ा हुआ है। धर्म उस का देखो जो तुम्हारे से बहुत आगे है, इसी से हमारे मन में भगवान के प्रति आस्था और श्रद्वा बढ़ती है। परन्तु आदमी मन की बात को न मान कर अक्सर बिल्कुल इसके उल्ट देखता है। हम धन तो उसका देखते है जिसका हमारे से अधिक है और धर्म उसका जो अभी हमारे से इस राह में बहुत पीछे है। इन्ही कारणो से हमारे अंदर लोभ और अंहकार पैदा होता है।
हर समय संसारिक वस्तुओ को देखते-देखते हो सकता है कि परमात्मा पहली नजर में हमें अंधविश्वास लगे, क्योंकि जिसे आज तक हमने देखा ही नही उसके ऊपर पूर्ण रूप से मन कैसे विश्वास कर ले? परन्तु जैसे ही हमारा दिल परमात्मा पर भरोसा दिखाता है, उसी पल हमारी आत्मा का मेल परमात्मा से हो जाता है। जिस दिन आपका मन भगवान के होने पर शक करना छोड़ दे तो उस दिन से आप समझना कि धर्म के मार्ग पर मुनाफे की और जा रहे हो। सच्चे भगत हर प्रकार के हालात में भगवान से कभी भी अपना भरोसा खत्म नही होने देते।
यह सच है कि मोह-माया सबको मोहित करती हैे, परंतु सच्ची बात तो यह है कि भगवान के भक्त से वह भी हारी हुई है। आप यदि मानसिक शंति का आनंद प्राप्त करना चाहते हो तो अपने मन को व्यर्थ की उलझनों में कभी मत फंसने मत दो। भगवान के करीब पहुचने के लिये हमें सबसे पहले अपने मन के नजदीक आने की जरूरत होती है। जौली अंकल का विश्वास तो यही कहता है कि भगवान को ढूंढने के लिये दर-दर भटकने की जरूरत नही, भगवान तो हमारे मन में ही बसता है क्योकि हमारा मन भी एक मंदिर ही है।
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