Life Coach - Author - Graphologist

यह ब्लॉग खोजें

फ़ॉलोअर

शनिवार, 16 जनवरी 2010

स्वर्ग - नर्क

एक दिन बंसन्ती ने वीरू से कहा कि मैने सुना है कि स्वर्ग में पति-पत्नी इक्ट्ठे नही रह सकते। वीरू ने कहा, कि मैं इस बारे में कुछ अधिक तो नही जानता लेकिन मुझे लगता है, कि जिस किसी ने भी तुम्हें यह बताया है, उसने बिल्कुल ठीक ही कहा है। बंसन्ती ने हैरान होकर पूछा कि तुम ऐसा क्यूं कह रहे हो? वीरू ने हंसते हुए कहा यदि स्वर्ग में भी पत्नीयां साथ रहने के लिये आ जायेगी तो उसे स्वर्ग कौन कहेगा? स्वर्ग में भी यदि हर रोज पति-पत्नी का झगड़ा चलता रहेगा तो स्वर्ग और नर्क में फर्क ही क्या बचेगा। दुनियां का सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि मनुष्य प्राणियों को यम के पास जाते हुए रोज देखता है और फिर भी सदा इस दुनियां में रहना चाहता है। दुनियां का हर आदमी स्वर्ग में तो जाना चाहता है लेकिन कोई भी आदमी कभी भी मरना नही चाहता।
दुनिया के वैज्ञानिक खोज करते-करते आज तकरीबन आकाश, पताल और हर ग्रह के बारे में हर प्रकार की बारीक से बारीक जानकारी हासिल कर चुके है। लाखों करोड़ो साल पहले से अभी तक किस ग्रह की क्या स्थिति है, उसकी सूरज-चांद और धरती से सही दूरी, दिशा और वहां के सभी तथ्यों आदि का सारा ब्योरा इन लोगो के कम्पूयटर में जमा है। सैंकड़ो सालों से ग्रहों के बारे में ढेरो जानकारी इक्ट्ठी करने वालो ने क्या कभी यह जानने का प्रयास किया है कि सदियों से सबसे अधिक चर्चा में रहने वाले स्वर्ग और नर्क कहां स्थित है? यह ब्रंहाम्ड के किस भाग के हिस्से में है? वहां के हालात कैसे हो सकते है? स्वर्ग और नर्क में किस तरह के लोग रहते है? यह एक ऐसा रहस्य है, जिस बारे में आज तक कोई भी खोज करने वाला दावे के साथ कुछ नही कह पाया। इस संसार में हम हर चीज को पहले देखते, परखते है फिर विश्वास करते है, परन्तु स्वर्ग-नर्क जिसे दुनियां के किसी शक्स ने आज तक नही देखा उस की सच्चाई को हर कोई पूर्ण रूप से सत्य मानता है।
हम यदि अपने आस-पास गौर से देखे तो पायेगे कि स्वर्ग-नर्क किसी और लोक में नही इसी धरती पर ही मौजूद है। इस बात को हमारा मन इतनी आसानी से मानने वाला नही है, लेकिन तथ्यों से मुंह भी तो नही मोड़ा जा सकता। स्वर्ग-नर्क की परिभाषा को समझने की कोशिश करे तो स्वर्ग का नाम मन में आते ही जीवन में हर प्रकार की खुशीयों के साथ परिवार में सभी सुख-सुविधाओं की और ध्यान जाता है। घर के सभी सदस्यों के लिये इच्छानुसार अच्छा खान-पान, मान-सम्मान और धन दौलात के अंभारो का पाकर हर कोई अपने आप को स्वर्ग में रहते हुए महसूस करता है।
दूसरी और नर्क का नाम सुनते ही हमारी आत्मा तक कांप उठती है। एक बच्चा जिसका जन्म सड़क के किनारे फुटपाथ पर होता है। सारी उंम्र सर्दी-गर्मी, हर तरह के मौसम और जमाने की मार सहते हुए फटे हाल दो वक्त की रोटी के लिये दर-दर भटकता है। बीमारी और चोट आदि लगने के कारण एक दिन उसी फुटपाथ पर भूखे पेट दम तोड़ देता है। क्या यह सब कुछ किसी नर्क से कम है? किसी भी चीज को समझने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है, किन्तु उसे महसूस करने के लिए अनुभव की आवश्यकता होती है। आपने अपने जीवन में कई बार देखा होगा कि एक ही समय, स्थान में दो अलग-अलग बच्चो का जन्म एक को राजा और दूसरे को रंक बना देता है। सड़क किनारे पैदा होने वाले बच्चे का इसमें क्या दोष हो सकता है? महापुरषो की वाणी पर गौर करे तो इन सब के लिये हमारे जन्मों-जन्मों के कर्म ही हमें स्वर्ग या नर्क का भागीदार बनाते है।
ऋृषि-मुनी तो सदीयों से मनुष्य जाति को समझाते आये है कि एक बार जब हम मनुष्य जीवन पा लेते है तो दिनभर खाना खाकर और रात को चैन की नींद सोने को ही जीवन का असली सुख समझने लगते है। अपने सुखों में डूब कर हम किसी भी नेक कार्य करने की और ध्यान नही देते। पैसो की चमक-दमक और खनक के आगे हम भगवान को भूल कर अपनी वाणी पर भी काबू नही रख पाते, तो आने वाले समय में हमें स्वर्ग जैसा सुख कहां से मिलेगा? अपने जीवनकाल में हम सदा दूसरों को ही आंकते रहते है, यदि सच्ची खुशी पानी है तो पहले अपने आप को आंकना भी सीखना होगा। जिस प्रकार किश्ती में एक सुराख होने पर भी वो डूब जाती है, ठीक उसी तरह हमारे जीवन का एक अवगुण हमें स्वर्ग की राह से नर्क की और धकेल देता है।
विद्ववान लोगो का मानना है कि जब तक हमारे कर्म मन का हिस्सा नही बनते, तब तक वो एक धार्मिक पांखड से अधिक कुछ नही होते। केवल शरीरिक रोग ही नही लोभ, मोह, अंहकार जैसे मानसिक रोग भी हमें स्वर्ग रूपी जीवन जीने में बाधा खड़ी कर सकते है। जिस तरह भगवान के रहने का कोई एक खास देश या स्थान नही होता, ठीक उसी तरह स्वर्ग-नर्क भी दुनियां के किसी नक्शे में नहीं देखे जा सकते। जौली अंकल की राय तो यही बताती है कि जितनी मेहनत से लोग नर्क की औरं जाते है, उससे आधी मेहनत करने पर वो अपने जीवन को स्वर्ग बना सकते है।   

कोई टिप्पणी नहीं: