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शनिवार, 16 जनवरी 2010

कितना बदल गया इंसान

कुछ दिन पहले हमारे पड़ोस में रहने वाले मिश्रा जी की पांव फिसलने से टांग टूट गई। अच्छे पड़ोसी और हमदर्दी के नाते हम भी उनका हाल चाल पूछने चले गये। वहां पहुंचते ही हमारी मुलाकात उनकी एक बर्जुग महिला रिश्तरेदार से हो गई। वो औरत पास के ही एक गांव से मिश्रा जी का हाल चाल पूछने आई थी। नाश्ते के दौरान वह औरत मिश्रा जी से एक ही बात कहे जा रही थी कि जब से तुम्हारी चोट का पता लगामुझे तुम्हारी बहुत चिंता हो रही थी। मिश्रा जी ने उन्हें समझाते हुए कहा कि सब कुछ ठीक ठाक है। डॉक्टर ने टांग पर प्लास्टर चढ़ा दिया हैदो-चार हफतें में मै फिर से चलना फिरना शुरू कर दूंगा। इसमें इतनी घबराने वाली कोई बात नही है। उस औरत ने कहा यह सब कुछ तो मैं भी समझती  हूँलेकिन मुझे तो इस बात की फिक्र सता रही थी कि कुछ दिनों में तेरा प्लास्टर खुल जायेगा और मेरे से तेरा हाल-चाल पूछने आया नही जा रहा। वैसे मैने यहां आने से पहले अपने गांव के एक बहुत ही पहुंचे हुए बाबा के डेरे में तुम्हारे जल्द ठीक होने की प्रार्थना करवा दी थी। हमारे बाबा तो इतने पहुंचे हुए है कि उनकी कही हुई हर बात चुटकियों में पूरी हो जाती है।
हमारे जीवन में जब कभी हमें कोई दुख या परेशानी सताती है तो हमारे सभी रिश्तेदार और शुभंचिंतक हमदर्दी जताने के लिये अपने चेहरे पर एक सुंदर सा मुखोटा लगा कर ऐसा नाटक करते है कि हमारे दुख का दर्द हमसे अधिक उन्हें हो रहा है। हमारी परेशानी चाहे किसी भी मसले से जुड़ी होइसकी परवाह किये बिना हर कोई किसी न किसी साधूबाबाफकीर एवं टोने-टोटके करने वाले के पास जाने के लिये पल भर में सुझाव दे डालते हैं। इतना ही नहीहमारे हमदर्द शेखी बघारते हुए ऐसे सभी लोगो को भगवान का दर्जा देने से भी परहेज नही करते। कुछ लोगो का मानना है कि आप एक बार हमारे बाबा की शरण में आ जाओआपकी यह परेशानी तो क्याआप के जन्मों-जन्मों के कष्ट सदा के लिये छूमंतर हो जायेगे। बाबा तो साक्षत भगवान का रूप है। बड़े-बड़े नेता और मंत्रीगण तक उनके पांव छूने के लिये तरसते है। देश-विदेश के बहुत से रईस लोग पूजते है। इन्हें लाखो रूप्ये तो विदेशों में बसे भक्तो से आते रहते है।
जब हमारे जैसे चाहने वाले ही इन्हें भगवान का दर्जा देते हुए नही थकते तो इस तरह के ढोंगी लोगो को भगवान बनने में क्या परेशानी हो सकती हैछल-फरेब से दुनियां को ठगने और मूर्ख बनाने वाले ऐसे भगवान इस गौरख धंधे को एक धर्मिक व्यापार से अधिक कुछ नही समझते। हैरानगी की बात तो यह है कि अनपढ़ लोगो के साथ समाज का एक बहुत बड़ा पढ़ा लिखा वर्ग भी ऐसे लोगो के जाल में फंसता चला जाता है। छोटे गांवकस्बो से लेकर बड़े शहरों तक लाखों लोग इनके बहकावे में आकर अपनी गाढ़ी कमाई से इनके डेराें और आश्रमों को चमकाने में लग जाते है। सोच कर बहुत अजीब सा लगता है कि मोह माया के लोभी जो खुद अपने प्राण्ाों की रक्षा नही कर सकतेअपने लिये एक-एक वस्तु अपने भक्तो से मांगते हैवो किसी इंसान को क्या दे सकते है?
जब कभी जीवन में कुछ भी पाना हो तो केवल अपने ईश्वर से मांगेक्योंकि सारे जगत का पालनहार एक मात्र भगवान ही है। लेकिन अफसोस तो उस समय होता है जब यह देखने को मिलता है कि हमें तो भगवान से मांगने की तहजीब तक नही है। हम सभी अपने सुखों को ध्यान में रख कर अपनी शर्तों एवं सुविधानुसार भगवान से इस तरह मांगते हैजैसे कोई सेठ कर्जदार से अपना कर्ज वसूल करता है। अब किसी पेड़ से फल या छाया मांगने की बजाए यदि पूरे पेड़ को ही मांग लिया जाये तो खुद-ब-खुद हमें सब कुछ मिल सकता है। ठीक उसी प्रकार हम भगवान के आगे छोटी-छोटी मांगे रखने की बजाए यदि भगवान को ही मांग ले तो हमारे जन्म जन्म के दुख-दर्द सदैव के लिए खत्म हो सकते है। लेकिन कड़वी सच्चाई तो यह है कि हम में से अधिकर लोग प्रभु को पाना ही नही चाहते।
जब भी कोई सच्चे मन से भगवान को पाना चाहे तो उसे भगवान मिल सकते हैपरन्तु सत्य बात तो यही है कि हम उसे पाना तो दूर उसके नजदीक भी जाना नही चाहते। यह जानते हुए भी कि मुसलमानों का अल्लाहईसाईयों का गॉड और ंहिंदुओ का ईश्वरसिखो का वाहिगुरू सभी एक ही जोत है हम उसे धर्मजातिभाषा और क्षेत्र के मुताबिक बांटते जा रहे है। भगवान को यदि पाना ही है तो उसे पाने के लिये किसी ऐसे ज्ञानी को ढूंढे जो उसकी भक्ति के रस में डूबा हो न की हम उन लोगो के पीछे भागे जो खुद को भगवान कहलाने में गर्व महसूस करते है। भगवान तो प्रेम के भूखे हैइसलिये सदैव अपनी इच्छा को भगवान की इच्छा से मिला दो क्योंकि जो कुछ भी हमारे साथ हो रहा है वो प्रभु की इच्छा से ही होता है। कोई इंसान कैसा भी होहरि नाम से जुड़ते ही वो धन्य हो जाता है और भगवान ऐसे लोगो के लिये सभी नेक रास्ते खोल देता है।
इंसान अक्सर मौत से डर कर इन कपटी और फरेबियों के चुंगल में फंसता है जबकि असलियत तो यह है कि केवल हमारा शरीर मरता आत्मा कभी नही मरती। जिस तरह हम समय-समय पर नये कपड़े बदल कर खुश होते हैउसी तरह से आत्मा भी एक अरसे के बाद शरीर बदलना चाहती है। हर जीव का जीवन-मृत्यु का खेल भगवान की इच्छानुसार ही चलता है। इतना सब जानने के बाद जौली अंकल की आत्मा से केवल यही अलफाज निकल रहे है कि कितना बदल गया इंसान :
तन के उजले मन के कालेऐ मालिक तेरे यह दुनियां वाले,
शुक्र है कि तू परदे में हैवरना तुझे भी बेच डालेऐ मालिक तेरे यह दुनियां वाले।  

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