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शनिवार, 16 जनवरी 2010

आंनद ही आंनद

आज का युवा वर्ग दोस्तो के साथ देर रात तक शौरगुल, धमाकेदार संगीत के साथ नशे को आंनद समझते है तो कुदरत से प्यार करने वालो को सुबह सूर्योदय के समय का नजारा आंनदित करता है। ऐसे लोग शहर से दूर पहाड़ो की वादीयों में झरने की कल-कल करती धारा और सूर्य की उगती किरणों की प्रतीक्षा में पक्षीयों के चहचहाने वाले पलों को सच्चे आंनद का नाम देते है। यह वो पल होते है जब आदमी कुदरत के माध्यम से भगवान के सबसे करीब होता है। कुछ समय पहले तक लोग एक उंम्र के बाद अपना परिवार, खाना एवं अन्य सभी सुख त्याग कर संत बनने में और आज के आधुनिक लोग इन सभी वस्तुओं को पाने में खुद को आंनदित महसूस करते है। खाने पीने के शौकिन लोगो की बात करे तो उनकी आत्मा को हर दिन नये से नये बढ़िया व्यंजन खाकर जबकि भक्त लोगो की सोच में आंनद की अनुभूति भगवान के प्रति सम्पूर्ण आस्था रखते हुए व्रत करने से ही होती है। किसी को गाय के शुध दूध में और किसी को शराब के पैग में आंनद का एहसास मिलता है। आंनद की प्राप्ति के लिये इंसान क्या कुछ चेष्टा नही करता?
एक बात तो सत्य है कि आंनद की परिभाषा और मायने हर किसी के लिये अलग से है। जिस प्रकार हिरन उंम्र भर कस्तूरी की महक में दीवाना होकर उसे जंगल के हर कोने में ढूंढता रहता है, ठीक उसी तरह इंसान भी आंनद के कुछ पल पाने के लिये जीवन भर भटकता रहता है। गृहस्थ जीवन के चलते आदमी को कई बार व्यापार या अन्य किसी कारण से जब कभी घर से कुछ दिन दूर रहना पड़ता है, तो मन से एक ही बात बार-बार निकलती है कि आखिर अपने घर कब पहु्रंचेगे? ऐसा वो शायद इसलिये कहता है क्योकि जो आंनद अपने छोटे से घर में मिलता है, वो बड़े से बड़े स्टार होटल में भी नसीब नही होता। पढ़े लिखे लोग समझने लगे है कि किताबी ज्ञान से तो हम अच्छी नौकरी पाकर बहुत सारे पैसो से हर प्रकार के आंनद की वस्तु खरीद सकते है, परन्तु ऋृषि-मुनीयों की तरह भगवान के बारे में यदि कुछ जान भी लेगे तो हमें क्या मिलेगा? आज चाहें दूर से देखने में हर कोई स्वस्थ नजर आये लेकिन ऐसा लगता है कि मन से हर कोई रोगी हो चुका है। यही कारण है कि हमें दूसरों की निंदा औरर् ईष्या करने में बहुत आंनद मिलता है। इस बात का ज्ञान होते हुए भी कि सच्चा आंनद खुद को पूर्ण रूप से भगवान को समर्पित करने पर ही मिलता है इंसान भौतिक सुखो और दुनियावी ज्ञान को ही सर्वश्रेष्ठ मानने लगा है।
इस बात से भी कोई इंकार नही कर सकता कि बैठे-बैठे कभी किसी को कुछ नही मिलता, कुछ भी पाने के लिये हमें ईश्वर द्वारा दिये हुए हाथ-पैर, आंख कान आदि से प्रयास तो करना ही पड़ेगा। कोई खुल कर बोले या न बोले लेकिन लोगो के दिल में यह भावना अच्छे से घर चुकी है कि धर्म और भगवान के बारे में बातचीत करने वालों को हमारे दोस्त-मित्र अंधविश्वासी मानते है। आर्थिक दृष्टि से जैसे-जैसे आदमी संम्पन होता जा रहा है, उतना ही धर्म एवं भक्ति की राह से भटकता जा रहा है। जबकि कलयुग के इस दौर में आत्मा को सच्चा आंनद यदि कहीं से मिल सकता है तो वो सिर्फ भक्ति की राह पर चलने से ही नसीब हो सकता है। जो कोई हिम्मत करके भगवान को पाने की राह पर चल निकले है उन्हें गंगा जल की एक बूंद भी अमृत समान आंनद प्रदान करती है।
पहले जमाने की तरह अब राक्षस बहुत ही डरावने मुंह और बड़े-बड़े हाथ, पैर और कानों वाले नही रहे। हमारे बीच में ही रहने वाले दुर्राचारी, बलात्कारी और जो लोग अन्य बुरे कर्म करते है वो किसी राक्षस से कम नही। इस लोक में यदि कोई हमारा सच्चा हितेषी और शुभचिंतक जो हमें आंनद दे सकता है तो वो केवल एक मात्र भगवान ही है। अपने बच्चो से यह उम्मीद होते हुए भी कि यह बड़े होते ही किसी दिन भी हमें धोखा दे सकते है, हम उनके लिये धन इक्ट्ठा करने में सारा जीवन लगा देते है। दूसरी और यह जानते हुए कि भगवान सभी का भला चाहते हुए जहां सदैव हमारी रक्षा करते है और कभी किसी को धोखा नही देते हम उससे जुड़ने के लिये कुछ प्रयत्न नही करते।
जब कभी हमारा कोई नजदीकी हमें सदा के लिये छोड़ जाता है, तो हमें बहुत ही दुख होता है। कई बार प्रयास करने पर भी हमारे आंसू नही रूकते। परन्तु भगवान से बिछुड़ने का हमें कभी कोई गम नही सताता, इसका सीधा सा कारण तो यही समझ आता है कि हमारा भगवान से किसी प्रकार का संबध बना ही नही, वरना क्या भगवान से दूर होते ही हमारी आंखों में आंसू नही आते। ज्ञानी लोगो के लाख समझाने पर भी कि भक्ति केवल मन से ही होती है, तन से नही। हम अपने तन को साफ रखने के लिये तो हर किस्म के तेल, क्रीम, पाउडर आदि सब कुछ इस्तेमाल करते है, परन्तु अपने मन को साफ करने के लिये हम किसी किस्म का प्रयास नही करते। असल में जरूरत है तन से अधिक मन को साफ रखने की। जैसे ही हमारा मन पूर्ण रूप से भगवान को समर्पित होता है हमें दुनियां के सबसे बड़े आंनद की प्रप्ति हो जाती है।
जौली अंकल महापुरषो की वाणी का समर्थन करते हुए कहते है कि जिस प्रकार तेल के बिना दीपक नहीं जल सकता, वैसे ही ईश्वर के प्रति प्रेम के बिना जीवन में सच्ची खुशी नही मिल सकती। जीवन में यदि आंनद ही आंनद पाना है तो बिना भगवान के रस में डूबे यह मुमकिन नही हो पायेगा।

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