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शनिवार, 16 जनवरी 2010

कुछ ना कहो

वैसे तो हर इन्सान सभी जीव-जन्तुओं की तरह अपना जीवन जीते हैं। दोनों में यदि कोई फर्क है तो वो सिर्फ इंसान की बुद्वि का। जानवर आज से हजारों साल पहले जैसे रहते थे आज भी वैसे ही रह रहे है। परन्तु इंसान समय के साथ-साथ तरक्की करता जा रहा है। शांतमयी ढंग और उच्चकोटि का जीवन जीना एक कला है। बिना सुख सुविधाओं और ऐशो आराम के पहले के लोग कैसे जीते थे? यह तो मालूम नहीं, पर वो लोग थोड़ी सी कमाई से सारे घर की जरूरतें पूरी करके, कुछ न कुछ मुश्किल समय के लिये भी बचा लेते थे। हर आदमी अपने आप को बहुत ही सन्तुष्ट महसूस करता था। आज के समय में यह कला कहां से सीखें कुछ समझ नहीं आता। क्योंकि आज की इस आपाधापी के दौर में घर के बुजुर्गों के उंम्र भर के सारे तजुर्बे फेल हो रहे हैं। किसी अध्यापक या प्रोफेसर से इस कला को जानने की कोशिश करें, तो वो कहते हैं कि हम आपको क्या सिखायेंगे आज के इस मंहगाई और पागलपन की दौड़ के दौर में हमें भी अपना घर चलाना ही एक संकट सा लगता है।
आज ऐसा क्या हो गया है, कि हर आदमी मंहगाई और आर्थिक रूप से परेशान है, एक के बाद एक कई सरकारें आर्इं पर हर बार जनता की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही हैं। हर सरकार से जनसामान्य को एक आस की किरण नजर आती है, पर कुछ लच्छेदार वादों के सिवाय जनता के हाथ कुछ नहीं लगता। कुछ अरसा पहले जहां सारे घर का खर्च एक आदमी की कमाई से चल जाता था, वहां आज घर के हर सदस्य के काम करने के बावजूद भी दो वक्त की दाल रोटी का प्रबन्ध करना एक टेड़ी खीर साबित हो रहा है।
हमारी सरकारें नई-नई योजनाएं लाकर जनता के पैसे से तजुर्बे करती रहती है। उस तजुर्बे से किसी समस्या का हल निकले या न निकले, लेकिन हमारे मंत्रियों की तिजोरियों पर लक्ष्मी मां की कृपा बढ़ती ही जाती है। आम देशवासी कभी बिजली, पानी की कमी से परेशान और कभी मंहगाई के बोझ तले मरते रहते है। हमारे देश के किसान दुनिया को रोटी देने वाले अपने परिवार के लिये दो वक्त की रोटी न जुटा पाने के कारण आत्महत्या कर रहे हैं। उधर, सरकार हर बार कोई न कोई सुनहरा सपना दिखाकर जनता को बेवकूफ बनाने में सफल हो जाती है। पहले 50 सालों तक सरकार ने बिजली, पानी और यातायात के सारे विभाग अपने कब्जे में रख कर उन्हें दीमक की तरह खोखला कर दिया। अब इन विभागों को कुछ निजी कम्पनियों के हाथों में सौंपा जा रहा है। अब एक-एक विभाग को एक ही कम्पनी को देने से उन लोगों की दादागिरी और बढ़ गई और मंत्रीओं के वारे न्यारे हो रहे हैं। अब जनता पहले से भी अधिक दुखी है। यहां तो यह कहावत बिल्कुल ठीक साबित होती है, कि आकाश से गिरा खजूर में अटका।
इसके वावजूद अब हमारी सरकार सारे सरकारी अस्पतालों को निजी कम्पनियों के हाथों में देने का मन बना रही है। पहले जिन अस्पतालों को सरकार ने करोड़ो रूपयों की जमीन इस शर्त पर कोड़ियों के भाव दी थी, कि वो लोग गरीबों का इलाज मुफ्त में करेंगे। जबकि सच्चाई यह है कि गरीब लोगों को इन अस्पतालों में जाने तक की इजाजत भी नहीं है। अब तक लोग बिजली से परेशान थे, अब तो सरकार जनता के जीवन को भी दांव पर लगाने जा रही है। अगर सरकार सच में जनता के हित में कुछ करना चाहती है, तो टेलीफोन कम्पनियों से सीखें, जहां कल तक दिल्ली से मुबई एक बार बात करने पर 30-40 रूपये लगते थे, आज वहीं बातचीत करने के लिये एक रूपये से कम में काम चल जाता है।
एक छोटी सी बात जो पढ़े लिखे लोगो के साथ अनपढ़ लोगों को भी समझ आती है वो हमारी सरकार के काबिल अफसरों को क्यूं नहीं समझ आती कि जब तक किसी भी क्षेत्र में एक संस्थान की दादागिरी रहेगी तब तक वो हर हाल में अपनी मनमानी करेगा ही। कोई भी व्यापारिक घराना जनता का भला करने से पहले दस बार अपने मुनाफे को अधिक से अधिक बढ़ाने की सोचता है। बार-बार सिर्फ सरकार को दोष न देकर यदि हम अपने गिरेबान में झांकने का प्रयास करे तो पायेगे कि हमें सदा वैसी ही सरकार मिलती है जिसके हम पात्र है। जब हममें सुधार आ जायेगा तो सरकार में भी अपने आप सुधार हो जायेगा।
इन विषयों पर ना जाने कितना कुछ लिखा और कहा जा चुका है, पर आम जनता की आवाज सरकार तक कब पहुंचेगी, यह तो भगवान ही जाने। यह सच है कि हर रास्ता कांटो से भरा होता है, परन्तु सरकार सच्चे मन से यदि जनहित में पहला कदम बढ़ाने की हिम्मत दिखाए तो उसे एक दिन मंजिल भी जरूर मिल जायेगी। कोई भी काम कभी भी किया जा सकता है, लेकिन सफलता पाने के लिए लक्ष्य तह करना जरूरी है। हमारी सरकार हर मसले से जुड़े कानून तो बनाती रहती है वो यह क्यूं भूल जाती है कि सबसे ऊंचा नैतिक कानून यह है कि हमेंं सदैव आम आदमी के कल्याण के लिए काम करना चहिये।
आखिर में जौली अंकल के थके हुए मन से यही आवाज निकलती है, कि कल तक सोने की चिड़ियां कहलाने वाला हमारा महान भारत देश आज दुनियां के भ्रष्ट देशो की सूची में सबसे आगे खड़ा है। यहां के रहनुमाओं को कोई कुछ भी कहता रहे, यहां किसी को कुछ फर्क नही पड़ता। इन लोगो पर यह कहावत भी पूरे तौर से खरी उतरती है कि भैंस के आगे बीन बजाने से क्या फायदा क्योंकि इन लोगो को कुछ असर होने वाला नहीं है। इसलिये आप भी कुछ ना कहो तो ही अच्छा है। 

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