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शनिवार, 16 जनवरी 2010

धर्म की राह

धर्म क्या है? क्या कभी किसी ने भगवान को देखा है या कोई आज तक उसके करीब जा सका है? भगवान का महजब कौन सा है? भगवान का रंग रूप कैसा है? भगवान को पाने के लिये किस धर्म की राह पर चलने की जरूरत होती है। हमारा भगवान से कैसा रिश्ता है? यदि आज तक कभी किसी ने भगवान को देखा या जाना नही तो क्या हम धर्म को अंधविश्वास मान ले? यह सारे सवाल वो है जो हम सभी के मन में कभी न कभी जरूर उठते रहते है, लेकिन संकोचवश हममें कोई भी इनका इजहार करने की हिम्मत नही जुटा पाता।
कुछ लोग इस राह के बारे में बिना कुछ जाने ही बड़ी-बड़ी ढींगे मारते रहते है, लेकिन सच्चे संत केवल एक बात को मानते है कि भगवान के बारे में सारी उंम्र समझ-समझ कर इंसान केवल इतना ही समझ सकता है कि भगवान मैं तेरे बारे में कुछ भी नही समझ सकता। इसका ठोस प्रमाण यह है कि हमारे पास इतनी समझ ही नही है कि हम भगवान का समझ सके। जो व्यक्ति कुछ क्षण के लिये अपने मन पर काबू नही रख पाता वो ब्रहामंड के विधाता के बारे में कैसे कुछ ज्ञान प्राप्त कर सकता है? हम मानें या न मानें भगवान हम सभी की सोच से बहुत महान है।
हम भगवान को समझने की बात तो करते है, लेकिन हमारा मन उस बीज की तरह है जो दो हिस्सो में बंटा हुआ है। जब बीज दो हिस्सो में बंट जाता है तो वो कभी किसी नये पोधे को जन्म नही दे सकता। ठीक इसी प्रकार हमारा मन हर समय किसी न किसी दुविधा में पड़ा रहता है। रोजमर्रा की बातों के साथ भगवान और धर्म के बारे में भी बार-बार हमारे मन में अनेक प्रकार के शक और शंका उठती रहती है। हर धर्म के आगू सही राह दिखाने की बजाए अपने निजी हितो के मद्देनजर धर्म की ओट में जनसाधारण की भावनाओं से खिलवाड़ करते रहते है। हर वर्ग के साधू-संत अपनी-अपनी दुकानदारी चमकाने के लिये भगवान और धर्म को एक पद्वार्थ की तरह इस्तेमाल करते है। यहां यह कहना गलत नही होगा कि इन लोगो के लिये धर्म भी एक व्यापार से बढ़ कर कुछ नही है।
धर्म के नाम पर अपने उल्टे-सीधे विचारो से लोगो को गुमराह करना तो बहुत आसान है, लेकिन क्या कभी किसी धर्म के आगू ने भगवान के नाम पर सारे समाज को जोड़ने का प्रयत्न किया है? जबकि धर्म की सच्चाई तो सिर्फ इतना सिखाती है कि सदा मानवता के साथ चलो और सारी मानव जाति को अपने साथ लेकर चलो। इस बात की पुष्टि इससे भी हो जाती है कि कभी भी, कोई भी भगवान दुनियां के किसी खास वर्ग, धर्म, स्थान या भाषा से नही जुड़ा। ईश्वर के समक्ष सभी समान हैं न कोई छोटा होता है न कोई बड़ा। जब कभी कोई ईश्वर को किसी कारण से एक खास वर्ग विशेष से जोडने की बात करता है, तो यह उसकी भूल है। जो भगवान है वो केवल एक का नही हो सकता और जो केवल एक का ही है, वो भगवान नही हो सकता। यह दोनों बाते रेल की उस पटरी की तरह है जो आपस में कभी इक्ट्ठी नही हो सकती।
हम भगवान को केवल उस समय तक याद रखते है जब तक हम दुखी होते है, सुख मिलते ही हम उसे पल भर में भूल जाते है। आज की कड़वी सच्चाई तो यह है कि आम आदमी का भगवान केवल धन है। आज हर कोई धन-दौलत की पूजा करता है। धन-दौलत का साहरा लेकर जब हम धर्म की आड़ में आडम्बंर आयोजित करते है, तो वो सिवाए पांखड के कुछ भी नही होता। असल में हमारें जीवन के वही पल सफल हैं, जो नेक काम और भगवान के स्मरण्ा में बीतते है। आत्मा और परमात्मा के मिलन को हम इस तरह भी समझ सकते है कि जिस प्रकार मछली हर समय समुंद्र में रहते हुए भी अपने जन्म स्थान और परिजनों से हजारों मील दूर जा कर भी पानी से अलग नही होती, ठीक उसी तरह भगवान भी हमसें कभी दूर नही होते। यह बात अलग है कि हम अपने निजी स्वार्थो के चलते भगवान को अपनी सोच, समझ और याद में नही रख पाते।
हर धर्म ग्रंध हमें एक ही बात समझाते है कि भगवान की भाषा केवल प्रेम की भाषा होती है। आप सच्चे मन और प्यार से कुछ भी कहें भगवान आपके दिल की बात को स्वीकार कर लेते है। संसार का कोई भी धर्म सेवा के धर्म से बड़ा नही है, इसलिये भगवान को पाने के लिये हमें सदा ही नेकी की राह पर चलते हुए अपने माता पिता की सेवा करनी चहिये। क्योंकि माता पिता के समान कोई तीर्थ नही है, न मंदिर न मस्जिद। भगवान को पाना इतना आसान तो नही लेकिन झूठी लालसा को छोड़ कर सच्चे मन और पूर्ण विश्वास से प्रभु नाम का सिमरन ही हमें इस राह में सही रोशनी दिखा सकता है।
जौली अंकल का मत तो यही है कि एक बार अपना अभिमान त्याग करके देखो जो शेष तुम्हारे पास बचेगा वही तो परमात्मा को पाने और धर्म की सच्ची राह है।

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