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बुधवार, 18 नवंबर 2009

अपने पराये

बचपन से इक्ट्ठे खेल कूद कर बड़े हुए दो दोस्तो में से एक को जब नौकरी के लिये विदेश जाना पड़ा तो उसने अपने प्यारे दोस्त से कहा कि तू मुझे अपनी यह सोने की अगूंठी दे दे। इसे देख कर मुझे हर समय तेरी याद आती रहेगी। दूसरे दोस्त ने कहा कि मैं तुझे यह अंगूठी तो नही दे सकता, हां अब जब कभी भी तू अपना खाली हाथ देखेगा तो तुझे मेरी याद आ जाया करेगी कि मैने अपने दोस्त से अंगूठी मांगी थी और उसने मना कर दिया था। इस छोटी सी बात ने एक क्षण में बचपन से चली आ रही बरसों पुरानी दोस्ती में एक बड़ी दरार डाल दी। जो दोस्त रिश्तेदारी से बढ़ कर साथ जीने मरने की कसमें खाते थे वो आज एक अगूंठी के कारण एक दूसरे के लिये पराये हो गये। दोस्ती हो या कोई और दूसरा रिश्ता न जाने आजकल हर कोई दूसरों को झुकाने की कोशिश क्यूं करता है, जबकि असल में किसी पराये को अपना बनाने के लिये जरूरत होती है खुद को थोड़ा सा झुकाने की।
अपने पराये की बात चलते ही हर किसी का ध्यान सबसे पहले अपनी प्यारी बेटियों की तरफ खिंचा चला जाता है। यह जिस घर में भी जाती है उसे किलकारीयों से भर देती है, इन्हें देखते ही हर कोई जहां इन्हें लक्ष्मी का दर्जा देता है वही साथ में यह कहना नही भूलते कि यह तो पराई अमानत है। बेटियां जैसे ही होश संभालती है घर की दहलीज को छोड़ कर जन्म देने वाले माता-पिता के लिये पराई हो जाती है। दुनियावी रिश्ता चाहे कोई भी हो, जिसे हमारा मन एक बार अपना मान लेता है, फिर हमें उस व्यक्ति में कोई कमी दिखाई नही देती। उसके सारे अवगुण भी हमें गुणों जैसे लगने लगते है। परन्तु जब कोई हमारा अपना किसी स्वार्थ के चलते पराया हो जाता है, तो हमें उसमें कमीयां ही कमीयां दिखाई देने लगती है। खुद हम कुछ भी करते रहे लेकिन कोई हमारे साथ थोड़ा सा भी बुरा करता है, तो हमारा मन उसे सदा के लिये त्याग कर पराया बना देता है।
कहने को अपने तो अपने ही होते है, लेकिन कई बार जीवन में किसी छोटी सी घटना के चलते पल भर में अपने सदा के लिये पराये हो जाते है। ऐसे में जब अपनो से रिश्ता टूटता है या वह हमें छोड़ कर चले जाते है तो मन बहुत दुखी होता है, हर आहट पर उनका लौट कर आने का इंतजार रहता है। इससे भी अधिक दुख तो उस समय होता है जब हमारे अपने पास होते हए भी परायों की तरह व्यवहार करना शुरू कर देते है। अपने होकर भी गैरो जैसा व्यवहार मन में तीखे कांटे की तरह चुभता है। भगवान ने ज्ञान और बुद्वि के भंडार के साथ सबसे उत्तम जीवन केवल इंसान को दिया है। लेकिन हम उसको ठीक ढंग से इस्तेमाल करने की बजाए दुनियावी रिश्तों की उधेड़-बुन में अपने परायों के रिश्तो में उलझे रहते है। हमारा अच्छा करना और अच्छा सोचना उस समय तो बिल्कुल बेकार हो जाता है जब हम दूसरों की आलोचना करना शुरू कर देते है।
हम सभी की आस और प्यास एक जैसी ही है। जिसे हम अपना मानते है, हमें उससे यह उम्मीद होती है कि वो हमारे हर सुख-दुख में सदा हमारें अंग-संग खड़ा होगा। लेकिन मसुीबत आते ही सच्चाई सामने आ जाती है। दूसरा कोई जब भी हमारे साथ कछ बुरा करता है उसे तो हम जिंदगी भर याद रखते है, लेकिन जो कुछ हम किसी के साथ करते है उसे अपने मन के आईने में देखने से कतराते है। सारी दुनियां से चाहें हम कुछ भी छिपा ले, लेकिन हमारा मन एक ऐसा दर्पण है, जिससे कोई बात नही छुपती। हमारे हर अच्छे बुरे कर्म को हमारा मन हर समय देखता रहता है। दूसरों को बुरा भला कहना और उनमें कमियां निकालने से पहले जरूरत होती है तो केवल अपने मन की आंखे खोलने की।
जो असल में हमारा अपना है, और हर समय हमें सुख देते हुए हमारी दुखो से रक्षा करता है इंसान उसे अपना बनाना तो दूर उसकी और देखना भी नही चाहता। भगवान जिसे हम अक्सर बैगाना समझते है, उसका अपने भक्त से करीबी रिश्ता तो कोई और हो ही नही सकता। ऋृषि-मुनि तो एक ही बात समझाते है कि राम तो हर इंसान के मन और तन में बसते है। इस बात का सबसे बड़ा सबूत हनुमान जी ने अपनी छाती चीर कर सारी दुनियां को दिखा दिया था। एक बार सच्चे मन से यदि हम भगवान को अपना मान ले तो फिर जमानें की हर टेढ़ी-सीधी राह पर हमें दुनियां के भंवर में भटकने से बचाने के लिये वो खुद ही दौड़े चले आते है। ऋृषि-मुनियों ने तो सदा ही भक्ति के बल पर भगवान को अपना बनाया है। जिस भगवान को हम सारी उंम्र पराया समझते है मन की आंखे खुलते ही वो हमारे सबसे करीब होता है।
जौली अंकल अपने पराये की इस गुथ्थी को सुलझाने के लिये इसी मंत्र पर विश्वास करते है कि जिंदगी एक फूल है और मुहब्बत उसका शहद। इसलिये यदि आप जीवन में सबसे मित्रता न भी कर पाओं तो कोई बात नहीं, परंन्तु दुश्मनी किसी से भी न करो, क्योंकि इंसान चाहे तो अपने छोटे से जीवन में अपने अच्छे कर्मो से अपने पराये का भेद मिटा कर सदियों तक सम्मान पा सकता है।     

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