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बुधवार, 18 नवंबर 2009

नाम बड़े और दर्षन छोटे

दिल्ली दर्शन की दिलचस्प दास्तान
कॉमनवेल्थ गैम्स के मद्देनजर सरकार द्वारा दिल्ली को एक खूबसूरत अन्तर्राष्ट्र्रीय शहर बनते देखने की लालसा ने मसु्रद्दी लाल को दिल्ली दर्शन के लिये मजबूर कर ही डाला। टीवी एवं समाचार पत्रो की माने तो यहां के सभी विश्व प्रसिद्व ऐतिहासिक स्थलों और मैट्रो के रंग रूप को और अधिक खूबसूरत बनाने के लिये सरकार द्वारा करोड़ो रूप्ये खर्च किये जा रहे है। गांव से दिल्ली पहुंचने के लिये मसु्रद्दी लाल को अपने सफर की शुरूआत पैसेजंर गाड़ी से करनी पड़ी। गाड़ी चलती कम थी और रास्तें में पड़ने वाले हर स्टेशन पर रूकती अधिक थी। हर डिब्बे में जबर्दस्त भीड़ थी। एक-एक सीट पर कई-कई यात्री दावा ठोक रहे थे। आखिर किसी तरह जब गाड़ी दिल्ली पहुंची तो मसु्रद्दी लाल ने सुकून के साथ राहत की सांस ली।

स्टेशन से बाहर निकलते ही मसु्रद्दी लाल का सामना कूड़े के ढ़ेरो से हुआ, जिसे देखते ही उसे अपने गांव का स्टेशन याद आ गया। सिर्फ कूड़े के दर्जे में थोड़ी भिन्नता जरूर थी, बाकी सब कुछ वैसे ही था। इतने में कुछ मक्कार आटो-टैक्सी ड्राईवरो ने मोटी कमीशन खाने के चक्कर में घटिया और मंहगे होटल में मसु्रद्दी लाल को रूकवाने के लिये घेर लिया। मसु्रद्दी लाल जी रहीम जी की उस वाणी को मन में संजोये दिल्ली आये थे जिसमे उन्होने कहा था कि हर किसी को प्रेम से मिला करो, न जानें किस रूप में भगवान मिल जाऐं। लेकिन दिल्ली पहुंचते ही यह अभास होने लगा कि अब तो न जानें जमाने की हवा कैसी चल निकली है कि जिस तरफ देख लो हर तरफ शौतान ही शैतान नजर आते है।


उन सभी से बचते-बचाते स्टेशन के बाहर कुछ देर वो अपने एक रिश्तेदार का इंतजार करते रहे। मसु्रद्दी लाल को हैरानगी हो रही थी कि आने की सूचना कई दिन पहले डाक से भेजी थी, फिर भी उन्हें लेने स्टेशन पर कोई क्यूं नही आया? बहुत देर तक इंतजार करने पर भी जब उन्हें दूर-दूर तक कोई अपना नजर नही आया तो हठ करके एक आटो में बैठ कर अपने परिचित के घर जाने की हिम्मत कर ही ली। कुछ देर चलने के बाद उस आटो वाले ने सीएनजी स्टेशन की लंबी लाईन में अपना आटो खड़ा कर दिया।
रास्ते में जहां कही भी 'आपका स्वागत है' का बोर्ड नजर आता वहीं दिल्ली पुलिस के मोटी-मोटी तोंद वाले हाथ में लठ लिये तू-तड़ाक से स्वागत कर देते। हर चौराहे पर बैरीयर लगा कर सैंकड़ो गाड़ीयों को रोका हुआ था। कई जगह आटो रोक कर मसु्रद्दी लाल से अच्छी खासी पूछताछ के साथ उनके सारे सामान की छानबीन भी की गई। एक बार तो सारा सामान खुलवा कर देखा गया। यहां तक की गांव से लाये हुए देसी घी के लव्ूओ के डिब्बे को एक तरफ अलग रख लिया और साथ ही वहां से चुपचाप खिसक जाने की धमकी दे डाली। हर लाल बत्ती पर भिखारीयों की भरमार को देख मसु्रद्दी जी हैरान हो रहे थे। यह लोग भीख भी कुछ इस अंदाज में मांग रहे थे, जैसे कि किसी ने इनका बरसों पुराना कर्जा देना हो। तकरीबन दो-ढाई घंटे सड़को की धूल मिट्टी में भूखे-प्यासे, बैठने के बाद उस आटो ने आखिर मसु्रद्दी लाल को उनके रिश्तेदार के घर पहुंचा ही दिया। वहां पहुंचते ही अब किराये भाड़े को लेकर अच्छा खासा झगड़ा शुरू हो गया, जिसकी नौबत थोड़ी ही देर में गाली गलोच तक पहुंच गई।
दो तीन दिन दिल्ली में रूकने के दौरान मसु्रद्दी लाल ने पाया कि जहां सरकार दिल्ली को अन्तर्राष्ट्र्रीय शहर बनाने का हर दावा तो कर रही है, वही बाकी सभी परेशानीयों के साथ आम आदमी बिजली, पानी के लिये तरस रहा है। शहर की कुछ बड़ी सड़को को छोड़ बाकी सभी सड़को का हाल गांव से भी बुरा है। चंद मिनटों के सफर के लिये घटों टै्रफिक जाम का सामना करना पड़ता है। शहर में लड़कियां कम से कम कपड़े पहने अपने शरीर की नुमाईश कर रही है।
अपने गांव के लिये जब एक बाजार से टेपरिकार्डर खरीदने दिल्ली की महशूर मैट्रो में सवार हुए तो उसमें इतनी भीड़ थी कि कोई अपनी जगह से हिल भी नही पा रहा था। मसु्रद्दी लाल ने तो एक सज्जन को यहां तक कह दिया कि यदि तुम्हारा एक हाथ खाली है तो जरा मेरा कान खुजा दो। कान में खुजली से बहुत दिक्कत हो रही है। घर पहुंचने पर जब खुशी-खुशी सब को टेपरिकार्डर दिखाने लगे तो पाया कि उसमें एक प्लास्टिक के खाली डिब्बे के इलावा कुछ भी न था।
मसु्रद्दी लाल बहुत सारे पर्यटन स्थलों और अन्य कई जगह घूमने की मंशा लेकर दिल्ली आये थे। लेकिन दिल्ली शहर की हालात और कानून व्यवस्था को देख कर दो ही दिन में उनका धैर्य और संयम टूट गया। दिल्ली शहर के सुहावने सपने देखने की मंषा ने उन्हें वो सब कुछ दिखा दिया जिसकी उन्होनें कभी कल्पना भी नही की थी। दिल्ली में मसु्रद्दी लाल को जो अनुभव हुआ वो बहुत ही पीढ़ादायक था।
हर किसी को दिन-रात समस्याओं से जूझता देख मसु्रद्दी लाल ने दुखी मन से गांव वापिस जाने का निर्णय ले लिया। वापिस जाते समय उस ने वहां खड़े सभी लोगो से पूछा कि क्या आप इसे ही अन्तर्राष्ट्रीय शहर कहते है? जौली अंकल ने कहा कि दिल्ली दर्शन करने और सब कुछ देखने और समझने के बाद भी आप इस बात का जवाब हम से क्यूं पूछ रहे हो?  

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