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बुधवार, 18 नवंबर 2009

कंजूस सेठ

एक अनाथलय चलाने वाली स्वंय सेवी संस्था के कुछ सदस्य अपने इलाके के सबसे बड़े रईस परंतु कजूंस सेठ साहब के पास गरीब और मजबूर बच्चो की मदद लेने की मंशा लिए दान लेने के लिए पहुंचे। अपनी संस्था के कामकाज के बारे में विस्तार से बताने के बाद उन्होनें सेठ साहब से अनाथ और असाहय बच्चो की मदद करने की अपील की। इन लोगो की बात सुनते ही वो किसी गहरी सोच में डूब गये।
इससे पहले की सेठ जी कुछ कहते एक सदस्य ने अपने साथी से कहा कि हमें लगता है कि हम बिल्कुल ठीक जगह पर आयें है, अब हमारी संस्था की सभी सम्सयाऐं हल हो जायेगी। यह सेठ साहब तो एक दिन में लाखों रूप्ये कमा लेते है। जहां तक मेरी जानकारी है इस सेठ ने आज तक कभी किसी धर्म के काम पर भी कोई पैसा कभी खर्च नही किया और न ही कभी कोई दान पुण्य का काम किया है। मुझे लगता है कि सेठ साहब समाज के प्रति अपनी जिम्मेंदारी को अच्छी तरह से समझते हुए इस बार यह नेक मौका अपने हाथ से नही जाने देगे।
सब लोगो की बाते सुनने के बाद सेठ जी ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा, कि क्या तुम जानते हो कि मेरी मां पिछले 4-5 साल से कैंसर से पीढ़ित है। उनके इलाज पर अब तक हजारों रूप्ये खर्च हो चुके है। मेरे पिता जी और मेरा भाई एक सड़क दुर्घटना में बुरी तरह से घायल हो गये थे, कुछ अरसा पहले मेरे पिता ने एक सरकारी अस्पताल में अच्छे इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया। मेरा भाई इस हादसे में अपनी दोनों आखें और टांगे खोने के बाद आज भी पहियेदार कुर्सी पर अपने जीवन के दिन पूरे करते हुए अपनी मौत का इंतजार कर रहा है।
संस्था के एक सदस्य ने हमदर्दी जताते हुए कहा, सेठ जी, माफ करना हम में से किसी को भी इस बारे में कोई जानकारी नही थी। वकील साहब ने उसकी बात को रोकते हुए आगे कहा, कि मेरे जीजा की मौत के बाद मेरी बहन बरसों से एक छोटे से घर में विधवा की जिदंगी जी रही है, उसके बच्चो को स्कूल की फीस अदा न कर पाने की वजह से स्कूल से निकाल दिया गया है। आज वो सारा परिवार भुखमरी की कतार पर है।
संस्था के सदस्य ने कहा सेठ जी आपके परिवार के सभी प्रियजनों के हालात के बारे में सुन कर हमें बहुत दुख महसूस हो रहा है। लेकिन हमारी फिर भी आपसे यही प्रार्थना है, कि कुछ ज्यादा नही तो दो-चार हजार रूप्ये महीने की मदद हमारी संस्था को भी दे दिया करे तो गरीब बच्चो का बहुत भला हो जायेगा।
अब सेठ जी गुस्सें में लाल-पीले होकर भड़कते हुए बोले - मैने आज तक अपने इन सभी रिश्तेदारो को कभी कुछ नही दिया। उनके बार-बार कहने पर भी मैने उनकी आज तक कोई मदद नही की तो आप ने यह कैसे सोच लिया कि मैं आपकी संस्था के अनाथ बच्चो के लिये कुछ दान दूंगा। यह सुनते ही सभी सदस्य एक दम सकते में आ गए।
एक सदस्य ने बहुत ही प्यार से कहा सेठ जी विद्वान और ज्ञानी लोग सदा से हमें समझाते आये है कि दान देने वाले की प्रंशसा तो बहुत होती है लेकिन जिसका आचरण अच्छा है वह और भी ज्यादा प्रंशसनीय है। नियमित दान करने की आदत से इंसान अपने खाते में बहुत से पुण्य जोड़ सकता है। एक बात सदैव याद रखना कि परोपकार का वृक्ष सहृदयता की छाया में ही फलता-फूलता है। सेठ जी जैसे लोगो के लिए जौली अंकल तो इतना ही कहना चाहते है कि आज जो बोओगे वही कल काटोगे। इसलिए सदैव अच्छा करो, और अच्छा पाओ।

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