कुछ समय पहले की बात है कि एक सेठ जी ने अपने समय के एक बहुत ही महान संत को पूजा-पाठ और प्रवचन करने के लिये अपने घर पर आमत्रिंत किया। उस धनी सेठ को आदर-सत्कार देते हुए संत जी ने उसे अपने आसन के पास ही बैठने के लिये स्थान दे दिया। जैसा कि आमतौर पर हम सभी के साथ होता है कि हमारा मन पूजा पाठ के समय कभी गुजरे हुए पलों को लेकर और कभी भविष्य की चिंता में खो जाता है। ठीक उसी तरह पूजा पाठ शुरू होते ही यह सेठ जी भी किसी गहरी सोच में डूब गये। संत जी ने सेठ को सोते देख अपनी बात बीच में रोक कर उनसे पूछा कि क्या आप सो रहे हैे? सेठ जी घबरा कर बोले नही तो, किस ने कहा कि मैं सो रहा हूँ। मैं तो बहुत ही ध्यान लगा कर आपके प्रवचन सुन रहा हूँ। कुछ पल बीतने पर यही सब कुछ फिर हुआ। लेकिन वो सेठ हर बार इस बात से इंकार कर देता कि वो सो रहा है। अगली बार जब वो फिर गहरी नींद में सो गया तो संत जी ने उसे जोर से झटका देते हुए पूछा कि सेठ जी जिंदा हाें क्या? सेठ जी पहले से भी अधिक हड़बडा कर बोले बिल्कुल नही, कौन कहता है। यह सुनते ही पूजा-पाठ सुनने आऐ और सेठ जी तरह चिंता में डूबे कई लोगो की जोर से हंसी छूट गई।
आम आदमी को हर दिन बढ़ती मंहगाई की चिंता, नेताओ को चुनावों में अधिक से अधिक मत पाने की चिंता, चुनाव जीतने के बाद मंत्री पद मिलने की ंचिंता, मां को बेटी के लिये अच्छे वर की चिंता तो बाप को अपने बेटे को पढ़ा-लिखा कर किसी ऊंचे पद पर नौकरी दिलवाने की चिंता। इन सब चिंताओ से बढ़ कर हमें एक ंचिंता यह सताती है कि हमारे साथ कुछ भी ऐसी अनहोनी तो बिल्कुल न हो जो दूसरों के साथ हो रही है। असल में अनहोनी कुछ है ही नही, जो कुछ भी इस संसार में होता है वो सब भगवान की इच्छा से ही होता है। लोभवश हम सभी को हर समय कोई न कोई ऐसी चिंता परेशान करती रहती है कि जो कुछ हमारे मन में है या जो कुछ हमारा परिवार चाहता है वो सब कुछ हमें मिल जायें। परन्तु मन के किसी कोने में यही चिंता बनी रहती है कि पता नही हमारी यह मंशा पूरा होगी की नही। ऐसे में हम यह भी भूल जाते है कि केवल अपने लिए ही सब कुछ पाने की इच्छा करने वाला स्वार्थी कहलाता है।
आम आदमी से ज्ञानी लोगों तक हर कोई इस बात को अच्छी तरह से जानते हुए कि चिंता करने से कभी किसी सम्सयां का हल नही मिलता बल्कि चिंता आदमी को चिता के और करीब ले जाती है। फिर भी हम खुद को चिंता से दूर नही रख पाते। इस का एक मात्र कारण यह है कि सारा संसार प्रभु की इच्छा अनुसार ही चल रहा है लेकिन हम अपनी सभी इच्छाओं को अपनी मन मर्जी मुताबिक पूरा करवाना चाहते है। हम अक्सर अपनी कमीयों के चलते अपने वर्तमान को कभी बीते हुए समय के हादसों से जोड़ कर और कभी आने वाले पलों का समय से पहले रहस्य जानने के प्रयास में अपना सारा जीवन व्यर्थ्र की ंचिंता में ही खत्म कर देते है। है। हमें किसी भी हाल में न तो बहुत खुश और न ही दुखी होना चाहिए, क्योंकि ये सब तो भाग्य की देन है। ठीक इसी तरह हर इंसान को लाभ-हानि, यश-अपयश, मान-अपमान अपने नसीब से ही मिलता है, ंचिंता करने से हम उसमें कमी या बढ़ोतरी नही कर सकते।
उंम्र बढ़ने के साथ हम में से यदि किसी को कोई शरीरिक रोग लग जाये तो हमें सबसे पहले मौत की चिंता सताने लगती है। अधिकाश: लोग मृत्यु जैसी कड़वी सच्चाई को झुठला कर अच्छी और लंबी जिंदगी जीना चाहते है लेकिन हैरानगी की बात तो यह है कि न तो कोई बूढ़ा होना चाहता है और न ही कोई मरना चाहता है। जो लोग मृत्यु से भयभीत और ंचिंतित होते हैं वो जीवन के महत्व को क्या समझेगे? इस सच्चाई को झुठलाना भी कठिन है कि इस प्रकार की इच्छाऐं रखने वाले कभी भी अपने जीवन काल में अच्छे कर्म कर ही नही सकते।
धर्म की राह पर चलने वाले सज्जन पुरष सदैव वर्तमान मे जीते है, ऐसे लोगो का जनसाधारण को यही सदेंश होता है कि जो कुछ हमारे जीवन में हो रहा है वो प्रभु की इच्छा से ही होता है। हमें सदा ही अपना कर्म बाखूबी निभाते रहना चहिये। फल की चिंता करना व्यर्थ है क्योंकि फल देना तो भगवान के हाथ में है। जो कुछ हमें मिलता है वो हमारी मेहनत का फल नही भगवान की रहमत का नतीजा होता है। हमें उस समय तक कर्म करते रहना चहिये जब तक कि उसकी रहमत न हो जायें। परन्तु जब हमें कोई ऐसी अच्छी ज्ञान-ध्यान की बाते समझाता है तो हमारा मन उसको ग्रहण करने की बजाए दुनियां के सुखो और दुखो की चिंता में खो जाता है। गृहस्थ जीवन के उतार-चढ़ाव की ंचिंताओं से बिना विचलित हुए विपरीत परिस्थितियों में जो जीना सीख लेता है वहीं धैर्यशील कहलाता है। सच्ची साधना यही है कि हम भूतकाल और भविष्य की चिंताओं को मिटा कर वर्तमान में जीना सीखे, क्योंकि जो बीत चुका है और जो आने वाला है, उसकी चिंता करना व्यर्थ है।
जीवन में यदि चिंता से मुक्त होकर मानसिक शंति का आनंद प्राप्त करना है तो कभी भी मन को व्यर्थ की उलझनों में मत फंसने दो। आप कहेगें कि यह सब कुछ कहने में जितना आसान लग रहा है व्यवहार में लाना उतना ही कठिन है। ऐसे में जौली अंकल एक छोटी सी रहस्य की बात आप से कहना चाहते है कि जीवन में कभी भी आशा न छोड़े, आशा एक ऐसा पथ है जा जीवनभर आपको गतिशील और चिंता मुक्त बनाए रखता है।
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