कुछ दिन पहले अपने दोस्त वीरू की शादी में जाने का मौका मिला। बारात बैंड-बाजे और ढ़ोल-नगाड़ो के साथ बड़ी ही धूमधाम से दुल्हन के घर की और जा रही थी। वीरू के जीजा जो बहुत ही सीधे-सादे शांतप्रिय स्वभाव के है, बारात के साथ धीरे-धीरे चल रहे थे। उनके साथ चलते कुछ बरातियों ने उन पर फब्ती कसते हुए कहा कि लगता है आपको अपने साले की शादी की कोई खुशी नही हुई, वरना कोई जीजा बारात में इस तरह मुंह लटका कर नही चलता। इससे पहले कुछ और लोग इसी प्रकार के कटाक्ष से जीजा को घायल करते उन्होने ने भी ढ़ोल की थाप पर नाचना शुरू कर दिया। जैसे ही जीजा का डांस शुरू हुआ तो उनके घर वालों में से किसी ने कह दिया हमने भी अपने बहुत सी शादीयां देखी है, लेकिन इस तरह बेवकूफो की तरह किसी जीजा को बारात में नाचते नही देखा। अब जीजा को कुछ समझ नही आ रहा था कि ऐसे में वो करे तो क्या करें? हो सकता है कि वीरू के जीजा के साथ यह सब कुछ पहली बार हुआ हो, लेकिन समाज का यह कैसा चलन है कि आप कुछ भी कर लो जमाना आपको कुछ न कुछ तो जरूर कहेगा।
आपने एक बात तो अक्सर देखी होगी कि जब कभी भी आपके घर में दुख-तकलीफ आ जाती है, तो आपके दोस्त, सगे-सम्बंधी आपकी सेहत का हालचाल पूछने में पल भर की भी देरी नही करते। अब आपको चाहे कोई भी तकलीफ हो, आप मांगे या न मांगे, आपके यह सभी शुभंचिंतक आपको एक से एक बढ़िया इलाज और डाक्टर का नाम बताने की सलाह देने से परहेज नहीं करते। उनको आपकी परेशानी के बारे में चाहे कुछ भी न मालूम हो लेकिन आपको उसके अनेको देशी-विदेशी इलाज तो बता ही देंगे। आखिर जमाने के लोगों का काम है कहना।
जमाना किसी को क्या-क्या कह सकता है, इसका अंदाजा लगाना भी कठिन है। एक बार एक सीधे सादे आदमी ने सब्जी की छोटी सी दुकान शुरू की। कुछ समय पाकर उसकी मेहनत और ईमानदारी ने रंग दिखाना शुरू कर दिया तो पूरे बाजार में उसकी दुकान सबसे मशहूर हो गई। हर समय उसके पास ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी। बढ़ते व्यापार को देखते हुए एक दिन उसने दुकान के सामने एक बहुत बड़ा सा बोर्ड लगवा दिया जिस पर लिखा था कि हमारे यहां ताजा सब्जियां बिकती हैं। अगले दिन एक ग्राहक आया तो उसने बोर्ड को देखकर कहा कि क्या आप इसके अलावा कहीं और भी सब्जी बेचते है। दुकानदार ने बड़ी ही नम्रंतापूर्वक ना में जवाब दिया। तो उस ग्राहक ने कहा तो फिर इस बोर्ड पर ''हमारे यहां'' लिखवाने की क्या जरूरत थी? आप यदि इसे हटवा दो तो इससे तुम्हारा बोर्ड और अधिक अच्छा लगेगा। दुकानदार ने उस ग्राहक को भगवान का रूप मानते हुए बोर्ड को उसी के मुताबिक ठीक करवा दिया। फिर एक औरत जब सब्जी लेने आई तो उसने भी बोर्ड को देख दुकानदार से कहा, कि भाई साहब आप क्या बासी सब्जियां भी बेचते हो? दुकानदार ने इस अजीब से सवाल पर बड़े ही प्यार से कहा जी इतने सालों से आपकी सेवा कर रहा हूं, क्या आपको मेरे यहां कभी भी बासी सब्जी दिखाई दी है? तो वो औरत बोली, मैं भी तो यही कह रही हूं। फिर यह ''ताज़ा'' अक्षर इस बोर्ड में से हटवा दो। दुकानदार ने फिर से पेन्टर को बुला कर बोर्ड को ठीक करने को कहा। कुछ दिन बाद एक और ग्राहक आया तो उसने बोर्ड पर लिखा देखा कि ''सब्जियां बिकती हैं''। उसने पूछा क्या सब्जियों के अलावा भी कुछ बेचते हो? तो दुकानदार ने कहा - जी नहीं, मैं तो केवल सब्जी ही बेचता हूं। तो फिर इस बोर्ड पर यह सब्जी अक्षर अच्छा नहीं लग रहा। तुम्हारी दुकान इतनी सुन्दर हरी-भरी सब्जियों से भरी पड़ी है और सबको यह सब्जियां नजर भी आ रही हैं। दुकानदार ने फिर से बोर्ड ठीक करवा दिया। अब बोर्ड पर केवल लिखा था ''बिकती है''।
कुछ समय बाद एक साहब आए और बोले क्या आप सब्जी खरीदते भी हो? दुकानदार ने कहा, जी नहीं, मैं तो सिर्फ सब्जी बेचता हूं। वो ग्राहक बोला तो इस बोर्ड पर यह क्यूं लिखवा रखा है कि ''बिकती है''। कम से कम इसे तो हटा दो। दुकानदार को पहले की तरह यह बात भी ठीक लगी। उधर, धीरे-धीरे उस दुकानदार का सारा धंधा बिल्कुल चौपट होने लगा। एक साधु महात्मा उस बाजार से गुजरते हुए उसके पास आए। इतनी बड़ी दुकान देखकर बोले बाहर से तो दिखाई नही नही देता कि तुम्हारी इतनी अच्छी और बड़ी दुकान है। कोई एक अच्छा सा बोर्ड बनवा कर क्यूं नहीं लगवा देते? दुकानदार ने अपना सारा दुखड़ा संत को सुनाया। संत जी ने बड़े ही प्यार और शंति से उस दुकानदार को अपना बोर्ड दुबारा से ठीक तरह से लिखवाने को कहा। इसी के साथ उस दुकानदार को एक बात और समझाई, कि जिन्दगी में सुनो सबकी, करो अपने मन की, क्योंकि आप अपने जीवन में चाहे कुछ भी कर लो, जमाने का काम तो है कहना, वो तो कुछ न कुछ कहता ही रहेंगा। जमाने का काम ही है सिर्फ दूसरों की गलतीयां ढूंढना, चाहे वो खुद अपनी राह से कितना भी भटके हुए क्यूं न हो? वैसे तुम्हें एक पते की बात बता दू कि तुम्हारी तरह सच्चा इंसान वही होता है, जो हर बुराई का बदला भलाई से देता है। अब जमाना कुछ भी कहें परन्तु जौली अंकल उस की परवाह किये बिना समाज को यह कहें बिना नही रह सकते कि इस दुनियां में बहुत अधिक लोग है, लेकिन बहुत कम अच्छे इंसान। बिना सोच विचार के बोलने वालों को जमाना मूर्ख और सोच-विचार के बोलने वाले को ज्ञानी और विद्वान कहता है। अब जमाने के बारे मे और कुछ न कहते हुए अपनी बात यही खत्म करता हूँ नही तो न जाने जमाना क्या कहेगा?
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