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शनिवार, 13 मार्च 2010

मम्मी, मैने सास पटा ली


हर लड़की का बचपन से ही एक सुनहरा ख्वाब होता है, कि एक दिन परी लोक से सोने के रथ पर सवार एक सुन्दर सा राजकुमार उसे ब्याह कर ससुराल ले जाएगा। वहां उसका अपना एक खूबसूरत सुन्दर सा घर होगा। परन्तु जीवन की हकीकत किताबों-कहानियों से बिल्कुल जुदा होती है। आज के समय में लड़कियां कितनी भी पढ़ी लिखी क्यूं न हो, ससुराल में जाकर नए लोगों के बीच रहने की सोच से ही एक अजीब सी घबराहट और डर हर लडकी के दिल में कहीं न कहीं अनजानी सी परेशानी पैदा कर देता है। यह भी कटु सत्य है कि कोई मां-बा पतो क्या राजे-महाराजे भी आज तक अपनी बेटी को सदा के लिये अपने घर नहीं रख पाये। एक न एक दिन हर मां अपने जिगर के टुकड़े को अपने हाथों से डोली में बिठा कर विदा कर देती है। ससुराल में जाकर रहना हर लड़की का एक नये जन्म की तरह होता है, फिर से उसकी किस्मत नये सिरे से लिखी जाती है। ससुराल में लड़की के मन में क्या-क्या भावनाऐं उठती है, यह तो वो ही बता सकती है। ऐसी ही एक लड़की ने अपने विचार कुछ इस तरह ब्यां किये हैं।
मम्मी, मेरी शादी से पहले जो घबराहट और डर आपको भी था, वो सच ही निकला। 22-23 साल तक अपने घर में हर तरह की आजादी से रहने के बाद एकदम नये-अनजान लोगों के बीच में आकर रहना सच में ही बहुत कठिन काम है। बार-बार बचपन से ससुराल के बारे में सुनी हुई बातें याद आ रही थीं कि अगर काम ढंग से नहीं करो, तो सास चोटी पकड़ कर ससुराल से निकाल देती है। मेरी हालत तो ऐसे हो गई, जैसे किसी ने मुझे नदी के मझदार में लाकर छोड़ दिया हो। शुरू के कुछ दिन तो रिश्तेदारों के आने जाने में और हनीमून के सैर-सपाटे में बीत गये। उसके बाद मैं अपने आपको अकेला और असहाय सा महसूस करने लगी। भगवान की कृपा से घर में सब कुछ होते हुए भी मेरा मन किसी न किसी अनजानी सी उलझन में फंसा रहता है। सुबह थोड़ी देर से उठने पर कोई कुछ बोले या नहीं, लेकिन घर वालों की खामोश आखें देख कर मुझे लगता कि मेरे से कोई बहुत बड़ी गलती हो गई है।
अब तक सभी ज्ञान और आपके द्वारा दिये गये सभी संस्कारों से कहीं कोई मदद की किरण दिखाई नहीं दे रही थी। मैंने हार मानने की बजाए आपके द्वारा दी गई सलाह को मन में रखते हुए, ससुराल के तौर तरीकों को समझना और अपने मिजाज पर काबू रखने को ही बेहतर समझा। जल्दबाजी करने की बजाए थोड़ा धैर्य और अपनी छोटी सी जुबान को काबू में रखने से मेरी बहुत सी मुश्किलें आसान हो गईं। कुछ दिन पहले आपके जमाई राजा को व्यापार के सिलसले में कुछ दिन के लिये टूर पर जाना पड़ा, उनकी गैरहाज़िरी में, मैं सारी-सारी रात आगे आने वाले समय के बारे में सोच के परेशान होती रही। पूरी रात नये घर और नये लोगों के साथ जिंदगी निभाने की उधेड़-बुन में न जाने कब निकल जाती। अगले दिन जब सुबह, सोकर उठी तो मन में एक नये आत्मविश्वास का आभास सा प्रतीत हुआ। कल तक जो परेशानी हर समय एक साये की तरह मेरे साथ जुड़ी हुई थी, आज वो एक आत्मविश्वास में बदल चुकी थी।
घर में अकेले होने की वजह से मैंने सुबह जल्दी उठना शुरू कर दिया। सुबह जल्दी उठी तो सासू मां के साथ रसोई बनाने का काम भी अच्छा लगने लगा। एक-दो दिन मैंने पूरे परिवार के साथ सासू जी को भी बढ़िया सा नाश्ता बना कर खिलाया। कुछ कमियों के बावजूद भी घर के सब सदस्याें के बीचं मेरे बनाये हुऐ खाने की चर्चा होने लगी। दिन में सासू मां के साथ उनके पसन्द के टी.वी. के प्रोग्राम भी देखने का काफी समय मिलने लगा। इसी बीच कुछ रिश्तेदारों और सासू मां की कुछ सहेलियों की सेवा करने का अवसर मिला। जिसका मैंने भरपूर फायदा उठाया। सासू जी की सहेलियों की आंखों ही आंखों में अपनी तारीफ मुझे भी समझ आने लगी थी।
एक दिन घर के कुछ काम से छोटी ननद के साथ बाजार जाना पड़ा, तो वहां से मैं अपनी सासू मां के लिये कुछ खाने-पीने के सामान के साथ एक बढ़िया सी मेकअप किट भी ले आई। मेरी इस छोटी सी चेष्टा ने मुझे पूरे परिवार के बहुत ही करीब ला दिया। पहले वाला अनजाना सा डर अब एक बीते समय की बात बन चुका था। अब सासू मां बाजार या किटी पार्टी में जाते समय मुझे साथ ले जाना कभी नहीं भूलती। अब उनके चेहरे से हर समय प्यार झलकने लगा था। मुझे पता ही नहीं लगा कि कब हमारा सास-बहू का रिश्ता एक दोस्ती में बदल गया। बल्कि सच कहूं तो अब सासू मां में मुझे आपकी झलक दिखने लगी है।
अब हम सारा परिवार जब भी इकट्ठे मिल बैठते हैं, तो पूरे घर में हंसी के ठहाके गूंजते हैं। आखिर में, मैं अपने दिल की एक सच्ची बात कहना चा हूँगी, और वो सच्चाई यह है कि अब तो आप लोगों की याद भी बहुत कम आती है। मैं भगवान से सदैव एक ही प्रार्थना करती हूं कि मुझे हर जन्म में ऐसी ही ससुराल और सास मिले। पिछले कुछ बरसों में आपके द्वारा दिये गये अच्छे गुणों एवं संस्कारों के कारण मुझे पता ही नहीं चला, कि कब मैं ससुराल वालो के रंग में रंग गई, और कब मैंने सास को पटा लिया। जौली अंकल भी तो अक्सर यही कहते है कि नंम्र होकर चलना, मधुर बोलना और बांटकर खाने से न सिर्फ हमारा परिवारिक जीवन शांतमई बन जाता हे बल्कि यह तीन गुण आदमी को ईश्वरीय पद तक पहुंचाते है।

1 टिप्पणी:

suraein ने कहा…

अगर सभी बहुएं ऐसा करने लग जायेँ तो दूरदर्शन के बहुत से सीरियल बंद हो जाएंगे |
- सुरेन्द्र जीन्द