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रविवार, 14 फ़रवरी 2010

दल - बदलू

आप अगर सोच रहे हैं, कि मैं आपको किसी विधानसभा या लोकसभा की सैर पर लेकर जा रहा हूं, तो आप को अपनी सोच में थोड़ा सा बदलाव लाना होगा। यह बात तो आप भी समझते है कि विधानसभा और लोकसभा के दल-बदलुओं के चर्चे तो इतने आम हो चुके हैं, कि उन पर कुछ भी लिखना समय की बर्बादी के सिवाय कुछ भी नहीं। हमारे नेता चुनाव तो एक पार्टी की टिकट से लड़ते हैं, और फिर चुनाव के बाद मंत्री पद पाने के लिये अपने ईमान और जनता के विश्वास को ताक पर रख कर दूसरी पार्टी का दामन थामने में उन्हें कोई शर्म नहीं आती। इस मामले में कानून भी इन लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ सकता, क्योंकि कानून बनाने वाले भी यह खुद ही हैं, हर कानून को बनाते समय यह अपने बचाव का प्रावधान पहले से ही रख लेते हैं।
ना चाहते हुए भी अपने प्यारे नेताओं के बारे में लिखे बिना मैं तो क्या कोई भी नहीं रह सकता? आज मैं आपको नेताओं के अलावा समाज में पल रहे कुछ अन्य प्रकार के दल-बदलुओं की किस्मों के बारे में बताना चाहता हूं। आप कहेंगे नेताओं के अलावा कौन लोग इस श्रेणी में आ सकते हैं, क्योंकि आम आदमी का तो कोई दल होता ही नहीं तो दल-बदलू का इल्जाम उन पर किस तरह से लग सकता है? जनाब आप अपने दांये-बांये नजर घुमाइये तो सही, आप को इनकी इतनी किस्में मिलेंगी कि आप हैरान हो जाएगें।
सबसे पहले मैं आपको सबके हितैषी और समाजसेवी श्री मुसद्दी लाल जी से मिलवाना चाहूँगा। जिनके चर्चे इस क्षेत्र मे बहुत दूर तक फैले हुऐ हैं। बात कुछ दिन पहले की है, जब हमारे पड़ोस में शर्मा जी के बेटे का पासपोर्ट बन कर आया, तो मुबारक देने के बहाने और आगे का सारा कार्यक्रम जानने की उत्सुकता ने मुसद्दी लाल जी को आदतानुसार सबसे पहले वहां पहूँचा दिया। चेहरे पर एक नकली, लेकिन लम्बी सी मुस्कराट फैलाते हुए बोले, यह बहुत अच्छा किया आपने कि बेटे को नौकरी के लिये विदेश भेज रहे हों। हमारे देश में तो पढ़ाई की कोई कद्र है ही नहीं। एक बार बेटा विलायत में सेट हो गया तो शर्मा जी सारी उंम्र आपको डालरों की कमी तो आने वाली नहीं।
कुछ दिन बाद पता लगा, कि जिस एजेंट ने पांच लाख रूपये लेकर टिकट और वीजा दिलवाने का भरोसा दिलवाया था, उसे पुलिस धोखाधड़ी करने के इल्जाम में जेल की हवा खिलाने ले गई है। समाचार मिलते ही मुसद्दी लाल जी अपना सामाजिकर् कत्तव्य निभाने फिर शर्मा जी के घर की तरफ निकल पडे। वहां पहुंचते ही मुसद्दी लाल जी ने पलटी मारते हुए कहा भगवान जो भी करता है, अच्छा ही करता है, शुक्र है कि पांच लाख में ही आपकी जान छूट गई, वरना विदेश में जाकर ऐसे एजेंट पता नहीं क्या हाल करते? कुछ दिन पहले तो अखबार में पढ़ने को मिला था कि कुछ ऐसे ही लडकों को जब वहां की पुलिस ने पकड़ने की कोशिश की तो उन्होंने समुद्र में डूब कर जान ही गंवा दी। आप फिक्र मत करो, आज नहीं तो कल, बेटे को यहां भी अच्छी नौकरी मिल ही जायेगी। इतनी पढ़ाई लिखाई के बाद तो हमारे यहां की दस कम्पनियां नौकरी देने के लिये पीछे-पीछे दौड़ेंगी।
मुसद्दी लाल जी, शर्मा जी को एजेंट से पैसे वापिस दिलवाने की आस लेकर जैसे ही थाने पहुंचे तो देखा कि एक आदमी जिसको गली के किसी कुत्ते ने काट लिया था, वहां बैठे दर्द से कराह रहा था। थानेदार ने उससे हमदर्दी जताते हुऐ, सिपाही को जल्द से आदेश दिया, कि जाओ और कुत्ते के मालिक को पकड़ कर ले आओ। थोड़ी देर बाद सिपाही वापिस आकर थानेदार साहब से धीरे से बोला - जनाब जिस कुत्ते ने इसे काटा है वो तो मंत्री जी का है। उनको यहॉ लाना तो बहुत मुश्किल काम हैं।
थानेदार ने अपना रंग बदलते हुऐ उस पीड़ित आदमी को गालियां निकालकर कहा, तुम लोगों को खुद तो सड़क पर चलना आता नहीं और इल्जाम दूसरों के कुत्तों पर लगाते हो। सच बताओ कि तुमने उसके साथ क्या शरारत की थी? नहीं तो, अभी अन्दर बन्द करवाता हूँ। उस जख्मी आदमी ने डरते हुए कहा सर वो कुत्ता मंत्री जी का नहीं है, उनका तो कुत्ता सफेद रंग का है, मुझे तो काले कुत्ते ने काटा है। थानेदार को फिर कुछ कमाई के आसार बनते दिखने लगे तो उसी आदमी से बोले भाई तुम खडे क्यूं हो, आराम से बैठो। अभी उसके मालिक को लाकर हवालात में बन्द किये देते हैं। फिर सिपाही को बुला कर पहले वाला आदेश दौराहा दिया। थोड़ी देर बाद सिपाही ने आकर कहा, सर वो दूसरा कुत्ता तो मंत्री जी की पत्नी का है। यह सुनते ही थानेदार को फिर से गुस्सा आ गया और उस जख्मी आदमी को तीन चार थप्पड़ रसीद करते हुऐ गालियों के साथ सड़क पर चलने के कई तौर-तरीके भी सिखा डाले।
जौली अंकल तो सदा ही कहते है कि ऐसे लोगो के बारे में जितना भी लिखा जाए, वो शायद कम ही होगा। जरूरत है तो ऐसे हितैषी दल-बदलुओं से सावधान रहने की।    

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