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रविवार, 14 फ़रवरी 2010

राजनीति के सौदागर

हमारी कालोनी के प्रधान चिरोंजी लाल आज अपने बेटे के तीसरी बार कालेज में फेल होने से बहुत दुखी थे। अपनी पत्नी के बार-बार कहने पर वो अपनी इस परेशानी का हल ढ़ूढने के लिये अपने रिश्ते के बड़े ही रूतबे और रसूख वाले एक नेता यहां जा पहुंचे। सारी परेशानी सुनने के बाद उस नेता ने चिरोंजी लाल के हष्ट-पुष्ट बेटे को ऊपर से नीचे तक देखा और मन ही मन सोचा कि आगें आने वाले चुनावों और रेैलीयों में यह लड़का काफी काम आ सकता है।
नेता जी ने एहसान जताते हुए कहा कि आप इसे मेरे पास ही छोड़ दो। कुछ सालो में अगर यह कोई बड़ा नेता न भी बन पाया तो आपके अपने इलाके का नेता तो इसे बना ही दूंगा। चिरोंजी लाल ने पूछा कि क्या यह कुछ अपने घर परिवार के लिये कमा भी पायेगा या सारा समय जनता सेवा में ही बर्बाद कर देगा। नेता जी ने होंसला देते हुए कहा अगर राजनीति में चमक गया, इसके तो क्या, इसकी आने वाली कई पुश्तो के वारे न्यारे हो जायेगे। यदि वहां भी फिस्व्ी रहा तो कुछ बरसो बाद अपनी आत्मकथा लिख कर आपकी सारी उंम्र की कमाई से भी कहीं अधिक कमा लेगा।
सब कुछ बहुत ही गौर से सुनने के बाद चिरोंजी लाल माथे पर ंचिन्ता की रेखाओ के साथ बोले नेता जी इस बेवकूफ को राजनीति के बारे में कुछ भी जानकारी तो है नही। ऐसे में यह आपके साथ क्या कुछ कर पायेगा? नेता जी ने फिर से ढाढस बधाते हुऐ कहा कि आप तो हर बात की बहुत अधिक ंचिंन्ता करते हो। आज की राजनीति ऐसी नही है। आप न जाने किस युग की बात कर रहे हो। चिरोंजी लाल जी आजकल राजनीति भी कोई बुरा धन्धा नही है। क्या आप आए दिन समाचार पत्रो और टी.वी. मे नही देखते कि आजकल के नेता कभी जाति, भाषा और धर्म के नाम पर जनता को अपने लच्छेदार भाषणों से किस तरह गुमराह करते है। किसी भी छुटभैया को नेता बनाने के लिये आग में घी डालने का बाकी सारा काम मीडियॉकर्मी कर ही देते है।
हमारे देश की अधिकतर अनपढ़ कही जाने वाली जनता बहुत ही भोली है। वो अपने प्रिय नेताओ की वोट बैंक की राजनीति की गहराई को नही समझ पाती। आम लोग पांच वर्षो तक बिना भेद-भाव किए एक दूसरे के साथ भाईयो की तरह मिलजुल कर रहते है। चुनाव आते ही वो अलग-अलग पार्टीयो के रंग में रंगने शुरू हो जाते है। अगर आप ने कभी इतिहास के पन्ने पल्टे हो तो आप यह बात जरूर जानते होगे कि राजनीतिक पार्टीयॉ अपने वोट बैंक में बढ़ोतरी करने के लिये धर्म का खुल का दुर्पयोग करती रही है। बड़े नेताओ को किसी खास धर्म, कौम या मजहब से कोई हमदर्दी नही होती न ही नेताओ का कोई ईमान होता है। जनहित की समस्याओ के बारे मे सोचने का तो इन लोगो के पास समय ही नही होता।
आपका धर्म चाहे कोई भी हो, आप आस्था किसी भी भगवान में रखते हो, फर्क तो सिर्फ विचारो का ही होता है। क्योंकि चाहे कोई हिन्दू, मुसलमान या सिख हो, सब लोगो के हाथ पैर और शरीर के सभी अंग तो एक समान ही होते है। अब कोई सिख धर्म का मानता है या किसी हिन्दु देवी देवता को पूजता है तो यह उस व्यक्त्ति की उस धर्म के प्रति सोच और आस्था ही होती है। एक आदमी जंन्म से सारी उंम्र एक खास धर्म का मानता है, लेकिन एक दिन अचानक किसी साधू-संत से प्रभावित हो कर वो अपना धर्म बदल लेता है। अब उसके शरीर में तो कोई बदलाव नही आता, सिर्फ उसकी सोच और विचार ही बदलने से उसके धर्म का अर्थ बदल जाता है। लेकिन हमारी राजनीति में इन सब बातो का कोई महत्व नही होता।
यह सब कुछ सुनने समझने के बाद चिरोंजी लाल का माथा घूमने लगा कि हमारे प्रिय नेताओ के चेहरो पर नकाब की कितनी परते चढीे हुई है। हमारे देश में गद्दार कहीं बाहर से नही आते ब्लकि हमारे बीच में से ही पैदा होते है। जनता को दगा देने वाले हमारे आस पास रहने वाले हमारे नेता ही है। यही लोग कभी मंदिर, कभी मस्जिद को मुद्दा बना कर समाज को हैवानीयत की आग में झोंकते रहते है। स्वार्थी नेताओ का कोई धर्म और ईमान नही होता। आज यदि देश में अमन, शांति और भाईचारा कायम रखना है तो राजनीति और धर्म को बिल्कुल अलग-अलग रखना होगा।
अब जौली अंकल की बात माने तो जैसे हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में कोई भी नेक काम शुरू करने से पहले धर्म का साहरा ले कर उसे पूजा पाठ से शुरू करते है, उसी तरह से राजनीति में धर्म का साहरा लिया जाए तो हमारे नेताओ के मन भी शायद पवित्र हो जायेगे। परन्तु जब राजनीति के सोदागर धर्म को हथकंडा बना लेते है तो फिर आप और हम तो क्या भगवान भी हमारे देश को नही बचा सकते।     

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