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रविवार, 14 फ़रवरी 2010

इस देश का यारो क्या कहना

हर वर्ष स्वतन्त्रता दिवस के शुभ दिन को मनाते हुए हमें देश के गौरवशाली इतिहास के साथ अपने प्रिय परन्तु भूले-बिसरे बापू भी याद आ ही जाते है। बापू का स्मरण आते ही उनके तीन बंदरो की धुंधली सी छवि भी मन के किसी कोने में उभरने लगती है। क्या आप ने कभी गौर किया है यदि आज के युग में बापू फिर से चंद दिनों के लिये अपने देश भारत में वापिस आ जाये तो उन्हें कैसा महसूस होगा? पहले जहां बापू बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत कहो के अपने सदेंश को आम आदमी तक पहुंचाने का काम केवल तीन बंदरों से चला लेते थे।
अब तो ऐसा लगता है कि आज के इस भ्रष्टाचार के दौर में देश में हर तरफ बढ़ती अराजकता, भूखमरी, बेरोजगारी, लूट-पाट एवं सैंकड़ो अन्य जुर्मा और कुकर्मो के चलते बापू का काम शायद 300 बंदरो से भी न चल पाये। इस से भी बड़ी परेशानी की बात तो यह होगी कि यह सभी बंदर बेचारे कहां-कहां हाथ रखेगे?
आजादी के इतने वर्षो के बीत जाने के बाद भी हमारी सरकार को जनता की बुनियादी जरूरतों और तकलीफो से कोई कतई सरोकार नही है। देश के बाकी हिस्सो को यदि छोड़ कर हम केवल राजधानी दिल्ली की ही बात भी करे तो यहां रहने वाला हर शक्स बिजली, पानी, मंहगाई, भ्रष्टाचार और बढ़ते जुर्म ग्राफ से परेशान है। हर कोई अच्छी तरह से जानता है कि नेताओ की शह से ही व्यापारी वर्ग मोटे मुनाफे के लालच में दिन-प्रतिदिन वस्तुओं के दाम बढ़ाता चला जा रहा है। आखिर दाम बढ़ाये भी क्यूं न, चुनावों के दौरान एक-एक नेता पर करोड़ो रूप्ये खर्च करने की भरपाई करने का न सिर्फ उनका हक बनता है, बल्कि जन्मसिद्व अधिकार भी है।
कहने को हमारे देश में सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है, लेकिन सरकार को चलाने का काम हमारे देश के चंद बड़े व्यापारिक घराने ही करते है। इसका जीता जागता उदारण यह है कि जब कभी किसी उद्योगपति ने किसी नेता को मिलना हो तो उनके लिये सरकार के सभी दरवाजे हर समय खुले मिलते है, जबकि एक आम आदमी का उस और मुंह करके देखना भी अपराध माना जाता है जहां हमारे नेतागण अपने सैंकड़ो सुरक्षकर्मीयों के बीच कड़ी सुरक्षा में रहते है। आज सत्ता के गलियारों में चहलकदमी करने वाले हमारे नेताओ को आजादी के उन मतवालों का नाम भी ठीक से याद नही जिन्होनें देश और आजादी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया था। कुछ नेताओ को तो राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत में फर्क तक मालूम नही, और वो यह भी नही जानते है कि इनकी रचना किस महापुरष ने की थी।
कुछ बरस पहले तक अजादी के इस पावन मौके पर हर देशवासी के दिल में देशभक्ति की हिलोरे उठने लगती थी। फिल्म निर्माता भी चाहें पैसा कमाने की चाह में अजादी से जुड़े कई विषयों पर फिल्में और गीत बनाते थे, लेकिन अब तो ऐसी फिल्मों की फसल तो हमारे देश में दूर-दूर तक भी कहीं देखने को नही मिलती। आजादी दिवस और रंग-बिरंगी पंतग उड़ाने का चौली दामन का रिश्ता बन चुका है। यह पंरमपरा कब और कैसे शुरू हुई, इस बारे में तो कोई शौधकर्ता या स्वतंत्रता सैनानी ही प्रकाश डाल सकता है। दूर-दराज रहने वाले हर देशवासी को आजादी और प्रेम भावना का जो संदेश हमारे नेता देना भूल गये है, लगता है आसमान में दुल्हन की तरह सजी-संवरी इन पंतगो को उड़ते देख मन में यह भावना जरूर आती है कि यह पूरे देश में मेलजोल और भाईचारे के सदेंश को फैलाने का काम कर रही है।
आजादी से चंद दिन पहले ही सुरक्षा के मद्देनजर जमीन से आसमां तक हर जनसाधारण को परेशान किया जाता है। देश के कई हिस्सो में हाई अलर्ट के नाम पर लोगो की दुकाने और रोजी रोटी कमाने के हर जरिये को पुलिस वाले बंद करवा देते है। रेडियो टी.वी वाले आम देशवासीओं और स्कूली बच्चो में इस दिन को लेकर कितने ही उत्साह का बखान करे, लेकिन एक जनसाधारण तो क्या लाल किले की और परिंदा तक भी पर नही मार सकता।
मजबूरन हर किसी को घर में पड़े टी.वी के माध्यम से ही कुछ सरकारी अफसरों द्वारा लिखा हुआ प्रधानमंत्री का हर वर्ष की तरह रटा-रटाया भाषण और कभी न पूरे होने वाले आश्वासनों की एक लंबी सूची सुनने को मिलती है। अनेकता में एकता को दर्शते हुए कुछ एक पुरानी बातो की धर्म जाति के नाम पर दुहाई दी जाती है। जबकि कड़वी सच्चाई यह है कि आजादी के इतने सालों बाद भी आम आदमी के साथ हुए अत्याचार के खिलाफ इंसाफ मिलना तो दूर उस जुर्म की रिपोर्ट भी बिना सिफारिश या रिश्वत के दर्ज नही की जाती।
सरकारी दावे कुछ भी कहें, आम आदमी के लिये आजादी के क्या मायने है लाचारी और बेबसी की यह दांस्ता हमारे देश की हर गली और चौराहो का नजारा खुद-ब-खुद ब्यां कर देते है। जौली अंकल तो इस मसले पर कुछ भी और कहने से बचते हुए केवल इतना ही कहते है कि इस देश का यारो क्या कहना?   

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

Most interesting and entertaining articles. Congrats to Jolly Uncle.