Life Coach - Author - Graphologist

यह ब्लॉग खोजें

फ़ॉलोअर

रविवार, 14 फ़रवरी 2010

हाथी के दांत ................

आऐ दिन बदलते जमाने की तरक्की का एक से बढ़ कर एक करिश्मा देखने को मिलता है। चंद दिन पहले सुबह-सुबह मुसद्दी लाल जी विदेश से मंगवाए हुए नये मोबईल फोन का अपने दोस्तो के बीच सार्वजनिक प्रर्दशन कर रहे थे। पास खड़े उनके एक मित्र ने पूछ लिया कि इसमें ऐसा क्या है जो सभी लोग अपना कामकाज छोड़ कर यहां जमघट लगा कर बैठे हो? मुसद्दी लाल ने शेखी बघारते हुए कहा कि यह कोई साधारण फोन नही है। इसमें दो-दो नंबर इक्ट्ठे चल सकते है। और तो और आप किसी की भी आवाज बदल कर बात कर सकते हो। सभी दोस्त बड़े ही जोश से इस अजूबे को देख ही रहे थे कि अचानक टर्न-टर्न करते हुए घंटी बज उठी।
मुसद्दी लाल जी बहुत ही गंभीर मुद्रा में सारी बात सुन रहे थे। बीच-बीच में चेहरा बहुत ही गमगीन और उदास बना लेते थे। बातचीत से ऐसा लग रहा था कि किसी नजदीकी रिश्तेदार के साथ कोई बहुत ही बड़ी अनहोनी घटना हो गई है। बातचीत के आगे बढ़ने के साथ ही मुसद्दी लाल जी के चेहरे पर चिंता की रेखाऐ गहराती जा रही थी। हर कोई महसूस कर रहा था कि मुसद्दी लाल को सच में फोन करने वाले से बहुत अधिक हमदर्दी है। इससे पहले कि इनकी बात पूरी हो पाती एक बढ़ियां से गाने की धुन पर दूसरा फोन बज उठा। अब मुसद्दी लाल जी ने इसे होल्ड करवा कर दूसरे फोन पर बात शुरू कर दी।
यह फोन उनके साले ने अपने बेटे के जन्म की सूचना देने की खुशी में किया था। पल भर पहले वाले मुसद्दी लाल जी के चेहरे पर अब रौनक देखते ही बन रही थी। अब वो अपने साले को दिल खोल कर बधाईयां दे रहे थे। बड़ी सी पार्टी की फरमाईश हो होने लगी थी। यह सब कुछ देख मन में आया कि ऐसे लोग ही हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और वाली कहावत को चिरतार्थ करते है। शायद इसीलिये इंसान ने अपनी सभी कमजोरियों को छुपाने के लिये अधिकांश: मुहावरे और कहावते जानवरों पर अधारित करते हुए ही बनाई है। जबकि हर कोई जानता है कि असल हकीकत तो यह है कि इंसान हर पल जानवरों से बढ़ कर नौटंकी करता है। मासूम से दिखने वाले चेहरे के पीछे कौन सा शैतान दिमाग काम कर रहा है, आप-हम तो क्या भगवान भी ऐसे लोगो को पहचानने में धोखा खा जाऐ।
इससे पहले कि मुसद्दी लाल जी के इर्द-गिर्द जमा हुई चौकड़ी अपने-अपने घर का रूख करती, मुहल्ले के असलम दादा के पिता की मौत का सदेंश आ गया। अपने पिता की तरह असलम ने अनपढ़ होते हुए भी डंडे के जोर पर सारे इलाके में अच्छा दबदबा बना रखा था। थाने के अफसरों से लेकर नेताओ तक के बीच उसका अच्छा उठना बैठना था। सुबह-सुबह मुहल्ले के लोग यह संदेश सुन कर बड़े ही असंमजस में थे कि अब सारा दिन इस गर्मी में असलम के घर बैठना पड़ेगा। इससे भी अधिक सभी को यह चिंता सता रही थी कि यदि असलम ने किसी को शव-यात्रा की तैयारी, खाने-पीने का इंतजाम या टैंट आदि लगवाने को कह दिया तो महीने के आखिरी दिनों में पैसो का जुगाड़ कहा से होगा? इससे बड़ी मसुीबत यह लग रही थी कि असलम दादा से पैसे वापिस कैसे मिलेगे?
जब अंतिम संस्कार के कार्यक्रम की बात शुरू हुई तो गर्मी से बचने के लिये मिश्रा जी ने नगर निगम की गाड़ी मंगवाने का सुझाव दे डाला। असलम ने झट से उन्हें ही यह जिम्मेंदारी सौंप दी। अब मिश्रा जी उस पल को कौस रहे थे जिस में उन्होनें यह सुझाव दिया था। मिश्रा जी की किस्मत तो उस समय और भी फूट गई जब शव यात्रा के दौरान पैट्रोल खत्म हो जाने पर रास्ते में ही गाड़ी बंद हो गई। गर्मी से बेहाल एक और सज्जन ने कह दिया कि अब इतनी दूर जाने की बजाए यहीं नजदीक वाले क्रब्रिस्तान में ही इन्हें दफना दो। असलम ने सुझाव को मानते हुए कब्र खोदने के लिये कह दिया। इतनी गर्मी में जब कब्र खोदने वालो को दिक्कत आने लगी तो असलम के ही एक रिश्तेदार ने कह दिया कि इन्हें इसी छोटे से गव्े में ही दफना दो, हमने यहां कौन सा टयूबवैल लगवाना है।
दूर खड़े जौली अंकल हर चेहरे के पीछे छिपे हुऐ चेहरे को समझने का प्रयत्न कर रहे थे। उनके मन में एक ही विचार आ रहा था कि दुनियां का यह कितना बड़ा आश्चर्य है कि मनुष्य प्राणियों को आये दिन यम के पास जाते हुए देखता है और फिर भी इस छल-फरेब की दुनियां में ही जीना चाहता है। इंसान अगर एक बार यह समझ ले कि ईमानदारी हजार मनकों की माला में एक हीरे की तरह चमकती है, तो फिर हमें कोई यह नही कह पायेगा कि हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और होते है।     

कोई टिप्पणी नहीं: