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रविवार, 14 फ़रवरी 2010

खानदानी नेता

शहर की सड़को के किनारे, बस अवे, पार्को के गेट और यहां तक कि सुलभ शोचालय आदि में हम सभी ने खानदानी हकीमो, वैघो आदि के पोस्टर अक्सर देखे होगे। ऐसे लोगो के पास हर बीमारी की दवा से हर उंम्र में जवानी और जोश भरने के अनेको फार्मूलो का दावा किया जाता है। कुछ हकीम तो सिर्फ नब्ज देख कर आपकी हर बीमारी के बारे में बताने के साथ उस का इलाज भी कर देते है। कुछ रईस परिवारो के गहने आदि बनाने के लिए सुनियारे और धर्म-कर्म के कार्यो के लिये पुश्तैनी पंडित भी पीढ़ी दर पीढ़ी चलते आ रहे है।
लेकिन आज मैं आपको समाज में उपज रही खानदानी नेताओ की एक नई नसल से मिलवा रहा  हूँ। ऐसे लोग हमारे बीच रहते हुए सदा जन सेवा के नाम का ढ़िढारो तो पीटते रहते है, लेकिन बात जब पैसा कमाने की हो या अपने हितो की तो इनको अपने खानदान के इलावा कोई दूसरा व्यक्त्ति नजर नही आता। अब आप ही बताए की ऐसे लोगो को खानदानी नेता के इलावा हम और पदवी दे सकते है?
खानदानी मोह की पंरम्परा के इतिहास को जानने की कोशिश करे तो हमें मालूम पड़ता है कि यह हमारे देश में महाभारत के समय से शुरू हुई थी। एक अंधे राजा के पुत्र मोह के कारण भगवान श्री कृष्ण भी महाभारत का युध्द नही टाल सके। अनेक राजे-महाराजाआें का अपने परिवार के प्रति मोह और अधिक से अधिक धन कमाने की लालसा की प्रथा को देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने आजतक जारी रखा हुआ है। अब तो इसकी जड़े इतनी गहरी और मजबूत हो चुकी है कि हमारे चारो और खानदानी नेताओ का जाल सा बिछ गया है।
आज के नेताओ के बच्चे राजनीति की कितनी समझ रखते है, वो गरीब आदमी के दुख दर्द को किस हद तक हल कर सकते है, इससे इनका कोई वास्ता नही होता। उनकी योग्यता क्या है, वो किसी समाजिक कार्य करने के काबिल है भी या नही, हमारे नेता वो सब कुछ जानना ही नही चाहते। नेता परिवार के वारिस होने के नाते सभी वरिष्ठ कार्यकत्तर्यो को पीछे छोड़ अपने पिता की गद्दी के वो अकेले ही एक मात्र वारिस बन जाते है।
आज हमारे नेताओ के निजी हित पार्टी, जनता और देश सभी से ऊपर हो चुके है। देश और जनता के बारे में तो वो तभी सोच सकते है जब इन्हें अपने खानदान के लोगो के हितो के इलावा कुछ सोचने से कभी फुर्सत मिले। ऐसा लगता है कि आत्मा, जामीर, इन्साफ और सच्चाई जैसे शब्द इन लोगो के शब्दकोश में नही होते। ऐसे नेताओ का न तो कोई चरित्र होता है और न ही इन्हे अपने सम्मान की कोई परवाह। गद्दी हासिल करने के लिए यह किसी भी हद तक गिरने को तैयार रहते है।
खानदानी नेता अधिक से अधिक धन-सम्पति अर्जित करने के लिये हर क्षेत्र में अपने भाई, बेटे और दमादो को किसी न किसी मोटी कमाई वाली कुर्सी पर बिठा ही देते है। चुनावो के समय एक साधारण से फलैट में रहने वाला नेता चुनाव जीतने के चंद महीनो बाद ही फलैट से कोठी, कोठी से बंगले और बंगले से एक आलीशान फार्महाऊस तक पहुंच जाता है। आप किसी तरफ भी नजर घुमा कर देख लो आपको आज की राजनीति में अधिकतर ऐसे ही खानदानी नेताओ का जमावड़ा नजर आयेगा।
एक जनसाधारण जब कभी मंहगाई, आंतकवाद, भष्ट्राचार या अपनी अन्य किसी मजबूरी का दुखड़ा लेकर इनके पास जाता है तो यह इस तरह अनजान बन जाते है जैसे यह इस लोक में न रह कर किसी दूसरे लोक से आये हो। जो कुछ हमारे समाज में हो रहा है वो सब इनके लिये एक तमाशे से बढ़ कर कुछ नही। भगवान ने न जाने ऐसे लोगो का दिल भी किस मिट्टी से बनाया है कि एक निर्दोष, लाचार, गरीब और मासूम आदमी का खून बहते देख कर भी इनकी आंखो से आंसू नही निकलते। अजादी के तकरीबन 60 साल बाद हमारे नेता तो हर दिन मालदार होते जा रहे है और एक जनसाधारण को अपने परिवार के लिये दो वक्त की दाल रोटी जुटाना भी दुश्वार होता जा रहा है।
यह जानते हुए भी कि चिकने घड़े पर किसी चीज को कोई असर नही होता जौली अंकल अपने प्रिय नेताओ से एक बार फिर उम्मीद करते है कि एक बार तो कोई ऐसा करशिमा कर दिखाओ कि हर देशवासी गद्गद् हो उठे।     

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