शिक्षा, विज्ञान, कंम्पटूयर, दूर-संचार या अन्य किसी क्षेत्र की बात करें तो हर तरफ से एक ही आवाज सुनाई देती है, कि हमारे देश ने पहले से बहुत तरक्की कर ली है। अधिकतर लोग हर सुबह की शुरूआत समाचार पत्रों का पढ़ कर इस उम्मीद से करते है कि उनके जीवन को सुखमई बनाने के लिये आज कोई न कोई अच्छी खबर जरूर होगी। लेकिन निराशा उस समय होती है, जब देश की बिगड़ती व्यवस्था को देख कर उच्चतम न्यायलय को यह कहना पडे कि 'इस देश को भगवान भी नही बचा सकते'। आज हमारे देश की ऐसी निराशाजनक और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति क्यूं बनती जा रही है। हर देश और इलाके की कुछ न कुछ समस्याऐ तो होती ही है, लेकिन वहां की सरकारो की नैतिक जिम्मेदारी बनती है, कि जनहित में उनका जल्द से जल्द समाधान किया जाए। हमारे देश में खासतौर से देश की राजधानी दिल्ली में भी समस्याओं के अंभार है। लेकिन यदि हम सभी समस्याओं का एक साथ हल निकालने की कोशिश करेगे तो यह एक और बड़ी समस्या बन जायेगी।
हमारी सरकार चाहे देश में चौमुखी विकास का कितना ही ढ़िढारो क्यूं न पीट ले, लेकिन सच्चाई तो यह है कि कुछ अरसा पहले हम सब जो सफर चंन्द मिन्टों में पूरा कर लेते थे, आज दिल्ली जैसे शहर में हमें अपनी मंजिल पर पहुंचने के लिये घंटो का वक्त लग जाता है। थोड़ी सी बरसात ही पूरे शहर का जीवन अस्थ-व्यस्थ कर देती है। इस के बावजूद अधिकारीयों के कान पर जॅू तक नही रेंगती। क्या हमारी सरकार सचमुच इतनी लाचार और नापुंसक हो गई है, कि वो इस क्षेत्र में कुछ भी करने में असमर्थ है? ऐसा कुछ भी नही है, जरूरत है तो सिर्फ सच्चे मन और लगन से कुछ जरूरी मुद्दो पर कठोर कदम उठाने की और नगर सन्निवेश पर वास्तविक योजना को अमल में लाने की। हालिक हमारे अधिकारीगण इन बातो को अच्छी तरह से जानते है, लेकिन उनकी कमजोर पड़ गई स्मरण शक्ति को ताजा करने के लिये कुछ निहित मुद्दे बताना चाहता हूँ,।
- यातायात और सड़क पर चलने के नियम बचपन से हर स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ सिखाए जाये जिससे कि यह सब कुछ उनके स्वभाव में रच-बस जाये। जिस तरह बच्चे स्कूल बस और कैब में पूल करके इक्ट्ठे जाते है, ठीक उसी तरह से बड़ो को भी यह आदत बनाने की जरूरत है। इससे सड़को पर गाड़ीयों की भीड़ कम होगी और लोगों में प्रेम और सद्भावाना भी बढ़ेगी। शहर की मुख्य सड़को पर हर प्रकार के जलूस, जलसे और रैलियो पर रोक लगाने की सख्त जरूरत है। इससे न सिर्फ आम आदमी का जनजीवन अस्थ-व्यस्थ होता है, परन्तु कई बार रोगीयों को अस्पताल पहुंचने में भी बहुत दिक्कत होती है। समय पर ठीक से उपचार न मिलने के कारण कुछ लोगो की मौत तक हो जाती है। सड़को पर छोटी-छोटी बात को लेकर अक्सर झगड़े हो जाते है। पढ़े-लिखे होने के बावजूद लोग एक दूसरे को गालीयों के साथ उनकी मां-बहन को भी याद करने लगते है। कई बार तो ऐसे झगड़ों में गोलीयॉ तक चल जाती है। मीडियॉ के बढ़ते प्रचार के कारण इससे न सिर्फ अपने देश में ब्लकि विदेशो में हमारे देश की छवि बुरी तरह से खराब होती है।
- सड़को पर पटरी वालो का नजायज कब्जा, गलत ढंग से कार-स्कूटर खड़े करने से भी बहुत हद तक सड़क पर चलने वालों के लिये समस्यां बढ़ती है। यह समस्यां तब और भी बढ़ जाती है, जब हमारे नेतागण ऐसे लोगो के बचाव में खड़े हो जाते है। दिल्ली में मैट्रौ रेलवे के आने से ट्रैफिक की समस्यॉ कुछ हद तक जरूर हल हुई है, लेकिन आज भी अधिकतर लोग आटो-रिक्शा और टैक्सी वालो के मनचाहे रवैये से दुखी होकर अपने वाहन पर ही निर्भर करते है।
- अगर समाज के किसी वर्ग ने किसी प्रकार का रोष प्रकट करना ही है, तो सरकार हर प्रकार के जलूस, जलसे और रैलियो के लिये एक खास स्थान मुहैया करवाये। यहां मैं एक बात खासतौर से कहना चाहूंगा कि हमने पशिचमी देशो से उनके खान-पान, रहन-सहन और हर प्रकार के तौर तरीके सीखे है, लेकिन छोटी-छोटी सम्सयाओं को लेकर विरोध करने का तरीका उनसे नही सीखा। उन लोगो ने किसी भी तरह का विरोध करना हो तो वो हमारी तरह बसो को तोड़ कर उन में आग नही लगाते, सरकारी सम्पति को नुकसान नही पहुचाते अपित् अपनी बाजू पर एक काली पट्टी बांध लेते है। उनका यह संदेश सरकार तक पहुंच जाता है, और वो लोग आपस में बैठ कर बातचीत करके उस समस्यां का कोई न कोई हल निकाल लेते है।
- हर बड़े शहरों में अनगिनत माल्स बनते जा रहे है। अगर हमारी सरकार उन माल्स के व्यापारीयों को उसी इमारत में ऊपर घर बनाने की इजाजत दे दे, तो कई हजार गाड़ीयॉ रोज सड़को पर नही उतरेगी। वो लोग सीधा अपने घर से नीचे अपनी दुकान पर आकर अपना व्यापार असानी से कर सकेगे। इसी प्रकार की योजना हम ओधिोयिग घरानों के लिये भी बना सकते है। शहर की अधिकतर सडके खस्ता हाल में होती है। इसके लिये कोई एक खास एैजेंसी बनाने की जरूरत है, जो सब सड़को की ठीक से देखभाल कर सके। इस तरह की एैजेंसी का फोन नंम्बर एक आम को पता होना चहिये, जिससे की सड़क हादसों में कमी आ सके।
- अधिक जनसंख्या की दुहाई देकर कुछ अधिकारी नियम लागू कर पाने में असमर्थता जताते है। ऐसे लोगो को मैं श्रीमति किरन बेदी की याद दिलाना चाहता हूँ, जब उन्होनें दिल्ली की ट्रैफिक की जिम्मेदारी सम्भाली तो एक जनसाधारण कहीं भी गलत जगह से गाड़ी करने से पहले कई बार सोचता था। पूरी दिल्ली में किरन बेदी जी को क्रैन बैदी के नाम से जाना जाता था। उस समय के सब लोग जानते है कि किरन बेदी की दहशत शौले फिल्म के गब्बर सिंह से कही अधिक थी।
इसी तरह के थोड़े से प्रयासो के बाद जौली अंकल के साथ हम भी गर्व से कह सकेगें कि हमारे देश ने सच में तरक्की कर ली है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें