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रविवार, 14 फ़रवरी 2010

डा॰ मुसद्दी लाल उर्फ मदारी

डा॰ मुसद्दी लाल मदारी का नाम गांव के सबसे पढ़े-लिखे लोगों में बड़ी इज्जत से लिया जाता है। वो कहां से और कितना पढ़े हैं, इसके ऊपर अभी भी जनता में शोध कार्य चल रहा है। गांवों के कुछ लोग इतना जरूर जानते हैं कि डाक्टरी की दुकानदारी शुरू करने से पहले वो किसी अस्पताल में नौकरी करते थे। वो वहां किस पद पर असीन थे, यह भी अभी तक एक गहरा राज है। इन सब बातों के बावजूद भी डा॰ मुसद्दी लाल उर्फ मदारी की दुकान धड़ल्ले से चलती है।
डा॰ मुसद्दी लाल उर्फ मदारी सिरदर्द से शर्तिया बेटा होने तक की हर बीमारी का इलाज करने में माहिर है। किसी भी बीमारी से पीड़ित कोई भी मरीज उनके पास आ जाए, वो उसे दवाई लिये बिना नहीं जाने देते। एक दिन अभी डा॰ अपनी कुर्सी पर आकर बैठे ही थे, कि एक गांव का चौधरी अपनी रोती चिल्लाती औरत को लेकर आ पहुंचा। ओ डा॰ जरा इसने भी देख, सीढ़ियों से गिर गई सै। लगता है कोई टांग की हड्डी टूट गई सै। इससे पहले कि डा॰ जांच शुरू करके चोट के बारे में पूछता, पीछे रखे रेडियो से गाना शुरू हो गया, यह क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ? गाना सुनते ही मरीज भी दर्द को भूल कर वहां साथ बैठे सब लोगों के साथ जोर से हंसने लगी।
डा॰ मदारी की दुकान लोगों के मनोरंजन और टाईमपास करने का गांव में सबसे सस्ता और बढ़िया जरिया है। एक बार एक अप-टू-डेट लड़का कोई दवाई लेने आ पहुंचा। डा॰ के ध्यान न देने पर उसने कहा लगता है, आपने मुझे पहचाना नहीं। मैं चौधरी साहब का बेटा हूं। डा॰ ने चश्मा ठीक करते हुए कहा, बेटा मैं कुछ नहीं भूलता मुझे तो तेरा बचपन तक याद है। जब मैं तुम्हारे घर आता था तो घर के बाहर नाली पर बैठ कर पौटी कर रहा होता था। जहां लोग सांस भी नहीं ले सकते, तू वहां साथ में बिस्कुट खाता रहता था। एक दिन मैं तेरे पिता से बात कर रहा था और तूने अन्दर आकर अपनी मां से कहा था, मम्मी आज मैंने सात ढ़ेरियां लगाईं। तेरी मां ने कहा, बेटे गिनती नहीं करते, नजर लग जाती है। पीछे से चौधरी साहब ने गुस्सा करते हुऐ तेरी मां को कहा था, बेवकूफ उसने कोई डालरों के ढेर नहीं लगाए - गन्दगी के ढ़ेरों की बात कर रहा है। वो लडका दवाई लेना तो भूल गया और आखें नीची करके वहां से खिसकने में ही उसे अपनी भलाई नजर आई।
डा॰ मुसद्दी लाल मदारी अखबारों और मैगजीन से दादा-दादी के नुस्खे पढ़कर एक अरसे से अपनी दवाईयों की दुकानदारी चला रहे है। लेकिन कई बार मरीजों को गलत दवाई देने के साथ गलत मरीजाें के साथ पंगा भी हो जाता है। ऐसा ही एक घटना उनके साथ पिछले दिनों में घटी। गांव के थानेदार की तबीयत कुछ खराब हुई तो उन्हें भी डा॰ मदारी की याद सताने लगी। थानेदार साहब थोडी देर बाद ही डाक्टर के सामने बैठे थे। कुछ इधर-उधर की बातें करने के बाद थानेदार ने अपनी तकलीफों की लिस्ट डाक्टर को सुनानी शुरू कर दी।
डा॰ मुसद्दी लाल मदारी मन ही मन बहुत प्रसन्न हो रहे थे कि आज बहुत दिनों के बाद कोई अच्छा सा मुर्गा हाथ लगा है। कुछ दवाईयां जो बरसों से डिब्बो में बन्द थीं उन्हें भी आज ताजी हवा नसीब होगी। थानेदार की आधी-अधूरी बात सुन कर डाक्टर ने अपनी पुरानी आदतानुसार दवाईयां तैयार करनी शुरू कर दी। चार-पांच अलग किस्म की गोलियां और एक दवाई की बोतल थानेदार के सामने रख दी। इससे पहले की थानेदार कुछ कहता, मुसद्दी लाल की किस्मत खराब, उसने 150 रूपये फीस की फरमाईश कर दी।
डाक्टर के पैसे मांगने की हिम्मत देखकर थानेदार का खून उबलने लगा था। पूरे इलाके में आज तक किसी ने दूध-दही, राशन वाले ने भी यह गलती नहीं की थी। थानेदार को लग रहा था कि जैसे पैसे मांग कर डाक्टर ने उसे कोई गाली दे दी हो। कुछ दिन पहले जब थानेदार की मां का देहान्त हुआ था तो तेरहवीं के खाने के लिये बनिये को राषन की एक लम्बी सी लिस्ट भिजवा दी गई थी। और साथ में हिदायत दी गई की सब सामान बढ़िया होना चाहिये, थानेदार साहब की मां की तेरहवीं है। बनिये ने रूआंसा सा मुंह बना कर कहा था थानेदार साहब की कहा, यहां तो मेरी मां मरी पड़ी है। क्याेंकि वो अच्छी तरह से जानता था कि यहां से एक पैसे की भी प्राप्ति होने वाली नहीं। इतने रौब-दाब वाले थानेदार से पैसे मांग कर डा॰ मदारी ने कितनी बड़ी गलती की थी, इसका अन्दाजा उसे भी अच्छी तरह से लग चुका था।
थानेदार ने पैसे तो क्या देने थे? हां डाक्टर की डाक्टरी पर जरूर कई प्रश्न चिन्ह लगा दिये। उससे उसकी पढ़ाई और डिग्रियों के बारे मे तफतीष शुरू कर दी थी। गांव में हुई एक-दो मौतों की जिम्मेदारी भी डा॰ मदारी के ऊपर डाल दी। अब तक डाक्टर को अच्छी तरह से समझ आ गया, कि उसने जानबूझ कर मधुमक्खियों के छत्ते में हाथ डाल दिया है। अब उससे बचने के लिये थानेदार साहब के लिये बढ़िया से नाश्ते पानी का इन्तजाम शुरू कर दिया।
इससे पहले कि डाक्टर का नौकर नाश्ता-पानी ले कर आता, थानेदार ने डाक्टर की कमाई का हिसाब लगाना शुरू कर दिया। डाक्टर ने भी मौके की नजाकत को समझते हुऐ पिछले 15-20 दिनों की सारी कमाई थानेदार की जेब में डाल दी। अपनी दुकानदारी को आगे भी ठीक से चलता रखने के लिये कई बार माफी भी मांगी। जहां आजकल मुन्ना भाई जादू की झप्पी से लोगों का इलाज करता है। वही हमारे प्रिय डा॰ मुसद्दी लाल मदारी के अधिकतर मरीज तो इनकी चुलबुली हरकतों से ही ठीक हो जाते हैं। सीखने वाले अपनी हर भूल से कुछ न कुछ जरूर सीखते है। जौली अंकल का मानना है कि ऐसे झोला छाप डॉक्टरो से दूर रहने का सबसे बढ़ियां तरीका है कि आप हंसकर अपने दुखों को दूर कर सकते है, परन्तु रोने से तो आपके दुख और बढ़ते ही है। 

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