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गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

भगवान भरोसे

एक रेल यात्री ने दिल्ली पहुंचते ही स्टेशन मास्टर से शिकायत की आपकी सभी गाड़ीयॉ न तो समय पर चलती है और न ही कभी समय पर पहुंचती है। फिर भी आप बार-बार यह समय सारिणी क्यूं बनाते रहते है? रेलवे अधिकारी ने बड़े ही प्यार से उसे समझाते हुऐ कहा कि अगर हमारे पास समय सारिणी ही नही होगी तो हमें यह कैसे मालूम होगा कि कौन सी गाड़ी कितनी देरी से आ या जा रही है। उस यात्री ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा कि जैसे हमारे देश में एक आम आदमी की जन्म से मृत्यु तक जिंदगी सब कुछ भगवान भरोसे ही चल रही है लगता है वैसे ही कि आपके यहां भी सब कुछ भगवान भरोसे ही चल रहा है।
हर कोई छाती ठोक कर एक ही बात कहता है कि यह सब कुछ मेरी मेहनत और अक्कलमंदी के कारण ही संभ्भव हो पाया है। खुदा न करे अगर किसी के साथ कुछ अनहोनी हो जाए या कोई काम मन मुताबिक न बन पाऐ तो सारा दोष भगवान के माथे मढ़ने में हम एक पल की भी देरी नही करते। आऐ दिन हम देखते है कि अगर कोई मरीज अस्पताल से भला-चंगा हो कर घर आ जाता है तो हम दुनियॉ भर में उस डाक्ॅटर की तारीफ के पुल बांधने के साथ उस की जेब नोटो से भर देते है। लेकिन किसी बदनसीब की मौत उसी डॉक्टर की भूल के कारण हो जाए तो फिर मुलजिम डॉक्टर नही भगवान को माना जाता है। हर किसी की जुबान पर एक ही बात सुनने को मिलती है कि अगर भगवान ने बचाना ही होता तो कोई न कोई रास्ता तो जरूर निकल ही आता, वरना डाक्ॅटर ने तो अपनी तरफ से कोई कमी नही छोड़ी।
हम मे से कोई भी अभी इतना बड़ा जादूगर नही बन पाया कि हम भगवान की मर्जी के खिलाफ किसी को अपने मन मुताबिक सुख-दुख, व्यापार में तरक्की की गांरन्टी या लाखो-करोड़ो के फायदा होने का दावा कर सके। लेकिन फिर भी समाचार पत्रों में छपे विज्ञापनो को देख कर हम में से अनेक लोग 24 घंटे में हर प्रकार की कामयाबी, घर-परिवार का कलेश खत्म, किसी को भी वश करने के लिए टोने-टोटके करने वाले ढोंगीयों को हजारो रूप्ये का नजराना चढ़ा आते है। जबकि असल में हकीकत यह है, इन बेचारो को अपने अगले पल का भी मालूम नही होता कि उनके साथ क्या होने वाला है?
आजकल हमारे यहां अनेको स्वार्थी ढ़ोगी साधू-संत एवं ज्योतिषी तक भगवान के नाम पर अपनी दुकानदारी खूब चमका रहे है। हैरानगी की बात तो यह है कि भगवान के नाम को वस्तु की भांति बेचने और दुनियॉ को छलने में इंन्हे कोई शर्म महसूस नही होती। आज जिस और देखो ढोगी बाबाओं की बाढ़ सी आई हुई है। हर गुरू धर्म ग्रंन्धो की अपने मन मुताबिक व्याख्या करके भोली भाली जनता को ठग रहे है। जनता को पैसे से मोह खत्म करने के प्रवचन देने वाले खुद सिर्फ रूप्यों की भेंट ही स्वीकार करते है। आजकल तो कुछ पापी साधु वेश में जनसाधारण को लोभ-मोह और काम वासना से दूर रहने की बाते समझा कर खुद कालगर्ल सप्लायर का काम कर रहे है। समाज में देखे तो हर छोटे से छोटे साधु-संत के पास बड़े-बड़े आश्रम, मंहगी कारे और ढेरो धन-दौलत है, जबकि देश का एक बड़ा हिस्सा आज भी दो वक्त की रोटी का तरस रहा है। एक बात सोच-सोच कर हैरानी होती है कि हमारी सरकार के पास ऐसा कोई प्रवाधान नही है जिससे इन लालची, स्वार्थी, ढोंगी लोगो के खिलाफ कोई कानूनी कारवाई हो सके।
भगवान जो कुछ करता है हमारे भले के लिए ही करता है, कुछ लोगो को यह बात बिल्कुल अच्छी नही लगती। क्योकि उनकी दलील तो यही होती है कि हमें दुख देकर भगवान हमारी क्या भलाई कर रहे है? ऐसी बात कहने से पहले वो यह भूल जाते है कि यह सब कुछ हमारे अच्छे या बुरे कर्मो का फल भी तो हो सकता है। हम अपना खान-पान रहन-सहन कुदरती तरीके से जीना छोड, नतीजो की परवाह किए बिना अपनी जीवनचर्या को अपनी सुविधा अनुसार बनाते जा रहे है।
समाज में अच्छे लोग कम होते जा रहे है, दुष्ट लोगो की भीड़ बढ़ती जा रही है। हम मानें या न मानें हमारा देश विनाश की और बढ़ रहा है। घर-घर में रावण जन्म ले रहे है। अब ढेरो रावणों को खत्म करने के लिये इतने राम कहां से आऐगे यह तो भगवान ही जाने। हर कोई पैसा कमाने की होड़ में पागलो की तरह दौड़ रहा है। इन्सान की इच्छाऐं हर दिन बढ़ती ही जा रही है। ऐसे में वो यह भी भूल जाता है कि गलत तरीके से कमाया गया पैसा एक दिन उसके जीवन में बहुत बड़ी परेशानी खड़ी कर सकता है। उस समय हम अपने आप को पाक साफ बता कर सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ देते है। इन हालात में तो जौली अंकल की आत्मा से यही टीस उठती है :
तन के उजले मन के काले, ऐ मालिक तेरे यह दुनियॉ वाले
शुक्र है कि तू परदे में है, वरना तुझे भी बेच डाले, तेरे यह दुनियॉ वाले।    

कोई नही है तेरा

भगवान ने पति पत्नी का रिश्ता भी न जानें किस मर्हुत में बनाया था कि हर मौसम, हर महौल में अनकी नोंक-झोंक चलती ही रहती है। मुद्दा चाहे कोई भी हो, दोनों में से कोई भी झुकने को अपनी शान के खिलाफ समझता है। कुछ दिन पहले इसी तरह की बहस वीरू और बंसन्ती में शुरू हो गई। वीरू ने अपनी मर्दानगी दिखाते हुए कहा कि मैं कह रहा कि आज कहैन्यां नही आयेगा। बंसन्ती अपनी बात पर अड़ी हुई थी कि तुम कुछ भी कहते रहो, परन्तु कहैन्यां जरूर आयेगा। वीरू ने अपनी पतियों वाली अक्ड़ दिखाते हुए कहा कि जब मैं कह रहा  हूँ तो तुम मेरी बात क्यूं नही मान लेती? परन्तु बंसन्ती भी कहां हार मानने वाली थी उसने कहा कि मैने जब-जब कहैन्यां को सच्चे दिल से बुलाया है वो हमेशा मेरी मदद के लिये आया है। अब वीरू को थोड़ा सा झटका लगा और उसने बंसन्ती से पूछा कि तुम किस कहैन्यां की बात कर रही हो। बंसन्ती ने हाथ पटकते हुए कहा कि तुम मेरी बात छोड़ो पहले तुम बताओ कि तुम किस कहैन्यां के बारे मे सोच रहे थे? वीरू ने अपनी अवाज थोड़ी नर्म करते हुए कहा कि मै तो अपने दूध वाले कहैन्यां की बात रहा था। वो असल में कल ही कह गया कि आज दूध देने नही आयेगा। बंसन्ती ने अब हंसते हुए कहा कि मैं तो अपने बांसुरी वाले कृष्ण कहैन्यां की बात कर रही थी। अपने पराये की इस पहेली को जब-जब हम सुलझाने का प्रयास करते है वह उतनी ही और अधिक उलझती जाती है। इस उधेड़ बुन में हमारी आंखों पर ऐसा पर्दा छा जाता है कि हम सारी उम्र परायों को अपना और पल-पल संग रहने वाले और हर मुश्किल में हमारी लाज बचाने वाले भगवान को कभी भी अपना बनाने का कोई प्रयत्न नही करते।
इंसान निजी स्वार्थ हेतू सारी जिंदगी दुनियां के झूठे रिश्तों को ही अपना सबसे नजदीकी और करीबी समझता रहता है। ठेस तो उसे उस दिन लगती है जब किसी दिन अचानक कोई दुख या कष्ट उसे बुरी तरह से घेर लेता है। जिस तरह समुंद्री जहाज में खराबी आते ही चूहे सबसे पहले उसे छोड़ कर भागने लगते है, ठीक उसी तरह कष्ट के समय हमारे सगे रिश्तेदार भी ऐसे गायब हो जाते है जैसे गधे के सिर से सींग। घर में जब कभी कोई उत्सव हो तो एक ही रात में सैकड़ो बोतले शराब उड़ाने वाले हमारे दूर-नजदीक के कई हमदर्द जाग उठते है। परन्तु यदि किसी को अगले ही दिन एक-दो बोतल खून की जरूरत आन पड़े तो दूर-दूर तक ऐसे हमदर्दो का साया तक दिखाई नही देता। यह सब कुछ अपने साथ घटते देख भी हम इस बात को नही समझ पाते कि हमारे यह झूठे रिश्ते सिर्फ एक छलावे से बढ़ कर कुछ नही। हमें यदि अपने जीवनकाल में सुख ही सुख मिलते रहे तो हमे बहुत अच्छा लगता है, लेकिन जरा सा दुख आते ही हम भगवान को उसके लिये दोषी कहने से भी नही चूकते। उस समय हम यह भी भूल जाते है कि भगवान यदि हमें गर्मीै देता है तो हमारे लिये बरसात भी कोई और नही वोहि करता है। भगवान यदि किसी को मौत देता है तो उसे जीवन भी भगवान ही देता है। जो पापी लोग समाज में हर तरफ जहर फैला रहे है वो तो हमें अपने सगे रिश्तेदारो से बढ़ कर दिखाई देते है जबकि हर किसी को अमृत पिलाने वाले भगवान को हम पराया समझते है। सदियों पुराने इतिहास के पन्नों को कभी कोई गौर से देखने का प्रयास करे तो एक ही तथ्य सामने आता है कि साथ-साथ जीने मरने की कसमें खाने वाले सगे-संबधी किसी के साथ मरना तो दूर जीवनकाल में भी साथ नही निभा पाते।
हमसे कुछ लोग पैसे के लोभ और अपने नियत कर्म से जी चुराने के लिये जरूर भगवान के नाम का झूठा साहरा ले लेते है। परन्तु एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि कभी किसी ने पवित्र मन से यह इच्छा नही जताई कि वो एक सच्चा भक्त बन कर भगवान का बन सके या उसे अपना बना सके। भगवान से सच्चा प्यार करने का यह मतलब कभी नही होता कि आप दुनियां की जिम्मेंदारीयों को अनदेखा कर दे। ऐसे लोग जो पूर्ण रूप से भगवान में विश्वास नही रखते वो अक्सर किसी न किसी मानसिक परेशानी के कारण बीमार रहते है। आज आम आदमी भगवान से अधिक अपने खान-पान और रहन सहन को महत्व देने लगा है। ऐसा इसलिये भी कहा जा सकता है क्योंकि इंसान भगवान को तो कभी-कभार भूले भटके याद करता है लेकिन अपना खाना पीना कभी नही भूलता। इंसान यह सब कुछ इसलिये करता है क्योंकि न तो हम अपनी इंन्द्रीयों पर काबू रख पाते है और न ही हम अपने शरीर के अधिकतर सोये हुए भागो को जगाने का प्रयत्न करते है।
जो लोग पूर्ण रूप से जागरूक होते है उन में सभी देवताओ जैसे सद्गुण और ज्ञान आ जाता है। इस प्रविृत के लोग यह जान लेते है कि सत्य ही भगवान का दूसरा रूप है। दुनियां की कोई ताकत उसमें और कुछ सुधार नही कर सकती। भगवान से बढ़ कर किसी भी लोक में कोई खूबसूरत नही हो सकता। यदि भगवान में किसी प्रकार की कोई कमी होती तो शायद दुनियां में कोई भक्त भी न होता। हमारी श्रद्वा जहां इतनी कोमल और कमजोर है कि वो बार-बार टूटती है वही इसमें इतनी ताकत है कि सच्ची श्रद्वा भगवान को भी भक्त के सामने झुकने पर मजबूर कर देती है। ऐसा तभी मुमकिन हो सकता है जब हमारी भक्ति में इतनी शक्ति हो कि रोजमर्रा की परेशनीयां तो क्या चाहे हमारे जीवन में आंधी तूफान भी आ जाऐं लेकिन हमारी भक्ति नही टूटनी चहिये। भगवान तो सिर्फ आपके मन को देखता है, मन को उसके चरणों में अर्पण करते ही हमारा मेल भगवान से हो जाता है। जो दिन रात इस तरह से भगवान की भक्ति में रम जाते है, उन्हें ही दुनियां संत-महात्मा का दर्जा देती है।
ऐसे में जौली अंकल भी भगवान के चरणों में एक ही प्रार्थना करते है कि वो हम सभी को इतनी समझ जरूर दे कि हम अच्छे बुरे के साथ यह भी समझ सके कि हमारा सच्चा हितेषी कौन है? पीर-फकीर तो अपने रूहानी अंदाज में सभी को धर्म की राह पर चलने का सदेंश देते हुए यही कहते है कि ऐ इंसान तू जब तक मेरा-मेरा नही छोड़ेगा उस समय तक नर और नरायण का पवित्र रिश्ता नही कायम हो पायेगा। नरायण के बिना नर अज्ञान के अंधेरे में भटकता रहता है। ज्ञान के इस प्रकाश को जानने के बाद तो मन से यही आवाज उठती है कि इस जग में हरि के बिना कोई नही है तेरा। 

गोल माल

मिश्रा जी ने कनाड़ा में पढ़ाई कर रहे अपने बेटे की आवाज जैसे ही फोन पर सुनी तो खुशी से उनका मन झूमने लगा। बात करते हुए जब उनके बेटे ने कहा कि उसने वहां शादी के लिये एक लड़की पंसद कर ली है, तो मिश्रा जी के चेहरे से सारी खुशी एक पल में गायब हो गई। जब बेटे ने जिद्द करते हुए कहा कि पापा शादी तो मैं इसी लड़की से करूगा तो उन्होने अपने लाल को गुस्सा करते हुए कहा कि तुम ने वहां की लड़की में ऐसा क्या देख लिया, जो हमारे देश की लड़कियों में नही है? बेटे ने कहा कि इसकी आखें बहुत सुंदर है। अब मिश्रा जी ने बेटे को डांटते हुए कहा कि तू क्या दो आखों के लिये सारी की सारी लड़की घर ले आयेगा। जब मिश्रा जी को लगा कि उनकी दाल नही गल रही तो उन्होने बेटे को समझाया कि फिर वापिस आते समय एक नही दो बहुऐं लेकर आना। बेटे ने कहा कि दूसरी बहू किस के लिये? मिश्रा जी उसे समझाया कि तू क्या इतना भी नही जानता कि विदेश से कोई भी अच्छी चीज लेकर आओ, एक तो कस्टम वाले ही रख लेते है।
सरकारी विभाग कोई भी हो, चाहे कस्टम, सैल्स-टैक्स, इंकम टैक्स, नगर निगम, ट्रासपोर्ट या अन्य कोई सरकारी एजैंसी। हर तरफ आपको कुछ न कुछ गोलमाल और घपलों की महिमा देखने को जरूर मिलेगी। इतना तो हम सभी जानते है कि जन्म से तो कोई भी भ्रष्ट नही होता, अब हमारे देश का वातावरण और फिज़ा ही किसी को भ्रष्ट बनने के लिये मजबूर कर दे तो उसमें बेचारे हमारे सरकारी बाबूओं का क्या दोष? स्कूल में दाखिले से लेकर, नौकरी का फार्म जमा करवाने तक हर जगह रिश्वत कहो या सुविधाशुल्क चुकाना पड़ता है। अगर आप का नसीब बहुत अच्छा है और आपको किसी सरकारी विभाग में दमाद बनने का मौका मिल ही जाये तो पिछला सारा हिसाब ब्याज समेत जनता से वसूलने का आपका हर हक बिल्कुल जायज बनता है।
हमारे देश में हर योजना और परियोजना को अमली जामा पहनाने का जिम्मा किसी न किसी सरकारी एजैंसी के पास ही होता है। टैंडर लेने से लेकर बिल पास करवाने तक हर काम के लिये लक्ष्मी जी का साहरा लेना पड़ता है। नेता लोगो को भी इस सारे खेल में एक मोटी रकम मिलना लगभग तय ही होता है। इसी के चलते नेता लोग कोई भी फैसला समय पर नही लेते और नतीजतन एक-दो साल में पूरा होने वाले काम को बरसों इंतजार करना पड़ता है। जैसे-जैसे देरी से लागत में बढ़ोतरी होती जाती है, हर किसी को कमीशन के हिस्से में मोटी रकम दिखाई देने लगती है। कुछ अफसरों के पेट तो इतने बड़े हो चुके है कि वो सरकारी अमानत में खयानत करने से भी नही चूकते। मौका मिलते ही एक से बढ़ कर एक घपला करने की तो हमारे सरकारी दफतरों में जैसे हौड़ सी लगी है।
यदि सरकारी बाबूओं को इतना सब कुछ करने की छूट सरकार ने दे रखी है तो देश के पढ़े-लिखे बेरोजगार युवाओं को दिन दहाड़े औरतो के पर्स और चैन छीनने का पूरा हक बनता है। अब जो लोग इस धंधे में नेताओ और पुलिस वालो के साथ भागीदारी में काम करते है उन्हें तो बर्जुगो को लूटना, नकली दवाऐ बनाने और बेचने से लेकर छोटी बच्च्ीयों के साथ दुष्कर्म करने से कौन रोक सकता है? जब-जब किसी बलात्कार या घटिया दवाओ एवं शराब से मौत का मामला सामने आता है, तो मंत्री लोग जनता को चुप करवाने के लिये झट से सरकारी खज़ाने का मुंह खोलते हुए मुहावजे का ऐलान करने को तैयार रहते है। ऐसे दोषी लोगो के लिये हमारे मंत्रीगण दोस्ती की सभी पंरम्परायें निभाते हुए सरकारी कर्मचारीयों पर इतना दबाव बना देते है कि कोई अफसर चाह कर भी उनके खिलाफ कुछ नही बोल पाता।
एक बात जो हम सभी के गले ठीक से नही उतरती वो यह है कि जहर से भरी नकली दवाऐं बनाने वालें अपनी याददाश्त बढ़ाने के लिये कभी कोई दवा क्यूं नही बनाते? ऐसे लोग अक्सर यह भूल जाते है कि यही दवाऐं बाजार से होते हुए एक दिन उनके अपने प्रियजनों की जान को भी खतरे में डाल सकती है। कभी गलती से संसद या विधान सभा में कोई ऐसा मसला उठ ही जाऐ ंतो सत्ता पक्ष और विपक्ष में हाथापाई तक की नौबत देखने को मिलती है। ऐसे सभी समाचारों को मीडियां वाले अपनी टी.आर.पी. बढ़ाने के चक्कर में हर प्रकार के मिर्च मसालों के साथ दर्शको के सामने ऐसे परोसते है कि कोई भी टी.वी देखने वाला एक पल भी उससे दूर नही जा सकता, इसी के फलस्वरूप विज्ञापनों की बरसात होने लगती है।
मजाक की बात को छोड़ कर यदि हम इन मसलों पर गंभीरता से विचार करे तो एक ही बात सामने आती है कि यदि अब भी सरकार इस भ्रष्टाचार के गोलमाल को खत्म करने के लिये जल्द कोई प्रयास नही करती तो तेजी से प्रगित की और बढ़ता हुआ हमारा देश बर्बाद हो जायेगा। जौली अंकल तो खुद इस बात को मानते है कि हमें वैसी ही सरकार मिलती है जिसके हम पात्र है। जब हममें सुधार आ जायेगा तो सरकार में भी अपने आप सुधार हो जायेगा। इस बात से तो आप भी इंकार नही कर सकते कि घपलों के इस गोलमाल को मिटाऐं बिना अब देश को तरक्की की राह पर और आगे चलाना अंसभव होता जा रहा है।  

कड़वी सच्चाई के अनोखे रंग

एक दवा बनाने वाली कम्पनी के शोधकर्ताओ ने उन्नत अनुसंधान करते हुए एक ऐसी दवा का आविष्कार किया जिसके खाने से लाख कोशिश करने के बावजूद आदमी अपने मन की हर बात सच-सच कहे बिना नही रह सकता था। उस दवा को बाजार में ग्राहको के पास भेजने से पहले कम्पनी ने उसकी जांच करने का कार्यक्रम बनाया। एक सुझाव के मुताबिक उस दिन कम्पनी में इन्टरव्यू के लिये आए हुए लोगो पर प्रयोग करने का मन बनाया गया। जैसे ही पहला उम्मीदवार इन्टरव्यू देने के लिये कमरे में आया तो उसे पानी के साथ उस दवा की एक गोली भी खाने को दी गई। अब उस गोली ने क्या-क्या रंग दिखाए आओ मिल कर देखते है।
मैनेजर - आप इस नौकरी के लिए ही क्यूं आए हो?
उम्मीदवार - मैने तो बहुत सी नौकरीयो के लिये अलग-अलग प्रार्थना पत्र भेजे थे, लेकिन आप ने ही केवल इस नौकरी के लिए मुझे बुलाया है।
मैनेजर - आप हमारी ही कम्पनी में क्यूं काम करना चाहते हो?
उम्मीदवार - मुझे अच्छी तनखवाह और अधिक पैसो की सख्त जरूरत है। अब कम्पनी घटिया हो या बढ़िया मुझे उससे क्या फर्क पड़ता है।
मैनेजर - हम आपको ही यह नौकरी क्यूं दे?
उम्मीदवार - आपने किसी एक को तो यह नौकरी देनी ही है, फिर खाम-ख्वाह क्यूं अपना समय बर्बाद कर रहे हो?
मैनेजर - अगर कम्पनी में कोई आपात स्थिति बन जाती है, तो तुम पहले अपने आप को बचाओगे या कम्पनी को?
उम्मीदवार - यह तो उस समय के हालात और अपने मूड के हिसाब से ही सोचूगा।
 मैनेजर - तुम्हारी सबसे बड़ी ताकत क्या है?
उम्मीदवार - आप जैसी घटिया किस्म की कम्पनी में नौकरी के लिए आना क्या किसी ताकत से कम है।
मैनेजर - अगर तुम्हें इस कम्पनी का सबसे बड़ा पद दे दिया जाए तो तुम क्या करोगे?
उम्मीदवार - सबसे पहले तो तुम्हारे जैसे घटियॉ मैनेजर को यहां से निकाल दूंगा।
मैनेजर - जीवन की सबसे बड़ी चुनौती किसे मानते हो?
उम्मीदवार - क्या यहां बैठ कर तुम्हारे जैसे आदमी को इतनी देर से जवाब देना किसी चुनौती से कम है।
मैनेजर - तुम अपनी पहले वाली नौकरी क्यूं छोड़ना चाहते हो?
उम्मीदवार - क्या पागलो वाली बात कर रहे हो। हर कोई अधिक पैसा कमाने के लिये काम करता है। मैं भी पैसे के लिये यह सब कुछ कर रहा  हूँ।
मैनेजर - आपकी सबसे बड़ी कमजोरी क्या है?
उम्मीदवार - सुन्दर लड़कियॉ, वैसे आपके स्वागत कक्ष में बैठी नीली आखों वाली लड़की भी बहुत कमसिन है।
मैनेजर - तुम्हारे जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य क्या है?
उम्मीदवार - किसी भी तरह इस कम्पनी के मालिक की कुर्सी तक पहुंचना ही मेरा एक मात्र लक्ष्य है।
इससे पहले की कम्पनी का मैनेजर कुछ और सवाल पूछता, उस के मालिक ने उससे कहा कि हमें यह दवा बनाने की जरूरत नही है। क्यूंकि सच्चाई इतनी कड़वी होती है, यह तो मैने कभी सोचा भी न था। जौली अंकल की राय में सच्चाई कड़वी तो जरूर होती है, लेकिन अगर आपकी वाणी सदा सत्य पर आधरित होगी तो ही जीवन में सच्चा सुख मिलेगा।       

अजाद पंछी

गांव के एक बर्जुग ने जब गप्पू को दिन में पेड़ के नीचे चारपाई डाल कर सोते हुए देखा तो उससे बोले कि भाई देखने में तो अच्छे तगड़े नजर आ रहे हो। ऐसे में फिर कोई काम काज करने की बजाए दिन में क्यूं सो रहे हो? गप्पू ने कहा कि काम-काज करने से क्या होगा? बर्जुग ने समझाया कि मेहनत करने से आदमी अच्छा पैसा कमा सकता है। गप्पू ने फिर से सवाल कर दिया कि ताऊ अगर मैं कुछ पैसा कमा भी लूंगा तो क्या होगा? उस बर्जुग को लगा कि यह इंसान न जाने किस मिट्टी का बना हुआ है कि दुनियादारी की किसी बात को समझता ही नही। फिर भी उसने गप्पू को समझाना शुरू किया कि पैसे से आदमी अच्छा घर बाहर बना सकता है, अपने लिए हर तरह सुख सुविधाऐं जुटा सकता है। सामने बनी खूबसूरत इमारत की और इशारा करते हुए उस बर्जुग ने कहा कि तुम भी ऐसी बढ़िया इमारत बना कर शांति के साथ रह सकते हो। अब गप्पू ने उस बर्जुग को बताया कि वो सामने वाली सारी इमारत मेरी ही है। उसमें जो बैंक का कार्यलय देख रहे हो वो भी मेरा ही है। इसीलिये मैं यहां खाटियां डाल कर आराम से बैठा हुआ  हूँ। यह किस्सा उस गप्पू का है जिसे उसके पिता ने उसकी कुछ गलतीयों के कारण उसे घर से निकाल दिया था। कुछ बरसों पहले के दिनों को याद करे तो गप्पू की यह कहानी कुछ इस प्रकार से है।
बात उन दिनों की है जब गप्पू कालेज में पढ़ रहा था। उसके पिता बांकें बिहारी ने किसी न किसी जुगाड़ से अपने बेटे की स्कूल की पढ़ाई तो पूरी करवा दी, परन्तु अब वो पिछले कई साल से कालेज में ही अटका हुआ था। आज उनके बेटे गप्पू का फिर से नतीजा आने वाला है, और वो अभी तक घोडे बेच कर सो रहा है। पूरे घर में तनाव का महौल है। क्योंकि इससे पहले भी गप्पू कालेज में दो बार फेल होकर अपने घरवालों को छोटेमोटे झटके दे चुका है। थोड़ी देर बाद ही कम्पूयटर से नतीजा पता करवाया गया, तो वोही हुआ, जिसकी सारे परिवार को चिन्ता थी। सारे परिवार की मेहनत, मिन्नतें और प्रार्थना भी गप्पू के नतीजे के साथ फेल हो गई थी। गप्पू के पिता के शरीर में से तो जैसे किसी ने जान ही निकाल ली हो। इतने में मुहल्ले के सब से बड़े हितैषी मुसद्दी लाल जी सैर करते हुए वहां आ पहुंचे। घर में छाये मातम को देख कुछ देर तो चुप रहे, लेकिन ज्यादा देर चुप बैठना उनके स्वभाव में शामिल नहीं था।
माहौल की गम्भीरता को भांपते हुऐ उन्हाेंने सभी परिवार वालों को तसल्ली देनी शुरू की, आजकल ज्यादा पढ़ने लिखने से भी कुछ नहीं होता, सरकारी नौकरी तो वैसे ही किसी को मिलती नहीं, और प्राईवेट कम्पनियों वाले तो दिन रात बच्चों का खून चूसते है। आजकल बहुत से ऐसे काम है जिनमें बिना अधिक पढ़ाई के लोग लाखों रूपये कमा रहे हैं। अपनी आदतानुसार मुसद्दी लाल जी बिना मागें ही अपनी सलाह और मश्वरे का पिटारा खोल कर बैठ गये। बांकें बिहारी जोकि गप्पू के नतीजे से बिल्कुल टूट चुके थे, टेढ़ी आंख उठा कर मुसद्दी लाल की तरफ ध्यान दिये बिना न रह सके। इससे पहले कि वो मुसद्दी लाल को जाने के लिये कहते, गप्पू की मम्मी गर्मा-गर्म चाय की प्याली मुसद्दी लाल को थमाते हुऐ बोली भाई साहब हमारे गप्पू के लिये ऐसा क्या काम हो सकता है, जो वो बिना ज्यादा पढ़ाई-लिखाई के आसानी से कर सकता है?
भाभीजी अगर आप दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची देखो तो उनमें से अधिकतर लोग पढ़ाई-लिखाई में फिसड्डी ही रहे हैं। दुनिया का सबसे अमीर आदमी बिल-गेट जो शायद कम्पूटयर के कुछ साफ्ट्वेयर वगरैह बनाता है, उसे तो बार-बार फेल होने पर स्कूल से निकाला गया था। सचिन, जो आज लाखो-करोड़ों रूपये का मालिक है, वो अगर पढ़ा लिखा होता तो जरूर किसी दफ्तर में क्लर्क की नौकरी ही कर रहा होता। मुसद्दी लाल जी ने चाय की चुस्कियां लेते हुए अपनी बात जारी रखी। भाभीजी अब आप यह मत कहना, कि आप हमारे देश के राष्ट्र्रपति रह चुके ज्ञानी जैल सिंह के बारे में कुछ नहीं जानती, वो तो सिर्फ चार जमात तक ही स्कूल गये थे। उससे आगे तो पढाई की रेखा उनके नसीब मे थी ही नहीं। अब इससे ऊंचा पद तो हमारे देश में कोई है नहीं, जहां तक हमारे गप्पू ने पहुंचना है।
मुझे समझ नहीं आता आजकल मां-बाप हर समय डंडा लेकर बच्चों के पीछे क्यूं पड़े रहते हैं। आखिर नसीब भी तो कोई चीज है या नहीं? दुनिया के अधिकतर वैज्ञानिकों ने जो भी आविष्कार किए हैं, वो स्कूलों में बैठ कर नहीं पढे। यहां तक की महात्मा बुद्व को भी ज्ञान किसी स्कूल या कालेज में नहीं बल्कि एक पेड़ के नीचे बैठने से प्राप्त हुआ था। इस बात को तो सारी दुनिया जानती है। बांकें बिहारी जो मुसद्दी लाल की बिना सिर पैर की बातें सुनकर मन ही मन कुढ़ते हुए बोले कि तुम मेरे बेटे को बिना पढ़ाई के किस देश का राष्ट्रपति बना सकते हो? क्या हमारे देश में सारे पढे लिखे लोग बेवकूफ है? यदि पढ़ाई लिखाई का कोई महत्व नही होता तो सरकार हर साल करोड़ों रूपये खर्च करके नये स्कूल-कालेज किसके लिये बनवाती है? क्या बडे अफसर, डाक्टर, इन्जीनियर बिना पढ़ाई के ही ऊचें पदों पर पहुंच जाते है?
मुसद्दी लाल ने बांकें बिहारी के टेडे तेवरों को देख कर अपनी जुबान को थोड़ा नर्म करते हुए कहना शुरू किया भाई साहब मेरा कहने का मतलब तो सिर्फ इतना ही था कि हर बच्चा तो हमेशा अव्वल नही आ सकता न। कुछ बच्चे पढ़ाई में असफल रहने के बावजूद भी अपनी मेहनत से अच्छा कारोबार जमां लेते है। आप एक बात को समझने की कोशिश करो कि आज की युवा पीढ़ी को हर प्रकार के आधुनिक और नवीनतम मोबइल फोन से लेकर कार आदि तो सब कुछ चहिये, लेकिन वो न तो घरवालों के दवाब और न ही किसी बॉस के प्रभाव के नीचे रह कर काम कर सकते है। यह तो अजाद पंछी की तरह खुले आसमान में दूर तक उड़ना चाहते है।
आपने यदि अपने किरयाने की दुकान से निकल कर बाहर की दुनियां देखने का प्रयास किया होता तो आपको पता लगता कि मेहनत मजदूरी के अलावा आज की पीढ़ी के सामने रोजी रोटी कमाने के कितने ही सुदंर विक्लप उपलब्ध है। लड़के तो लड़के आज की लड़किया भी घर में बैठे हुए कम्पूयटर से जुडे कम्पनियों के कई प्रकार के कार्ड, तालिका, सूची पत्र, डैटा एंटरी और नामावली आदि बनाने और डिजाईन करने का काम कर रहे है। इसी के साथ किसी खास क्षेत्र में अच्छी पकड़ रखने वाले लेखन कार्य से अच्छी खासी आमदनी कर लेते है।
बहुत सारे फैक्ट्री वाले अपने उत्पाद की बिक्री को आकर्षक और लाभकर स्कीमों के जरिये पार्ट-टाईम काम करने वालों के माध्यम से ही ग्राहको तक पहुंचाना पंसद करते है। ऐसा करने से वो अपने दफतर में मंहगी जगह, बिजली-पानी और अन्य कई प्रकार के खर्चो से बच जाते है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि वो लोग यह सारा काम लोगो को अपने दफतर में नियुक्त करके मोटी तनख्वाह देने की बजाए कमीशन पर करवाने को प्राथमिकता देते है, इससे बड़ी-बड़ी कम्पनियों पर आर्थिक बोझ भी नही पड़ता। जो जितना मुनाफा कम्पनी को लाकर देता है, कम्पनी उसी में से उसकी कमीशन का हिस्सा उसको दे देती है। फिर आपका तो अपना किरयाने का इतना बड़ा कारोबार है। पूरे शहर में आपके नाम की तूती बोलती है। अगर गप्पू कालेज की पढ़ाई पूरी नही भी कर पाया तो भी अपने ही घर में काम धंधे की कोई कमी तो है नही। यह बात सुनते ही अब तक एक कोने में चुपचाप सभी लोगो की बाते सुन रहा गप्पू बोला कि चाहे कुछ भी हो जाये मैं किरयाने की दुकान में तो कभी भी काम नही करूंगा। गप्पू की इस बात ने तो जैसे आग में घी डालने का काम कर दियां।
बांकें बिहारी ने गप्पू को डांटते हुए कहा, कि यदि तुम्हारी यह सोच है कि तुम मेरी दुकान पर काम नही करोगे तो मैं तुम्हें दिल्ली के कनाट प्लेस में दफतर खोल दूंगा तो ऐसे ख्वाब देखना छोड़ दो। मेरे पास न तो इतनी दौलत है और न ही हिम्मत। गप्पू ने अपने पिता से कहा कि अब न तो मुझे और आगे कोई पढ़ाई करनी है और न ही मुझे आपकी दौलत में से कुछ चहिये। यदि आप कुछ दे सकते है तो मुझे थोड़ा सा वक्त दे दो। एक दिन मैं आपसे अच्छा कारोबार कर के दिखा दूंगा।
अगले दिन समाचार पत्र के एक विज्ञापन में होटल में क्लर्क की नौकरी का विज्ञापन देख कर गप्पू भी अपनी किस्मत आजमाने के लिये वहां पहुंच गया। इंन्टरव्यू के दौरान होटल वालो ने जब गप्पू के प्रमाण-पत्र देखे तो पाया कि वो कालेज में दो बार फैल हो चुका है। हालाकि उन्हें गप्पू में वो सभी खूबीयॉ नजर आई जिनकी उन्हें जरूरत थी। होटल वालो ने वादे के मुताबिक गप्पू को आने-जाने के किराये के रूप में 250 रूप्ये देकर उसे कोई भी नौकरी देने की बजाए बाहर का रास्ता दिखा दिया। बुझे हुए मन से घर वापिसी में भूख और प्यास के कारण वो एक नारियल पानी वाले के पास रूक गया। ठंडा और स्वादिष्ट नारियल पानी पी कर गप्पू के शरीर में फिर से जैसे जान आ गई। इससे पहले उसने कभी भी इतना अच्छा और स्वादपूर्ण नारियल पानी नही पीया था। जब उसने दुकानदार को पैसे दिये तो उसने पाया कि यह नारियल तो हमारे इलाके से कही बढ़िया और बहुत ही सस्ता है। गप्पू ने कंम्पनी से मिले 250 रूप्यो के नारियल खरीद लिये और अपने शहर में आकर कुछ ही दिनों में उन्हे अच्छे मुनाफे में बेच दिया। फिर तो यह सिलसिला लगातार ही चल निकला। अब तो गप्पू ट्रक भर कर नारियल मंगवाने लगा था। पूरे इलाके में उसके नारियल सबसे बेहतर और उमदा किस्म के माने जाते थे। पुरानी कहावत है, कि पैसा आते ही इंसान को अक्कल भी अपने आप आ जाती है। कल तक बेरोजगार गप्पू आज बहुत बड़ा समझदार सेठ और एक कामयाब व्यापारी बन चुका था।
एक दिन जब उसके बैंक का मैनेजर उसके घर खाने पर आया तो उसने इतना बड़ा घर देख कर गप्पू को सुझाव दिया कि यदि तुम इसके ऊपर अपने रहने के लिये एक और मंजिल बना लो तो नीचे वाले घर को किसी बैंक को किराये देकर अच्छी खासी आमदनी ले सकते हो। अगर तुम चाहों तो मैं इस काम के लिये तुम्हें अपने बैंक से ऋृणमुक्त कर्ज भी दिलवा सकता  हूँ। गप्पू ने इतनी बढ़ियां ऑफर को अमली जामा पहनाने में एक पल की भी देरी नही की। आज उसी घर में रहते हुए बैंक से किराये के रूप में एक मोटी रकम हर महीने उसकी जेब में आने लगी थी।
जब मुसद्दी लाल को गप्पू के कारोबार के बारे में सारी जानकारी मिली तो वो उसके लिये कई बड़े घरानों से उसकी शादी के लिये प्रस्ताव लाने लगे। रिश्ते की बातचीत के दौरान एक सज्जन ने जब गप्पू से उसकी पढ़ाई-लिखाई के बारे में जानना चाहा तो उसने बताया कि वो कालेज पास नही कर पाया। अब उस सज्जन ने कहा अभी तो तुम ने कालेज की पढ़ाई पूरी नही की तो आपका व्यापार इस कद्र फैला हुआ है यदि आपने कालेज अच्छे से पास कर लिया होता तो फिर तो आप न जानें किन बुलदिंयो तक पहुंच जाते। गप्पू ने मुस्कराहते हुए कहा यदि मैने कालेज पास किया होता तो शायद मैं आज भी अपने पिता की किरयाने की दुकान संभाल रहा होता।
इस बात को कोई नही नकार सकता कि अच्छी पढ़ाई लिखाई का जीवन में बहुत महत्व होता है, लेकिन यह जरूरी नही कि आप उसके बिना जीवन में तरक्की कर ही नही सकते। बहुत से ऐसे क्षेत्र है जहां पढ़ाई लिखाई से अधिक मेहनत अपना रंग दिखाती है। कई बार किसी काम को सिध्द करने के लिए शुरूआती तौर पर मिलने वाली असफलता से हमें कभी भी घबराना नही चहिये। सफलता का सीधा संबंध परिश्रम से होता है और जो व्यक्ति परिश्रम से डरता है वह कभी सफलता नही पा सकता। मुसद्दी लाल ने गप्पू के पिता को समझाते हुए कहा कि जो सच्चे मन से किसी काम को करने के लिए पहल करते है वह अजाद पंछी की तरह एक न एक दिन कामयाबी की राह पर अपना रास्ता बना ही लेते है।

ऑनलाइन की दुनियां

कुछ दिन पहले जब सुबह-सुबह मिश्रा जी से मुलाकात हुई तो उन्हें देखते ही महसूस हुआ कि वो काफी परेशान लग रहे थे। परेशानी का कारण जानने पर उन्होने बताया कि आज तीन दिन हो गये है मेरी पत्नी सब्जी लेने बाजार गई थी, लेकिन उसके बाद से उसका कुछ पता नही कि वो कहां और किस हाल में है? इससे पहले कि मैं कुछ बोलता पास खड़े मेरे पोते ने कहां कि इस में घबराने की क्या बात है, आप उन्हें इंटरनैट पर ढूंढ लो। आपको एक मिनट में आंटी के बारे में सारी जानकारी मिल जायेगी। मिश्रा जी ने हैरान होते हुए कहा कि तुम्हें कैसे मालूम कि इंटरनैट तुम्हारी आंटी के बारे में सब कुछ जानता है। मेरे पोते ने कहा, कमाल है अंकल आप इतना भी नही जानते कि आजकल इंटरनैट पर हर चीज के बारे में सारी जानकारी होती है। जब भी कोई बच्चा, बर्जुग या कार आदि गुम हो जाती है तो, पुलिस वाले झट से सारी जानकारी अपनी साइट के माध्यम से ऑनलाइन कर देते है। मुझे तो अपने स्कूल से जो कुछ भी होमवर्क मिलता है, मैं तो झट से सारा काम इसी की मदद से कर लेता  हूँ। इसीलिए स्कूल में मेरा काम सबसे अच्छा माना जाता है और मुझे सबसे अधिक अंक मिलते है। दो-तीन दिन से परेशानी में डूबे होने के बावजूद मिश्रा जी इतने छोटे से बच्चे के मुख से इंन्टरनैट और आनॅलाइन के बारे में कमाल की जानकारी सुन कर मेरे पोते की तारीफ किये बिना नही रह सके।
आज के दिन आप किसी भी व्यवसाय, बैंक, शेयर बाजार के व्यापार से जुडे है, आपको बिजली-पानी, फोन का बिल अदा करना हो या कोई सरकारी टैक्स जमां करवाना हो, अब इन सभी कामों के लिए आपको सारा-सारा दिन सड़को की धूल में परेशान होने की कोई जरूरत नही। हर घर में इस्तेमाल होने वाली रोजमर्रा की सभी वस्तुओ, बच्चो की आधुनिक पढ़ाई से लेकर पूरे विश्व में व्यापार के लेन-देन में आज कम्पूयटर ऑनलाइन का बहुत बड़ा योगदान है। आज समाज का कोई भी वर्ग ऐसा नही है जो विज्ञान की इस अनमोल सफलता से अछूता हो। अब तक विज्ञान के सभी करिश्मों की सूची में यदि ऑनलाइन तकनीक का नाम सर्वप्रथम रखा जाये तो गलत न होगा। ऑनलाइन ने जहां सूचना के अदान-प्रदान का कार्य सबसे आसान किया है, वही हर किस्म के व्यापार जगत के लिए इसने सारी दुनियां को एक ही मचान पर ला कर खड़ा कर दिया है। दूसरे देशो की तरह ऑनलाइन के ज़रिए अपने छोटे से छोटे कारोबार को दुनिया भर में फैला कर सफलता की बुलदिंयों और धन कमाने में आज हमारे देशवासी भी किसी से पीछे नही है।
इस में कोई दो राय नही हो सकती कि कम्पूयटर की ऑनलाइन कं्राति ने हमारी जीवन शैली और कारोबार जगत की दुनियां का इतिहास ही बदल डाला है। कल तक जहां हमें अपने ही देश के शहरों में बने उत्पाद के बारे में जानकारी प्राप्त करना एक कठिन काम था, आज घर में इस्तेमाल होने वाली छोटी से छोटी चीज से लेकर हर प्रकार के जरूरी समान, खिलोने, दवाईयां और अर्न्तराष्ट्रीय उद्योग से जुड़े उत्पादो की जानकारी और उन्हें जल्द से जल्द पाने की मंशा कम्पूयटर पर कुछ उंगलियों के घुमाने से पूरी हो जाती है। आज की आधुनिक नारी भी ऑनलाइन प्रणाली का भरपूर लाभ उठा रही है। इस तकनीक की बदौलत आज की औरते जहां आत्मनिर्भर हो रही है वही समाज से नारी जाति का उत्पीड़न भी बहुत हद तक कम हो रहा है। अब औरतो को घर से बाहर जाकर न तो अकेले रहने की जरूरत है और न ही नौकरी के लालच में कुछ स्वार्थी लोगो के हाथो बेवकूफ बनने की।
आप दुनियां के किसी भाग से कुछ भी खरीदना या बेचना चाहते है तो अब आपको उसके लिए न तो देश-विदेशो के बाजार के चक्क्र लगाने की जरूरत है और न ही आपको लाखो रूप्ये खर्च करके अलग-अलग जगह जा कर अपने उत्पाद की प्रदर्शनी लगाने की। इसी के साथ आपको अलग-अलग देश की भाषा सीखने की परेशानी को भी आनॅलाइन की सुविधा ने बिल्कुल सरल बना दिया है। यह सारा काम आप ऑनलाइन के माध्यम से अपने घर या दफतर में बैठे हुए बहुत ही आसानी से कर सकते है। अब न सिर्फ आप अपने उत्पाद के बारे में बल्कि अपनी कम्पनी और अन्य सभी प्रकार की जानकारी अपने ग्राहको को पल भर में मुहैया करवा सकते है। हर उंम्र के लिए नवीनतम ऑनलाइन गैंम्स जहां मनोरजन के साथ छोटे-बड़ो के ज्ञान में तेजी से बढ़ावा करती है, वही आज की इस होड़ की दोड़ में दूसरे प्रतियोगियो से आपको कही आगे रखती है। बच्चो के लिये तो ऑनलाइन रोचक और मजेदार खेल किसी जादू या करिशमें से कम नही होते। व्यापार के अलावा पूरी दुनियां के ई-समाचार पत्र ऑनलाइन उपलब्ध होने से समय और पैसो की बचत के साथ दुनियां की हर नई वस्तु की जानकारी हमें पल-पल घर बैठे ही मिल जाती है। व्यापारी वर्ग जहां अपने उत्पाद के विज्ञापनों के लिए इसका भरपूर लाभ उठा रहे है, वही उपभोक्ता उसे खरीदने से पहले अपने घर में फुर्सत और सुविधानुसार उनकी तुलना मिलते जुलते समान से कर सकता है।
पहले जहां हर खुशी के मौके पर विदेशो में बसे प्रियजनों को याद करके घरवालों का बुरा हाल हो जाता था। आज ऑनलाइन व्यापार के चलते जन्मदिन हो या अन्य किसी प्रकार के उत्सव पर केक से लेकर सभी तरह के तोहफे एक दूसरे को भेज कर खुशी के पलों में कई गुणा इजाफा कर सकते है। जो बहनें पहले कई बरसों तक अपने भाईयों की कलाईयों पर राखी बांधने को तरसती थी, आज ऑनलाइन सुविधा के चलते वो अपने भाईयों को राखी के साथ मनपंसद मिठाईया, चाकलेट आदिं भी भेज सकती है। कई बार कुछ मरीजो को समय से पहले केवल इसलिये दुनियां को अलविदा कहना पड़ता था क्योंकि जान बचाने वाली कुछ दवाईयों को समय पर मुहैया करवाना नामुमकिन था। ऑनलाइन ने जहां इस सारे काम को प्रभावी ढंग से आसान बनाया है उसी के साथ समय और लागत में भी भारी कमी आई है।    
यह सच है कि ऑनलाइन के चलते बड़ी-बड़ी कम्पनियां अपने ही घर-दफतर में बैठे हुए सारी दुनियां के साथ आज लाखो-करोड़ो रूप्ये का व्यापार कर रही है। परन्तु जैसे एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है, ठीक उसी प्रकार कुछ लोग जल्द से जल्द अधिक पैसा कमाने की चाह में व्यापार करने की इस करिश्माई सुविधा का गलत फायदा उठाते हुए अपने ग्राहको को घटिया किस्म का सामान भेज कर इसे बदनाम कर रहे है। व्यापार में जो व्यक्ति अपनी नैतिकता खो देता है तो उसके लिये यह कहना पड़ेगा कि वो अपना सब कुछ खो देता है। इस तरह की छोटी सोच रखने वाले फिर सारी उंम्र रोते रहते है। ऐसे लोग अक्सर यह भूल जाते है कि ईमानदारी और परिश्रम का फल देर से पकता है परंतु बहुत मीठा होता है, इसलिये जीवन में किसी काम को करने के बाद नहीं, उसे करने से पहले उसके लाभ हानि के बारे में सोचना चाहिए।
आज हर छोटे बड़े शहर में टै्रफ्रिक की गंभीर सम्सया पैदा हो चुकी है। कोई भी इंसान टै्रफ्रिक सम्सयाओं से जद्दोजहद करने के बाद अपने दफतर पहुंचने पर 100 प्रतिशत योगदान नही दे सकता। इस दौड़-भाग में किसी भी अच्छे भले इंसान का मूड सारे दिन के लिए खराब हो जाता है। ऐसे में ऑनलाइन काम करना एक बहुत ही अच्छा विकल्प बन कर ऊबर रहा है। अब यदि आप ऑनलाइन काम अपने ही घर से बैठकर करते है तो मंहगे दफतर के भारी खर्च बचाने के साथ इसे बेहतर ढंग से किया जा सकता है। किसी भी क्षेत्र में सफलता पाने का सीधा संबंध परिश्रम से होता है। जो व्यक्ति परिश्रम से डरते है वह कभी भी सफलता नही पा सकते। ऑनलाइन व्यापार करने वालो को एक बात सदैव याद रखनी चहिये कि योग्यता, ईमानदारी और धैर्यशीलता के समक्ष हर कोई घुटने टेकने पर मजबूर हो जाता है।
आज भी बहुत से व्यापारी कभी अच्छे ग्राहको के अभाव के चलते और कभी मंदी का रोना रोकर अपनी किस्मत को कोसते रहते है। जबकि असलियत तो यह है कि किस्मत को कोसने वाले जीवन में कुछ नहीं कर पाते। आज के इस युग में आधुनिक तकनीक के साथ थोड़ी सी मेहनत करने वाले किस्मत तक को बदल डालते हैं। जिस प्रकार कुछ लोगो को अंधेरे से बहुत डर लगता है, तो ऐसे में अपनी आखें बन्द कर लेने को कोई भी समझदारी नही कहेगा। सिर्फ जरूरत है तो मन से इस डर को खत्म करने की। कम्यूटर की ऑनलाइन पद्ति के बारे जानकारी न होना कोई दोष नही है, ऐसे काम को सीखने की कोशिश न करना सबसे बड़ा दोष है। यह जरूरी नही कि हमें हर काम में शुरू से ही सफलता मिले, किसी काम को सिध्द करने के लिए शुरूआती तौर पर मिलने वाली असफलता से कभी भी घबराना नही चहिये। अगर आप हर कार्य खुशी से करेंगे तो आपको कोई भी कार्य मुश्किल नही लगेगा।
आज के इस तेजी से बदलते युग में कोई भी अच्छा व्यापारी खुद को आनलाइन से दूर रख कर अपनी कामयाबी के ख्वाब को पूरा नही कर सकता। जोली अंकल की सोच भी अब तो यही कहती है कि जो लोग हिम्मत से काम लेते वो समय और आधुनिक तकनीक का पूरा फायदा उठा लेते है जबकि जो लोग नई तकनीक से काम करने के तरीके से दिल चुराते हैं, समय उन्हें पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाता है।                   

हंसना ज़िंदगी है

बुध्दिमान लोग हमेशा से समझाते आए है, कि प्रतिदिन एक सेब खाने से डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ती। शायद उनके कहने का तात्पर्य यह रहा होगा कि एक सेब खाने से बहुत सी बीमारीयो से छुटकारा मिल जाता है। परन्तु बढ़ती मंहगाई ने सेब को एक आम आदमी की पहुंच से बहुत दूर कर दिया है। कुछ अरसां पहले तक एक जनसाधारण बाजार में घूमते-फिरते कभी-कभार परिवार के लिये सेब खरीद लेता था। लेकिन आज सेब छोटी-छोटी दुकानों से निकल कर बड़े माल्स की शोभा बनते जा रहे है। जहां एक आम आदमी के लिये दो वक्त की दाल-रोटी का जुगाड़ करना ही एक बड़ा मसला बनता जा रहा है वहां ऐसे महौल में आप और हम रोज सेब खाने की बात कैसे सोच सकते है?
प्रकृति का नियम है, कि अगर जिंदगी के किसी मोड़ पर कोई एक रास्ता बंद हो जाये तो वहां से दो और रास्ते खुल जाते है। इसका एक जीता जागता उदारण है, कि आप बहते हुऐ पानी के आगे किसी किस्म की रोक लगा दो तो वो सीधा बहने की बजाए तुरन्त वहां से दायें और बायें दोनो तरफ चलने लगता है। आज अगर सेब हमारी पहुंच से दूर हो गये है, तो भगवान ने हमें तन्दरुस्त जीवन जीने के लिये हास्य का रास्ता भी दिखाया है।
पूरे विश्व के अनेक शोधकत्ताओं ने यह पाया है कि जीवन में हंसी-खुशी न सिर्फ हमें गम्भीर बीमारीयों से बचाती है, ब्लकि हमारी उंम्र में भी 8 से 10 साल तक का इजाफा भी करती है। हास्य ही एक मात्र ऐसा योग है जिससे रोजमर्रा के जीवन में तनाव और मानसिक परेशानी कम होती है, इसी से हमारी उंम्र लंम्बी और जीवन बेहतर बनता है। परिवार और दोस्तो में प्रेम बढ़ता है और हमारे दिलों की दूरियॉ खत्म होती है। जो मातऐ दिल खोलकर हंसती है, उनके बच्चे अधिक तंन्दरुस्त होते है। जो लोग किसी न किसी बीमारी से पीढ़ित है, उनके पास कुछ देर बैठ कर हंसी मजाक या थोड़ी देर हंसने से उनके शरीर में आक्सीजन की मात्रा बढ़ती है, जिससे कि उनके सोचने की शक्त्तिा और आत्मविश्वास बढ़ता है। किसी भी बीमारी का मुकाबला करने के लिये मरीज की इच्छा शक्त्ति का बहुत बड़ा योगदान होता है। दवा-दारू भी तभी असर करती है, जब मनुष्य में जीने की लालसा हो।
जैसे ही किसी भी मरीज को दर्द और तकलीफ से थोड़ी राहत मिलती है, उसको घर वालों और अपने नजदीकी रिश्तेदारों के साथ बातचीत करने के साथ-साथ खाना खाने में भी आंन्नद मिलने लगता है। इन छोटी-छोटी बातो से सारे घर का महौल अपने आप संवरने लगता है। कुछ लोग यह मानते है कि हंसी-खुशी सिर्फ चुटकले सुनने-सुनाने से ही मिलती है, ऐसी बात नही है। यह तो अब आप के ऊपर निर्भर करता है, कि आपको किस तरह के महौल से सकून मिलता है। क्या आपका मन दीन-दुखीयों की सेवा करके या गरीब और अनाथ बच्चो की मदद करने से शांति महसूस करता है। हर आत्मा की भूख एक अलग किस्म के भोजन से मिटती है।
कुछ लोग सवाल करते है, कि क्या हंसने से हमारे शरीर की कोई चोट या जख्म ठीक हो सकता है? क्या हमेशा खुश रहने वालों को कभी मौत नही आती? ऐसे लोगो के लिये मैं एक बात कहना चा हूँगा कि चोट का इलाज तो डॉक्टर महरम पट्टी से ही कर सकते है, लेकिन हास्य उस घाव के दर्द को बहुत हद तक कम कर सकता है। जहां तक मौत का प्रश्न है, तो मैं साधू-संतो की एक बात को दोहराना चा हूँगा, कि इस दुनियॉ में जो कुछ भी पैदा हुआ है, उसको एक न एक दिन नष्ट होना ही है। मौत भी एक अटल सत्य है, आज तक इस दुनियॉ में कोई भी सदा के लिये नही जी सका। जब इस दुनियॉ से जाना ही है, तो क्यूं न हंसते-हंसते जाया जाये। एक बात तो अनेको बार सिद्द हो चुकी है, कि हास्य से बहुत सी बीमारीयॉ और दर्द बिना दवा के ठीक हो जाते है, जिसके लिये हमें कोई कीमत भी अदा नही करनी पड़ती।
जिंदगी और हंसी का गहराई से अध्यन करने पर एक ही बात सामने आती है कि जिंदगी एक फूल है और हंसी उसका शहद। हंसी खुशी बांटने से जीवन में मधुरता आती है। जीवन में मन की खुशी ही सबसे बड़ी जयदाद है और खुशी वह फल है जो हर परिस्थिति में मीठा होता है। थोड़ी सी हंसी पराये लोगो को भी अपना बना देती है। आप जीवन में किसी को खुशी दोगे तो यह सदा दोगुनी होकर आपके लौटती है। मुस्कुराना संतुष्टि की निशानी है इसलिए सदा मुस्कराते रहो। हंसी-मजाक के बिना जीवन में सच्ची खुशी नही मिल सकती। जो दूसरों को खुशी देता है वही सबसे बड़ा दानी कहलाता है। होठों पर मुस्कान हो तो हर मुश्किल काम आसान हो जाता है। दुनियॉ की सबसे बड़ी अमीरी धन नहीं है बल्कि हंसी-खुशी हैे। जो लोग प्रसन्न रहते हैं, उनके मन में कभी आलस्य नहीं आता। जीवन बहुत छोटा है, परंतु हंसने के लिए एक पल ही काफी है। हंसी-खुशी ही मनुष्य का कठिन परिस्थितियों में भी साथ देती है। जिंदगी की खुशियों को दूसरों के साथ बांटना सबसे बड़ी सेवा है। खुश रहने वाले व्यक्ति को आनंद व सुख सहज ही मिल जाता है। जिंदगी में हंसी के इतने बड़े महत्व को समझने के बाद तो अब हमें जौली अंकल की बात माननी ही पड़ेगी कि हंसना ही जिदंगी है।   

खुशहाल जीवन की संजीवनी - हंसी

इंसान पैसे की ताकत के बल पर सभी सुविधाओं से लेस बढ़ियां मकान या इमारत तो बना सकता है, लेकिन उसे तब तक एक अच्छा हसीन घर नही कहा जा सकता जब तक उसमें सारे परिवार की खुशीयां शमिल नही हो जाती। गृहस्थ जीवन में सुख दुख तो हमारे साथ-साथ चलते रहते है, लेकिन छोटी-छोटी परेशानीयों से घबरा कर हर समय रोने से कभी किसी को समस्यां का हल तो नही मिलता। ज्ञानी लोग शास्त्रो के माध्यम से समझाते है कि मनुष्य जन्म सभी योनियों में सबसे उतम जन्म है। क्योंकि हंसने की ताकत सिर्फ इंसान के पास है। भगवान ने मक्खी के डंक में, सांप के दांतो में और इसी तरह बाकी सभी जानवरों के शरीर के किसी न किसी अंग में जहर भरा हुआ है। परन्तु मनुष्य एक ऐसा जानवर है जिसकी रग-रग में जहर भरा हुआ है। यह जहर है काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार का। इन सभी को तभी खत्म किया जा सकता है जब आप अपने मन से द्वेष की भावना निकाल कर सदा खुश रहना सीख लेते है। जो कोई भी खुल कर हंसता है वो सदा शरीर और मन से स्वस्थ रहता है।
कई बार रोजमर्रा के जीवन से तंग आकर हमारा मन दुखी हो जाता है। ऐसे में कभी रोना आ भी रहा हो तो अकेले कमरें में रो लो, बाथरूम में रो लो। लेकिन कभी किसी के सामने मत रोआो। मुरझाये और रोते हुए चेहरे से हम अपने साथ और भी जुड़े हुए कई लोगो के मन को विचलित कर देते है। कुछ लोग बीमारी और बढ़ती उंम्र से घबरा कर कहते है कि अब तो भगवान जल्द से जल्द मौत देकर इस जीवन का अंत कर दे। जबकि हंसी जैसी संजीवनी से हर प्रकार का तनाव खत्म हो जाता है और अनेको बीमारीयां खुद-ब-खुद हमसे दूर भाग जाती है।
जीवन से निराश और काम के दबाव में घुट-घुट कर जीने वाले व्यक्ति भी यदि दिन में कुछ पल भी हंस लेते है तो पूरे परिवार में आनन्द, प्रसन्नता और उल्लास का महौल बन जाता है। ऐसे लोग हर महौल में अपने आप को ढाल लेते है और सदा ही जवान बने रहते है। परमात्मा ने जो अनगिनत सुख हमें दिये है उन्हें खुशी-खुशी जी भर कर जीते है। यदि आप एक बार हर परिस्थिति में खुश रहने का स्वभाव बना लेते है तो आपका जीवन न सिर्फ सुखमय और खुशहाल बनेगा बल्कि दूसरों के लिये भी एक आदर्श प्रेरणा स्त्रोत बन जाता है। ऐसा इसलिये भी कहा जा सकता है क्योंकि जब हम हंसते है तो वातावरण की शुद्व हवा हमारे फेफड़ो में दाखिल हो जाती है और शरीर को नुकसान पहुचानें वाली गैसे बाहर निकल जाती है।
आजकल न जाने लोग क्यूं दूसरों के रोने में अपनी खुशी ढूंढते है, दुसरों के नुकसान में अपना फायदा खोजते है। साधू-संत पराये लोगो का हक छीन कर खुश होने वालो की तुलना पागल कुत्ते से करते है, क्योंकि पागल कुत्ता ही अपने-पराये का फर्क भूल कर सभी को काटता है। सब कुछ जानते हुए भी हम यह क्यूं भूल जाते है कि हंसी अच्छे स्वास्थ्य की जननी है। इस बात में कोई दो रायें नही हो सकती कि आपकी एक छोटी सी मुस्कान न सिर्फ आपको बल्कि दूसरो का भी दुख दर्द बहुत हद तक कम कर सकती है। कभी भी किसी कमजोर का मजाक करने की बजाए सदा खुद पर हंसो, इससे किसी को भी आप के ऊपर हंसने को मौका नही मिलेगा।
जहां तक हो सके हमें टी.वी. और फिल्में भी सदा ऐसी ही देखनी चहिये जिसमें पूरे परिवार के लिये हास्य से भरपूर मनोरंजन हो इससे शरीर को हर दिन एक नई ताजगी और स्फूर्ति मिलती है। इसीलिये तो ज्ञानी लोग हमें सदा हंसने की सीख देते रहते है क्योंकि हंसने से शरीर स्वस्थ रहता है। हंसी हमारी बहुत सारी बीमारियों का निदान भी करती है। आप जितना हंसोगे शरीर की पाचन शक्ति उतनी ही बढ़ती है नतीजतन इससे हमारी उंम्र लंम्बी और जीवन बेहतर बनता है। सदा खुश रहने वाले कभी भी बूढ़े नही होते क्योकि हंसने से हमारा मन भी प्रभवित होता है और मन में सकारात्मक ख्याल आते है। जिंदगी से मायूस और चिढ़चिढे रहने वाले अक्सर बीमार रहते है। ऐसे लोगो की बीमारी शरीरिक रूप से कम और मन में अधिक होती है। नतीजतन इनका इलाज डॉक्टर लोग भी नही कर पाते।
एक तरफ जहां हंसने मात्र से सोचने की शक्ति बढ़ती है, वही दिलों की दुरियॉ कम होती है। हंसने का एक और बहुत बड़ा फायदा यह भी है कि इससे जीवन में परेशानी और तनाव कम होता है, जिससे परिवार और दोस्तो के बीच प्रेम बढ़ता है। इतना सब कुछ होने के साथ हमारे आस-पास की दुनियॉ अपने आप संवर जाती है। क्या आपने कभी सोचा है कि इतने सारे फायदे होने के बावजूद भी हमें हंसने की कोई कीमत भी अदा नही करनी पड़ती। हंसी तो वो जादू की पुड़ियां है जिसकी सुंगध बहुत दूर-दूर तक के वातावरण को महका देती है। तो फिर आज से अपने जीवन में यह नियम बना लो कि सदा हंसना और दूसरो को हंसाना ही है।
यदि हमें जीवन के हर पल का सच्चा सुख और आनंन्द लेना है तो हमें खुद हंसने के साथ दूसरो को भी हंसाना होगा, क्योंकि हंसी ही केवल खुशहाल जीवन की संजीवनी है और मुस्कुराना संतुष्टि की निशानी है इसलिए सदा मुस्कराते रहो। हमारी तो भगवान से सदैव एक ही प्रार्थना है कि कभी भी किसी के जीवन से उसकी खुशी न रूठे। जौली अंकल के तर्जुबे की बात करे तो उनका मानना है कि:
जो हंसता है, वो खुदा की इबादत करता है,
जो दूसरों को हंसाता है, खुदा उसकी इबादत करता है।

कारीगर

एक बार बगीचे में एक बहुत ही सुंदर फूल खिला था। उसके रंग और महक को देख हर कोई दीवाना हुआ जा रहा था। उसी फूल के सामने एक काले रंग का पथ्थर बहुत अरसे से पड़ा हुआ था।ं हर कोई उस पथ्थर पर पैर रख कर उस फूल को नजदीक से देखने का प्रयास करता था। जैसे-जैसे लोग उस फूल की खूबसूरती की तारीफ करते वैसे-वैसे ही उसके स्चभाव में अंहकार आने लगा। एक दिन अचानक वहां से एक मूर्तिकार गुजरा। उसने रास्ते में पड़े हुए उस पथ्थर को थोड़ी देर ध्यान से देखा और फिर उसे अपने घर ले गया। कुछ ही दिनों में उसने उस काले पथ्थर को तराश कर भगवान की खूबसूरत मूरत में बदल दिया। जल्द ही उस कारीगर की बनाई हुई मूर्ति को नजदीक के एक मंदिर में स्थापित कर दिया गया। अब वहां के एक भक्तजन ने उस खूबसूरत फूल को तोड़ कर उस मूर्ति के चरणों में चढ़ा दिया। कल तक फूल के पैरो में पड़े हुए पथ्थर के चरणों में गिरते ही उस फूल का अहंकार चूर-चूर हो गया। पथ्थर ने धीरे से उस फूल को कहा कि कब रंक को राजा और राजा को रंक बनाना है, इस सारे खेल का कमाल तो दुनियां बनाने वाले उस कारीगर का है।
हर कोई अपने सपनो का घर बनाने के लिए अपनी हैसीयत के मुताबिक प्रयत्न करता है। इसके बावजूद भी सिर्फ कुछ ही घरों को देख कर यह कहा जाता है कि वाह क्या घर बनाया है? घर बनाने के लिये समान तो सभी एक जैसा ही लाते है, परन्तु इसका मुख्य कारण होता है घर बनाने वाले कारीगर का कमाल। कुछ कारीगरो के हाथ में ऐसा जादू होता है कि वो साधारण से पथ्थर में से भी ऐसी मूर्ति तराश देते है कि सारी दुनियॉ उस मूर्ति के पांव पर अपना सिर झुका देती है। कुछ समय पहले तक साधारण से पथ्थर में एक आम आदमी को भगवान का रूप नजर आने लगता है। सफेद संगमरमर के पथ्थर से बने ताजमहल की खूबसूरत कारीगिरी की मिसाल पूरी दुनियॉ में दूसरी देखने को नही मिलती।
एक धनी सेठ के पास ऐसा ही कारीगर काम करता था, जिसके हाथ में जादू था। साधारण से दिखने वाले पथ्थरों को भी इस प्रकार लगाता था कि हर कोई उसके काम को दाद दिये बिना नही रह पाता था। जिस सेठ के पास यह कारीगर काम करता था उस का काम बड़ी-बड़ी इमारतो का निर्माण करवाना था। पूरे शहर में इस कारीगर की वजह से उस सेठ के काम की धाक थी, कि इससे बढ़िया इमारत और बंगला पूरे शहर में कोई नही बना सकता। कारीगर भी हर काम में अपनी पूरी जान लगा देता था। उसने उस सेठ के परिवार के अनेक सदस्यो के लिए कई सुन्दर घर भी बनाऐ थे। जो पूरे शहर में अलग ही किस्म की मिसाल थे, कुछ लोग तो ऐसे घरो को एक अजूबे का नाम देते थे। इस कारीगर के जीवन का अधिकांश हिस्सा धनी सेठ की सेवा में ही बीता। सेठ जी भी कारीगर के बच्चो की शादी एवं हर अन्य मौके पर उसकी मदद करते रहते थे। उसके हर सुख-दुख में सारी जिम्मेंदारी के साथ उसका खर्च भी सेठ जी ही उठाते थे। एक दिन वो कारीगर सेठ जी के पास प्रार्थना लेकर गया और बोला कि अब उस का शरीर काम करने में उसका साथ नही दे रहा और अधिक काम करने में उसने अपनी असमर्था जाहिर करते हुए सेवा-निवृत होने की पेशकश की।
सेठ जी ने सारी बात सुनने के बाद उस कारीगर से कहा कि आज तक तुमने मेरे लिये एक से एक सुन्दर इमारते बनाई है। मैं तुम्हें जाने से नही रोकूगा लेकिन मेरी इच्छा है कि तुम सेवानिवृत होने से पहले मेरे लिए आखिरी बार एक बहुत ही सुन्दर सा घर बना दो। बरसो से सेठ जी के एहसानों में दबे होने के कारण उस कारीगर ने न चाहते हुए भी सेठ जी को मौन रहते हुए अपनी स्वीकृति दे दी। अगले ही दिन से उस नये घर का काम शुरू हो गया। लेकिन इस बार उस कारीगर का मन काम में नही लग रहा था। हर समय उसके मन में एक ही विचार आ रहा था कि यह सेठ न जाने और कितने दिन तक इसी तरह मेरा खून चूसता रहेगा। कई बार सेठ जी के कहने के बावजूद भी वो पहले की तरह काम में रूचि नही दिखा रहा था। सेठ जी ने इस नये घर के लिये दूसरे शहरो से हर प्रकार का बढ़िया समान मंगवा कर दिया, लेकिन कारीगर तो किसी तरह यह काम जल्द से जल्द खत्म करने की फिराक में था। जैसे तैसे उसने काम खत्म करके सेठ जी से छुट्टी की इजाजत मांगी। सेठ जी ने नये घर को अच्छी तरह निहारहने के बाद उसकी चाबी कारीगर को देते हुए बोले की तुम ने सारी जिंदगी जो मेरे लिए काम किया है, मैं उसकी कोई कीमत तो नही आंक सकता, लेकिन मैं अपनी तरफ से यह घर तुम्हें तोहफे में देता  हूँ। आज से तुम अपने परिवार के साथ यहां रह सकते हो। यह सुनते ही कारीगर के दिलो-दिमाग में झनझनाहट होने लगी, उसे इतनी जोर से सदमा लगा कि अगर मुझे पता होता कि यह घर में अपनी लिये बना रहा  हूँ तो मैं इसको बहुत ही बेहतर तरीके से बना सकता था।
हम अपने जीवन में जाने-अनजाने बहुत सी ऐसी गलतीयॉ कर देते है, जिसका हमें जिंदगी भर अफसोस बना रहता है। कुदरत हमें ऐसे मौके बार-बार नही देती। जब तक हमें गलती का एहसास होता है, उस समय तक इतनी देरी हो चुकी होती है कि हम चाह कर भी उस भूल को सुधार नही सकते। जौली अंकल का तो सदा से ही यह मानना है कि आप आज जो कोई कर्म कर रहे हो उसे पूरी ईमानदारी और बुध्दिमानी से करो क्योंकि उसी में आपका भविष्य छुपा होता है।  

आखिर दिल है हिन्दुस्तानी

  • किसी भी पार्टी में 1-2 घंटे देरी से जाना भी इनको सामान्य लगता है।
  • नये सोफे को धूल से बचाने के लिये हमेशा चध्दर से ढ़क कर रखना।
  • एक ही कार में अधिक से अधिक लोगो को बैठाना इनकी शान में शामिल है।
  • दूसरे शहर या दूर के किसी देश में फोन करते समय जोर-जोर से चिल्लाना।
  • हर प्रकार के लिफाफे, प्लास्टिक के डिब्बे आदि को बार-बार इस्तेमाल करना।
  • सैर-सपाटे के लिये एयरपोर्ट या स्टेशन पर सदा बड़े-बड़े सूटकेस लेकर जाना।
  • घर में किसी भी प्रकार के उत्सव पर हर काम का बढ़ा-चढ़ा कर ब्खान करना।
  • खाने की हर चीज में प्याज, लहुसन, खूब सारे गर्म मसाले और अधिक घी डाल कर खाना।
  • मुहल्ले की किसी लड़की के बारे में किसी प्रकार की कोई भी बात हो, उसकी पूरी जानकारी रखना।
  • नये टी.वी. के रिमोट कंन्ट्रोल, कार के सीट कवर आदि को महीनो तक प्लास्टिक से कवर करके रखना।
  • बच्चे कितने भी बड़े क्यूं न हो जाऐ, उनको सब लोगो के बीच रिंकू, टिंकू, पप्पू, बंटी, बब्ली आदि नाम से पुकाराना।
  • बच्चे किसी कारण से कभी कही दूर रहने के लिये जाये, तो आधी रात को फोन करके उससे जरूर पूछना कि क्या खाना खा लिया है?
  • डाक विभाग कभी किसी चिठ्ठी पर गलती से डाक टिकट पर मोहर न लगाऐ, तो उसे तुरन्त उतार कर संभाल लेना।
  • इन के घर पर कोई आये या यह किसी के घर जाये, जाते समय दरवाजे पर कम से कम आधा घंटा बात करना जरूरी समझते है।
  • कोई भी आदमी किसी भी दूसरे शहर में मिले, उससे कुछ न कुछ जान-पहचान या रिश्तेदारी निकालने में महारत हासिल।
  • घर में शादी-विवाह या अन्य किसी प्रकार के उत्सव में 500 - 600 से कम लोगो को बुलाना इनकी शान के खिलाफ माना जाता है।
  • दारू पार्टी में दोस्तो और रिश्तेदारो पर रोभ जमाने के लिये नेताओ और अभिनेताओ के साथ रिश्तो की बड़ी-बड़ी ढीगें मारना।
  • भगवान ने किसी लड़की को कैसा ही रंग रूप दिया हो, लेकिन उसकी शादी-विवाह की बात चलते उसे हमेशा सुन्दर, सुशील, गोरी, स्मार्ट और बहुत ही पतली बताने में गर्व महसूस करते है।
  • एक पक्का हिंन्दुस्तानी अपने आस-पड़ोस और रिश्तेदारो के निजी मामलों की पूरी जानकारी रखता है और उसे बाकी सभी लोगो तक जल्द से जल्द पहुंचाने के काम बहुत ही तेजी से करता है।

लगता है, आपको भी जौली अंकल की यह चुटकीली बाते पढ़ने में बहुत मजा आ रहा है, आऐं भी क्यों न? आखिर हमारा दिल भी तो है हिन्दुस्तानी।             

आत्ममंथन

हम चाहें बात करें गांव की चौपाल हो या किसी राजनीतिक पार्टी की चुनावी सभा की, औरतो की किट्टी पार्टी की या आदमीयों की दारू पार्टी की, अधिकांश लोग अपने प्रतिध्दवंदियो की टांग खीचते हुऐ ही नजर आते है। लगता है कि हमारे शरीर की रचना करते समय भगवान से एक कमी रह गई है, और वो यह है कि हम किसी भी क्षेत्र में हो हम किसी को अपने से आगे बढ़ता नही देख सकते। उस समय तो हमें और भी अच्छा लगता है, जब कोई तीसरा आदमी सब लोगो के बीच हमारे प्रतिध्दवंदियो की पोल खोल कर उसे नंगा करने की कोशिश करता है।
जीवन में सबसे बड़ा धर्म मानवता का है। अगर आप एक सच्चे इंन्सान है तो आप दूसरो का दुख पहुंचाना तो दूर, दुखते कभी किसी का दिल भी दुखते नही देख सकते। अब आप चाहे हिन्दू हो, सिख, ईसाई या मुस्लमान। सबसे उंचा धर्म आपका इंसानियत का हे। अगर आप में इंसानियत जिंदा हैं तो अपने धर्म को मानते हुऐ भी आप इंसानियत के हर कुर्बानी देने को तैयार हो जायेगे। वैसे तो समाज में जब भी कोई अच्छा और नेक काम शुरू करता है तो उसे हमारे जैसे देश में ओछी राजनीति का सामना करना पड़ता है। ऐसे लोग नेक इंन्सान के साथ धर्म को भी बदनाम करते है। सीधे-साधे और भोले लोगों को धर्म के नाम पर गुमराह करके वो असानी से अपना शिकार बना लेते है। कुछ लोग धर्म के नाम पर लाखो-करोड़ो रूप्ये का चंदा इक्ट्ठा कर उसे अपने स्वार्थ्र हित में इस्तेमाल करने लगते है।
हर इंन्सान के अंन्दर एक अनमोल खज़ाना छुपा हुआ है। लेकिन किसी भी खजाने को मिट्टी में दबा दिया जाए तो वो खज़ाना न तो किसी को नजर आयेगा और न ही वो किसी के कुछ काम आ सकता है। हम सब के अंन्दर खुदा ने एक अलोकिक रोशनी दी हुई है। लेकिन अगर हम अपनी आखें ही बंद रखेगे तो हमें वो अलोकिक रोशनी हमें कैसे नजर नजर आयेगी? भरी दुपहिर में भी हम अपने घर के सब खिड़कीयों और दरवाजो पर मोटे काले रंग के पर्दे लगा दे तो हमारे घर में हर तरफ अंधेरा ही अंधेरा हो जायेगा। सूरज के होते हुऐ भी हमें कुछ नही दिखाई देगा। इसका यह मतलब तो नहीं की सूरज है ही नही? जो लोग बाहर खुली हवा में बैठे हुऐ है, वो कुदरत की हर बनाई हुई वस्तु के साथ सूरज की रोशनी का भी आन्नद उठा सकते है।
बुद्दिमान लोग तो सदा से हम सब को समझाते रहे है, कि भगवान तो कण-कण में बसा है, लेकिन अगर हम भगवान के बारे में कुछ जानते ही नही तो हम उसे कैसे पहचानेगे? जिस चीज के बारे में हमें कुछ ज्ञान ही नही वो हमारे सामने होते हुए भी हमारे पास नही होती है, क्योंकि हमारी आखें उसे पहचान ही नही सकती। दूसरी और पारखी लोग एक साधारण से पत्थर में भी भगवान को प्रकट कर लेते है। एक मूर्तिकार एक पथ्थर को तराश कर उसे भगवान का रूप दे देता है। कुछ समय पहले तक एक साधारण सा पथ्थर अब हमें भगवान राम या कृष्ण का रूप नजर आने लगता है। उस कारीगर ध्दारा बनाई हुई भगवान की इस मूर्ति के आगे लाखो-करोड़ो सिर झुकने लगते है।
एक बात से और अगाह करवाना चा हूँगा कि किसी भी विरोधी के बारे में कुछ भी बोलो, लेकिन एक बात सदैव याद रखो कि फिर कभी जीवन के किसी मोड़ पर उससे मुलाकात हो जाऐ तो हमें उससे आखें न चुरानी पड़े। अपने सामने वाले की तरफ उंगुली करके उसकी कमियॉ निकालते हुए हम यह भूल जाते है, कि बाकी की सभी अगुलियॉ हमारी तरफ है। हर इंसान के अंदर जीवन के दो पहलू होते है, एक अच्छाई और दूसरा बुराई। हम अपनी अच्छाईयों के साथ अपनी कमियों का समय-समय पर आत्ममंथन करते रहे तो यह हर तरह के पूजा-पाठ से बढ़ कर होगा। अब समय या गया है कि हम एक पल की देरी किये बिना अपनी कार्यशैली को सुधारे। जौली अंकल तो यहां तक कहते हैं कि दूसरों को सच की शिक्षा देने से पहले खुद झूठ बोलना छोड़िए। बड़ी-बड़ी बातें बनाने के बजाय छोटे-छोटे लेकिन नेक काम करना सीखिए। इसी आत्ममंथन से न सिर्फ हमारा जीवन ब्लकि हमारे चारो तरफ का महौल भी शांतप्रिय बन जायेगा।  

हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है

घर दफतर, बस स्टैंड हो या रेलगाड़ी का सफर, कुछ लोग कभी भी अपनी जुबां पर काबू नही रख पाते। चुगलखोर किसी की खुशी में या किसी के मरने पर जाएं वो अड़ोस-पड़ोस वालों की चुगली किये बिना नही रह सकते। पूरे मुहल्ले के किसी बच्चे की रिश्ते की बात को अंतिम रूप में पहुंचने से पहले ही आधी-अधूरी जानकारी के साथ उस रिश्ते में बीसीयों कमियां गिनवा देगे। साथ में यह कहना कभी नही भूलते कि मैने तो आपको अपना समझ कर यह फर्ज पूरा किया है। अब आप आगे किसी से यह सब कुछ न कहना। ऐसे महान लोगो का बिना किसी मुद्दे के घंटो बोलने के बाद भी शोले फिल्म की बंसन्ती की तरह दावा होता है कि हमें तो फालतू बात करने की आदत तो है नही।
हर बार चुगली शुरू करने से पहले चुगलखोर एक बात जरूर कहते कि मुझे तो चुगली करने की आदत तो है नही, लेकिन क्या करू कि सच देख कर बर्दाशत भी तो नही होता। दुसरो की बुराई और अपनी तारीफ का बार-बार बढ़ा-चढ़ा कर ब्खान केवल इसलिये करते है कि सामने वालों पर उनके बड़पन का अच्छा प्रभाव पड़ सके, लेकिन असल में इसका असर बिल्कुल उल्टा होता है। अपनी बात को इस प्रकार कहने से सदैव अपना घमंड ही झलकता है और यह तो हर कोई जानता है कि घमंड का अंधकार, असली अंधकार की तुलना में अधिक खतरनाक होता है।
कुछ लोग अपनी चुगली करने की आदत से मजबूर होकर बिना सिर पैर की बातों के साथ झूठ बोलने से भी परहेज नही करते। उस समय वो यह भी भूल जाते है, कि अब एक झूठ को छिपाने के लिये अब उन्हें दस झूठ और बोलने पड़ेगे। आदमी कितना भी चतुर क्यूं न हो, उसके झूठ की पोल एक न एक दिन सबके सामने खुल ही जाती है। सत्य बोलने वाले को कुछ पलों के लिये थोड़ी तकलीफ तो जरूर झेलनी पड़ती है, परन्तु लंबी अवधि में सदैव ताकत उसी की बढ़ती है। इसलिए जीवन में सदा ही झूठ बोलने से बचने में अक्कलमंदी है।
भगवान ने हमारे शरीर में वजन के हिसाब से शायद सबसे हल्का अंग हमारी जुबान को ही बनाया है, लेकिन अधिकाश लोग इस पर फिर भी काबू नही रख पाते। हम अक्सर भूल जाते है कि भगवान ने हमारी एक जुबान के साथ दांतो की शक्ल में 32 कठोर पहरेदार भी बिठाये हुऐ है। इसके बावजूद मूर्ख लोग बिना सोच-विचार के बोलते रहते है। जबकि विद्वान लोग कोई भी बात बोलने से पहले दस बार पहले सोचते है। उन्हे सदा यह चिंता सताती रहती है कि उनके द्वारा बोला गया एक भी शब्द किसी के मन को दुखी तो नही कर रहा।
हम सभी जानते है कि दुनियां का सबसे बड़ा महाभारत का युद्व भी सिर्फ चंद शब्दों के बिना सोच-विचार के बोलने से ही शुरू हुआ था। जिस प्रकार चंद सिक्के मिल कर तो बहुत शोर मचाते है, परन्तु बड़े-बड़े हजारों नोट खामोशी से चुप-चाप अलग से एक तरफ पड़े रहते है, ठीक उसी प्रकार मूर्ख लोग इन सब चीजों की परवाह न करते हुए बिना सोचे ही अपने तीरो के बाण चला देते है। आजकल हर कोई दूसरो से पहले अपनी झूठी-सच्ची तारीफ करके घंमड महसूस करता है। बिना अपने अंदर झांके दूसरो का मार्गदर्शन करने की प्रयत्न करते है।
अक्सर देखने में आता है कि कई बार इस प्रकार की चुगलीयों से पैदा हुई छोटी सी समस्यां हंसते खेलते परिवारों की खुशीयों में आग लगा देती है। भगवान न करे कि बदजुबानी की वजह से आपके परिवार में कभी कुछ समस्याएं आ ही गई है, तो व्यर्थ की चिंता करने से उनका कोई हल नही मिलने वाला। आज तक कभी भी किसी समस्यां का हल परेशान होने से नही मिला।
अधिक बोलने वालो की अपेक्षा मौन रहने से हमारे अंदर ऊर्जा का संचार होता है। मौन रहने से परिवारिक कलह कलेश बहुत हद तक कम हो जाते है। यदि सामने वाला गुस्से में हो तो आपके चुप हो जाने से उसका गुस्सा भी कुछ पलों में शांन्त हो जाता है, और कोई भी कार्य बिगड़ने से बच जाता है। आप ने आमतौर पर देखा होगा कि बहुत अधिक बोलने वालों की भीड़ में कभी भी अच्छे लोग नही होते और अच्छा बोलने वाले लोगो की कभी भीड़ नही होती। हर कोई समझता है कि इतिहास में केवल उन महान कर्मीयों का नाम दर्ज है, जिन्होने सदा ही संसार के खिलाफ अकेले खड़े होकर सत्य बात कहने की हिम्मत की है।
जौली अंकल तो सभी पहलूओं को परखने के बाद एक ही बात कहते है कि दूसरो को आंकने से पहले अपने आप को आंके। खुद झूठ का साहरा छोड़ कर सत्य बोलना आना चाहिए। यदि आप स्वयं को सदा ही दूसरो से ऊंचा समझते रहेगे तो आप अवश्य ही अंहकार औरर् ईष्या के शिकार हो जाएंगे। अब और अधिक न बोलते हुए अपनी बात यही खत्म करता  हूँ, क्योंकि अब अगर मैं कुछ भी बोंलूगा तो आप बोलोगे कि बोलता है।   

घातक एवं लाइलाज बीमारी है डी.वी.टी

आज के तेजी से बदलते इस युग में इंसान हर प्रकार के रिश्तो की अहमियत को भूलकर उसे पैसे की कसोटी पर परखने लगा है। आज आम आदमी चाहें किसी नौकरी में हो या व्यापार से जुड़ा हो, उसका स्वभाव हर चीज को पैसे से तौलने का बन गया है। किसी भी नए रिश्ते को बनाने से पहले हम कई बार सोचते है कि हमें आने वाले समय में इससे क्या-क्या लाभ हो सकता है? बड़े-बर्जुग अक्सर कहते है कि एक मां अकेले 10 बच्चो को पाल सकती है, लेकिन दस बच्चे मिल कर आज एक मां को नही पाल सकते। आज यह हकीकत किसी से छिप्ी हुई नही है, आए दिन हर तरफ यही सब कुछ देखने को मिल रहा है।
बिखरते परिवारो के कारण मां-बाप को जीवन की ढ़लती शाम के अखिरी दिन किसी अंधेरे कमरे में या किसी सरकारी संस्था के रहमोकर्म पर गुजारने पड़ते है। समाज में सुख-सुविधाओं के साथ इंसानो की भीड़ तो बढ़ रही है, लेकिन बड़े शहरो में खास तौर से हर इंसान अकेला और असहाय होता जा रहा है। अपराध की दुनिया के ग्राफ को देखे तो लगता है कि खून के रिश्तो के मायने बिल्कुल बदल चुके है। इन हालात में भी कुछ लोग ऐसे है जो अपने जीवन की लड़ाई लड़ते हुए भी समाज में अपना सराहनीय योगदान दे रहे है।
इस लेख के माध्यम से हम बनते बिगड़ते रिश्तों के साथ-साथ आपको डी.वी.टी. (Deep Vein Thermbosis) जैसी घातक एवं लाइलाज बीमारी के बारे में जानकारी देना चाहेगे। इस बीमारी का जिक्र करना इसलिये भी जरूरी है क्योकि हमारे देश में अधिकतर लोगो को इस बारे में कुछ भी जानकारी नही है। इसी बीमारी से पीढ़ित ऐसे ही एक सज्जन की जिंदगी के खास पहलूओं से परिचय कुछ इस प्रकार है।
एक दिन टांगो में के दर्द का इलाज करवाने जब वह अस्पताल गये तो डॉक्टरो ने जांच करने के बाद पाया कि वो डी.वी.टी जैसी लाईलाज बीमारी से पीढ़ित है। इस बीमारी में टांगो की नसें फूल जाती है और उनमें खून जम जाता है। जिससे खून का दौरा रूक जाता है। हमारे शरीर की बनावट ऐसी है कि पूरे शरीर में खून का बहाव समान रूप से होता रहता है। खून को पैरो से ऊपर की और गुरूत्वाकर्षण के विपरीत चढ़ाने के लिये इन नसों में लगे वाल्व पंप की तरह काम करते है। यह वाल्व खून को ऊपर चढ़ाने के बाद उसे पैरां की तरफ वापस नही आने देते। कहने और सुनने में यह साधारण सी बीमारी है किंन्तु केवल अमरीका में हर साल 50 हजार से अधिक लोगो को यह प्रतिवर्ष मौत की नींद सुला देती है।
विदेशो में अधिक ठंड और लंबे हवाई सफर के कारण यह बीमारी बहुत आम है। लेकिन हमारे देश में हर प्रकार के मौसम और अधिक गर्मी के कारण बहुत कम ही मरीज देखने को मिलते है। इस बीमारी में जब यह वाल्व बंद हो जाते है तो खून हृदय की और लौटना बंद हो जाता है। जिस कारण हर समय दिल का दौरा पड़ने का खतरा बना रहता है। टांगो में हर समय असहनीय दर्द और पैरो में सूजन से मरीज को बहुत ही तकलीफ होती है। इस बीमारी से पीढ़ित मरीजो का किसी किस्म की भागदोड़, चलने-फिरने, खास तौर से सीढ़िया चढ़ने से जान तक को खतरा हो सकता है। सबसे हैरानगी की बात तो यह है कि विज्ञान की इतनी तरक्की के बावजूद अभी तक इस बीमारी का सारी दुनियां में अभी तक कोई इलाज संभव नही है। ऐसे में डी.वी.टी के मरीजों के पास सारा दिन दुख-दर्द के साथ सोच में डूबे रहने के इलावा कोई चारा नही बचता।
जैसा कि समय-समय पर समाज में साधु-संतो के इलावा कुछ जनसाधारण भी हमारे जीवन में ऐसी छाप छोड़ जाते है जोकि हम सभी के लिये प्रेरणस्रोत बन जाते है। ऐसे लोग अपने दुखो और परेशानीयों से घबराने की जगह दूसरे लोगो के सामने हर हाल मे जीवन जीने की मिसाल कायम कर देते है। ऐसे ही एक शक्स इस बीमारी से पीढ़ित होने के बावजूद दूसरे लोगो के दुख दर्द को कम करने के लिए हंसने-हसाने की एक मुहिम शुरू की है। आज देश के कई जाने-माने समाचार पत्रों में उनके द्वारा लिखे हुए हंसी-मजाक और लेख से घर बैठे लाखो लोगो का मनोरंजन होता है। समय-समय पर रेडियो और टी.वी. के माध्यम से भी इन्हें अपने इस हुनर से जनता का भरपूर मनोरंजन करते देखा जा सकता है। हर वर्ग के हिंदी पाठको के लिये इन्होने दो चुटकलों की पुस्तके भी पेश की है। जी हां यह है आप सब के चहेते 'जौली अंकल'
भगवान न करे कि आपके जीवन में कभी कोई इस तरह की परेशानी आये। लेकिन जब कभी भी कोई दुख सताए तो जीवन से निराश होने की जगह कुछ ऐसा ही सार्थक और रचनात्मक प्रयास करने में जुट जाऐ, जिससे आप भी जौली अंकल की तरह दूसरों के जीवन में एक अमिट छाप छोड़ सके। एक बात सदैव याद रखो कि आप हंसोगे तो दुनियां आपके साथ हंसेगी, लेकिन यदि आप रोओगे तो आपको अकेले ही रोना पड़ेगा और रोने से कभी किसी सम्सयां का हल नही निकल सकता चाहे वो डी.वी.टी. जैसी घातक एवं लाइलाज बीमारी ही क्यूं न हो।   

इज्जत

कुछ दिन पहले हमारे पड़ोसी के यहां बहुत अच्छी दावत चल रही थी। एक तरफ अच्छा बढ़िया संगीत और दूसरी और दारू पार्टी का दौर जारी था। मजाक-मजाक में किसी ने मुसद्दी लाल जी से कुछ बदजुबानी कर दी। गुस्से में लाल-पीले होते हुए उन्होनें जोर-जोर से कहना शुरू कर दिया की हम बहुत इज्जतदार आदमी है, हम यहां कोई बेइज्जती करवाने नही आये। नशें में टुन हो चुके वीरू ने मुसद्दी लाल जी को पूछ लिया कि आप एक बात बताओ फिर आप बेइज्जती करवाने कहां जाते हो। वीरू की इस बात ने आग में घी डालने का काम किया और सारी पार्टी में अच्छा खासा बवाल खड़ा हो गया। वीरू की पत्नी बंसन्ती ने उसे डांटते हुए कहा कि आपको किसी के झगड़े में बोलने की क्या जरूरत थी? इन्ही बातों के कारण पहले ही कोई भी तुम्हारी इज्जत नही करता। वीरू ने तपाक से कहा कि न तो मुझे किसी की परवाह है और न ही मैं किसी से डरता  हूँ। मैं तो दुनियां में केवल दो लोगो की इज्जत करता  हूँ। बंसन्ती ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा कि एक तो मैं जानती  हूँ कि मैं हूँ, अब यह दूसरा मुंआ कौन आ गया जिसकी तुम इज्जत करने लगे हो।
साधु संतो को छोड़ यदि आम आदमी की बात करे तो जीवन में लाभ-हानि, उतार चढ़ाव को वो फिर भी किसी तरह बर्दाशत कर लेता है, लेकिन समाज में अपनी नाक उंची रखने के लिये अपनी इज्जत के साथ कभी समझोता नही कर पाता। इज्जत पाने के लिये हर किसी की यही सोच होती है कि जो कुछ हमारे पास है या जो कुछ हर किसी को असानी से मिल जाता है उसे पाने से क्या होगा? दोस्तो यारों में इज्जत पाने की यह हौड़ बचपन से ही शुरू हो जाती है। सबसे अच्छे कपड़े, स्कूल में अवल स्थान पाना, पार्टी में सबसे सुंदर दिखने की चाह और जवान होते-होते सबसे मंहगी कार या मोटर साईकल के साथ एक सुंदर प्रेमी या प्रेमिका को पाने की होती है।
कल तक हमारे यहां मर्द के सिर पर पगड़ी और औरतों के सिर पर दुप्ट्टा इज्जत की निशानी माने जाते थे। परन्तु आज की औरत अपने देश के सभी रीति-रिवाजों को भूलकर फैशन के नाम पर कटे हुए खुले बाल, सिर से गायब दुप्ट्टा और अधनंगे से कपड़े पहन कर खुद ही अपनी इज्जत नीलाम करने पर ऊतारू है। आदमी ऐसी औरतो को एक जंगली शिकारी की तरह देखते है। फिर जब कुछ शरारती लोग इनकी शान में कुछ कह देते है, तो इन्हें लगता है कि इनकी इज्जत से खिलवाड़ हो रहा है। पैसा और शौहरत पाने की चाह में कुछ बच्चे जवानी में ऐसी भूल कर बैठते है कि माता-पिता की बरसों पुरानी मेहनत से कमाई हुई इज्जत एक पल में सरे बाजार नीलाम हो जाती है। कुछ खुबसूरत लड़कियां तो अपने कैरियर की बुलंदियों को छूने के लिये धनी और ताकतवर विवहित लोगो से प्रेम और शादी कर लेती है। इस नशे में वो यह भी भूल जाती है कि चालबाज, धूर्त लोग अपनी लच्छेदार बातो से सिर्फ उनकी जिंदगी बर्बाद कर सकते है। ऐसे में कोई गलती से इन्हें समझाने की कोशिश कर दे तो सामने वाले की इज्जत को तार-तार करते हुए इनका सीधा सा जवाब होता है कि आप पहले अपने घर को ठीक कर लो फिर किसी दूसरे को उपदेश देना।
सबसे अधिक दुख तो उस समय होता है जब हम अपने आस पास रहने वाले कुछ लोगो को देश की इज्जत और कानून के साथ खिलवाड़ करते हुए देखते है। कितनी ही विदेशी महिलाओं के साथ हमारे देश में लूटपाट और बलात्कार तक के मामले देखने में आ चुके है। नतीजतन जब हम में कोई विदेश जाता है तो वहां हमें वो इज्जत नही मिलती जिस की हम सभी उम्मीद लेकर जाते है। कुछ लोगो के मन में यह बात घर कर चुकी है कि किसी तरह का कोई भी कुर्कम पैसे के बल पर छिप जाता है। ऐसे लोग यह क्यूं भूल जाते है कि तकदीर एक रईस को भिखारी और भिखारी को कब रईस बना दे कोई नही जानता। परन्तु एक छोटी सी भूल के कारण जीवन भर की इज्जत सदा के लिये खत्म हो जाती है। केवल कोरी शिक्षा प्राप्त कर लेने से आज तक कोई इज्जत नही पा सका। शिक्षा में जब तक नैतिक शिक्षा का समावेश नहीं होगा, तब तक न तो शिक्षा का लक्ष्य पूरा होता है और न ही समाज में इज्जत से वो स्थान मिल पाता है, जिसके हम सच्चे हकदार होते है।
जब हम आईने में देखते है तो हमें अपना प्रतिबिंब दिखाई देता है, यदि हम अपने दिल में झांकने की कोशिश करे तो हमें अपनी आत्मा की परछाई ही दिखाई देती है। सामने वाले से इज्जत की उम्मीद करने से पहले हमें उसकी इज्जत करना सीखना होगा। अपनों से बड़ो और गुणी व्यक्ति की इज्जत करने का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि आपसे छोटे आपकी इज्जत खुद-ब-खुद शुरू कर देते है। कुछ लोग मजाक मजाक में सामने वाले को छोटा और कमजोर जानकर उसकी इज्जत उतार देते है, जबकि हमारे सविधान और नैतिक मूल्यो के मुताबिक हर कोई बराबर की इज्जत का हकदार है।
जौली अंकल की सोच तो यही कहती है कि समझदार इंसान को इशारा ही काफी होता है। हर आदमी की इज्जत उसके अपने हाथ में होती है। अब यदि हमें एक साफ सुथरे और सभ्य समाज की कल्पना को अमली जामा पहनाना है, तो हमें सभी को एक जैसी इज्जत देनी होगी।