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गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

आत्ममंथन

हम चाहें बात करें गांव की चौपाल हो या किसी राजनीतिक पार्टी की चुनावी सभा की, औरतो की किट्टी पार्टी की या आदमीयों की दारू पार्टी की, अधिकांश लोग अपने प्रतिध्दवंदियो की टांग खीचते हुऐ ही नजर आते है। लगता है कि हमारे शरीर की रचना करते समय भगवान से एक कमी रह गई है, और वो यह है कि हम किसी भी क्षेत्र में हो हम किसी को अपने से आगे बढ़ता नही देख सकते। उस समय तो हमें और भी अच्छा लगता है, जब कोई तीसरा आदमी सब लोगो के बीच हमारे प्रतिध्दवंदियो की पोल खोल कर उसे नंगा करने की कोशिश करता है।
जीवन में सबसे बड़ा धर्म मानवता का है। अगर आप एक सच्चे इंन्सान है तो आप दूसरो का दुख पहुंचाना तो दूर, दुखते कभी किसी का दिल भी दुखते नही देख सकते। अब आप चाहे हिन्दू हो, सिख, ईसाई या मुस्लमान। सबसे उंचा धर्म आपका इंसानियत का हे। अगर आप में इंसानियत जिंदा हैं तो अपने धर्म को मानते हुऐ भी आप इंसानियत के हर कुर्बानी देने को तैयार हो जायेगे। वैसे तो समाज में जब भी कोई अच्छा और नेक काम शुरू करता है तो उसे हमारे जैसे देश में ओछी राजनीति का सामना करना पड़ता है। ऐसे लोग नेक इंन्सान के साथ धर्म को भी बदनाम करते है। सीधे-साधे और भोले लोगों को धर्म के नाम पर गुमराह करके वो असानी से अपना शिकार बना लेते है। कुछ लोग धर्म के नाम पर लाखो-करोड़ो रूप्ये का चंदा इक्ट्ठा कर उसे अपने स्वार्थ्र हित में इस्तेमाल करने लगते है।
हर इंन्सान के अंन्दर एक अनमोल खज़ाना छुपा हुआ है। लेकिन किसी भी खजाने को मिट्टी में दबा दिया जाए तो वो खज़ाना न तो किसी को नजर आयेगा और न ही वो किसी के कुछ काम आ सकता है। हम सब के अंन्दर खुदा ने एक अलोकिक रोशनी दी हुई है। लेकिन अगर हम अपनी आखें ही बंद रखेगे तो हमें वो अलोकिक रोशनी हमें कैसे नजर नजर आयेगी? भरी दुपहिर में भी हम अपने घर के सब खिड़कीयों और दरवाजो पर मोटे काले रंग के पर्दे लगा दे तो हमारे घर में हर तरफ अंधेरा ही अंधेरा हो जायेगा। सूरज के होते हुऐ भी हमें कुछ नही दिखाई देगा। इसका यह मतलब तो नहीं की सूरज है ही नही? जो लोग बाहर खुली हवा में बैठे हुऐ है, वो कुदरत की हर बनाई हुई वस्तु के साथ सूरज की रोशनी का भी आन्नद उठा सकते है।
बुद्दिमान लोग तो सदा से हम सब को समझाते रहे है, कि भगवान तो कण-कण में बसा है, लेकिन अगर हम भगवान के बारे में कुछ जानते ही नही तो हम उसे कैसे पहचानेगे? जिस चीज के बारे में हमें कुछ ज्ञान ही नही वो हमारे सामने होते हुए भी हमारे पास नही होती है, क्योंकि हमारी आखें उसे पहचान ही नही सकती। दूसरी और पारखी लोग एक साधारण से पत्थर में भी भगवान को प्रकट कर लेते है। एक मूर्तिकार एक पथ्थर को तराश कर उसे भगवान का रूप दे देता है। कुछ समय पहले तक एक साधारण सा पथ्थर अब हमें भगवान राम या कृष्ण का रूप नजर आने लगता है। उस कारीगर ध्दारा बनाई हुई भगवान की इस मूर्ति के आगे लाखो-करोड़ो सिर झुकने लगते है।
एक बात से और अगाह करवाना चा हूँगा कि किसी भी विरोधी के बारे में कुछ भी बोलो, लेकिन एक बात सदैव याद रखो कि फिर कभी जीवन के किसी मोड़ पर उससे मुलाकात हो जाऐ तो हमें उससे आखें न चुरानी पड़े। अपने सामने वाले की तरफ उंगुली करके उसकी कमियॉ निकालते हुए हम यह भूल जाते है, कि बाकी की सभी अगुलियॉ हमारी तरफ है। हर इंसान के अंदर जीवन के दो पहलू होते है, एक अच्छाई और दूसरा बुराई। हम अपनी अच्छाईयों के साथ अपनी कमियों का समय-समय पर आत्ममंथन करते रहे तो यह हर तरह के पूजा-पाठ से बढ़ कर होगा। अब समय या गया है कि हम एक पल की देरी किये बिना अपनी कार्यशैली को सुधारे। जौली अंकल तो यहां तक कहते हैं कि दूसरों को सच की शिक्षा देने से पहले खुद झूठ बोलना छोड़िए। बड़ी-बड़ी बातें बनाने के बजाय छोटे-छोटे लेकिन नेक काम करना सीखिए। इसी आत्ममंथन से न सिर्फ हमारा जीवन ब्लकि हमारे चारो तरफ का महौल भी शांतप्रिय बन जायेगा।  

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