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गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

कारीगर

एक बार बगीचे में एक बहुत ही सुंदर फूल खिला था। उसके रंग और महक को देख हर कोई दीवाना हुआ जा रहा था। उसी फूल के सामने एक काले रंग का पथ्थर बहुत अरसे से पड़ा हुआ था।ं हर कोई उस पथ्थर पर पैर रख कर उस फूल को नजदीक से देखने का प्रयास करता था। जैसे-जैसे लोग उस फूल की खूबसूरती की तारीफ करते वैसे-वैसे ही उसके स्चभाव में अंहकार आने लगा। एक दिन अचानक वहां से एक मूर्तिकार गुजरा। उसने रास्ते में पड़े हुए उस पथ्थर को थोड़ी देर ध्यान से देखा और फिर उसे अपने घर ले गया। कुछ ही दिनों में उसने उस काले पथ्थर को तराश कर भगवान की खूबसूरत मूरत में बदल दिया। जल्द ही उस कारीगर की बनाई हुई मूर्ति को नजदीक के एक मंदिर में स्थापित कर दिया गया। अब वहां के एक भक्तजन ने उस खूबसूरत फूल को तोड़ कर उस मूर्ति के चरणों में चढ़ा दिया। कल तक फूल के पैरो में पड़े हुए पथ्थर के चरणों में गिरते ही उस फूल का अहंकार चूर-चूर हो गया। पथ्थर ने धीरे से उस फूल को कहा कि कब रंक को राजा और राजा को रंक बनाना है, इस सारे खेल का कमाल तो दुनियां बनाने वाले उस कारीगर का है।
हर कोई अपने सपनो का घर बनाने के लिए अपनी हैसीयत के मुताबिक प्रयत्न करता है। इसके बावजूद भी सिर्फ कुछ ही घरों को देख कर यह कहा जाता है कि वाह क्या घर बनाया है? घर बनाने के लिये समान तो सभी एक जैसा ही लाते है, परन्तु इसका मुख्य कारण होता है घर बनाने वाले कारीगर का कमाल। कुछ कारीगरो के हाथ में ऐसा जादू होता है कि वो साधारण से पथ्थर में से भी ऐसी मूर्ति तराश देते है कि सारी दुनियॉ उस मूर्ति के पांव पर अपना सिर झुका देती है। कुछ समय पहले तक साधारण से पथ्थर में एक आम आदमी को भगवान का रूप नजर आने लगता है। सफेद संगमरमर के पथ्थर से बने ताजमहल की खूबसूरत कारीगिरी की मिसाल पूरी दुनियॉ में दूसरी देखने को नही मिलती।
एक धनी सेठ के पास ऐसा ही कारीगर काम करता था, जिसके हाथ में जादू था। साधारण से दिखने वाले पथ्थरों को भी इस प्रकार लगाता था कि हर कोई उसके काम को दाद दिये बिना नही रह पाता था। जिस सेठ के पास यह कारीगर काम करता था उस का काम बड़ी-बड़ी इमारतो का निर्माण करवाना था। पूरे शहर में इस कारीगर की वजह से उस सेठ के काम की धाक थी, कि इससे बढ़िया इमारत और बंगला पूरे शहर में कोई नही बना सकता। कारीगर भी हर काम में अपनी पूरी जान लगा देता था। उसने उस सेठ के परिवार के अनेक सदस्यो के लिए कई सुन्दर घर भी बनाऐ थे। जो पूरे शहर में अलग ही किस्म की मिसाल थे, कुछ लोग तो ऐसे घरो को एक अजूबे का नाम देते थे। इस कारीगर के जीवन का अधिकांश हिस्सा धनी सेठ की सेवा में ही बीता। सेठ जी भी कारीगर के बच्चो की शादी एवं हर अन्य मौके पर उसकी मदद करते रहते थे। उसके हर सुख-दुख में सारी जिम्मेंदारी के साथ उसका खर्च भी सेठ जी ही उठाते थे। एक दिन वो कारीगर सेठ जी के पास प्रार्थना लेकर गया और बोला कि अब उस का शरीर काम करने में उसका साथ नही दे रहा और अधिक काम करने में उसने अपनी असमर्था जाहिर करते हुए सेवा-निवृत होने की पेशकश की।
सेठ जी ने सारी बात सुनने के बाद उस कारीगर से कहा कि आज तक तुमने मेरे लिये एक से एक सुन्दर इमारते बनाई है। मैं तुम्हें जाने से नही रोकूगा लेकिन मेरी इच्छा है कि तुम सेवानिवृत होने से पहले मेरे लिए आखिरी बार एक बहुत ही सुन्दर सा घर बना दो। बरसो से सेठ जी के एहसानों में दबे होने के कारण उस कारीगर ने न चाहते हुए भी सेठ जी को मौन रहते हुए अपनी स्वीकृति दे दी। अगले ही दिन से उस नये घर का काम शुरू हो गया। लेकिन इस बार उस कारीगर का मन काम में नही लग रहा था। हर समय उसके मन में एक ही विचार आ रहा था कि यह सेठ न जाने और कितने दिन तक इसी तरह मेरा खून चूसता रहेगा। कई बार सेठ जी के कहने के बावजूद भी वो पहले की तरह काम में रूचि नही दिखा रहा था। सेठ जी ने इस नये घर के लिये दूसरे शहरो से हर प्रकार का बढ़िया समान मंगवा कर दिया, लेकिन कारीगर तो किसी तरह यह काम जल्द से जल्द खत्म करने की फिराक में था। जैसे तैसे उसने काम खत्म करके सेठ जी से छुट्टी की इजाजत मांगी। सेठ जी ने नये घर को अच्छी तरह निहारहने के बाद उसकी चाबी कारीगर को देते हुए बोले की तुम ने सारी जिंदगी जो मेरे लिए काम किया है, मैं उसकी कोई कीमत तो नही आंक सकता, लेकिन मैं अपनी तरफ से यह घर तुम्हें तोहफे में देता  हूँ। आज से तुम अपने परिवार के साथ यहां रह सकते हो। यह सुनते ही कारीगर के दिलो-दिमाग में झनझनाहट होने लगी, उसे इतनी जोर से सदमा लगा कि अगर मुझे पता होता कि यह घर में अपनी लिये बना रहा  हूँ तो मैं इसको बहुत ही बेहतर तरीके से बना सकता था।
हम अपने जीवन में जाने-अनजाने बहुत सी ऐसी गलतीयॉ कर देते है, जिसका हमें जिंदगी भर अफसोस बना रहता है। कुदरत हमें ऐसे मौके बार-बार नही देती। जब तक हमें गलती का एहसास होता है, उस समय तक इतनी देरी हो चुकी होती है कि हम चाह कर भी उस भूल को सुधार नही सकते। जौली अंकल का तो सदा से ही यह मानना है कि आप आज जो कोई कर्म कर रहे हो उसे पूरी ईमानदारी और बुध्दिमानी से करो क्योंकि उसी में आपका भविष्य छुपा होता है।  

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