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गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

भगवान भरोसे

एक रेल यात्री ने दिल्ली पहुंचते ही स्टेशन मास्टर से शिकायत की आपकी सभी गाड़ीयॉ न तो समय पर चलती है और न ही कभी समय पर पहुंचती है। फिर भी आप बार-बार यह समय सारिणी क्यूं बनाते रहते है? रेलवे अधिकारी ने बड़े ही प्यार से उसे समझाते हुऐ कहा कि अगर हमारे पास समय सारिणी ही नही होगी तो हमें यह कैसे मालूम होगा कि कौन सी गाड़ी कितनी देरी से आ या जा रही है। उस यात्री ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा कि जैसे हमारे देश में एक आम आदमी की जन्म से मृत्यु तक जिंदगी सब कुछ भगवान भरोसे ही चल रही है लगता है वैसे ही कि आपके यहां भी सब कुछ भगवान भरोसे ही चल रहा है।
हर कोई छाती ठोक कर एक ही बात कहता है कि यह सब कुछ मेरी मेहनत और अक्कलमंदी के कारण ही संभ्भव हो पाया है। खुदा न करे अगर किसी के साथ कुछ अनहोनी हो जाए या कोई काम मन मुताबिक न बन पाऐ तो सारा दोष भगवान के माथे मढ़ने में हम एक पल की भी देरी नही करते। आऐ दिन हम देखते है कि अगर कोई मरीज अस्पताल से भला-चंगा हो कर घर आ जाता है तो हम दुनियॉ भर में उस डाक्ॅटर की तारीफ के पुल बांधने के साथ उस की जेब नोटो से भर देते है। लेकिन किसी बदनसीब की मौत उसी डॉक्टर की भूल के कारण हो जाए तो फिर मुलजिम डॉक्टर नही भगवान को माना जाता है। हर किसी की जुबान पर एक ही बात सुनने को मिलती है कि अगर भगवान ने बचाना ही होता तो कोई न कोई रास्ता तो जरूर निकल ही आता, वरना डाक्ॅटर ने तो अपनी तरफ से कोई कमी नही छोड़ी।
हम मे से कोई भी अभी इतना बड़ा जादूगर नही बन पाया कि हम भगवान की मर्जी के खिलाफ किसी को अपने मन मुताबिक सुख-दुख, व्यापार में तरक्की की गांरन्टी या लाखो-करोड़ो के फायदा होने का दावा कर सके। लेकिन फिर भी समाचार पत्रों में छपे विज्ञापनो को देख कर हम में से अनेक लोग 24 घंटे में हर प्रकार की कामयाबी, घर-परिवार का कलेश खत्म, किसी को भी वश करने के लिए टोने-टोटके करने वाले ढोंगीयों को हजारो रूप्ये का नजराना चढ़ा आते है। जबकि असल में हकीकत यह है, इन बेचारो को अपने अगले पल का भी मालूम नही होता कि उनके साथ क्या होने वाला है?
आजकल हमारे यहां अनेको स्वार्थी ढ़ोगी साधू-संत एवं ज्योतिषी तक भगवान के नाम पर अपनी दुकानदारी खूब चमका रहे है। हैरानगी की बात तो यह है कि भगवान के नाम को वस्तु की भांति बेचने और दुनियॉ को छलने में इंन्हे कोई शर्म महसूस नही होती। आज जिस और देखो ढोगी बाबाओं की बाढ़ सी आई हुई है। हर गुरू धर्म ग्रंन्धो की अपने मन मुताबिक व्याख्या करके भोली भाली जनता को ठग रहे है। जनता को पैसे से मोह खत्म करने के प्रवचन देने वाले खुद सिर्फ रूप्यों की भेंट ही स्वीकार करते है। आजकल तो कुछ पापी साधु वेश में जनसाधारण को लोभ-मोह और काम वासना से दूर रहने की बाते समझा कर खुद कालगर्ल सप्लायर का काम कर रहे है। समाज में देखे तो हर छोटे से छोटे साधु-संत के पास बड़े-बड़े आश्रम, मंहगी कारे और ढेरो धन-दौलत है, जबकि देश का एक बड़ा हिस्सा आज भी दो वक्त की रोटी का तरस रहा है। एक बात सोच-सोच कर हैरानी होती है कि हमारी सरकार के पास ऐसा कोई प्रवाधान नही है जिससे इन लालची, स्वार्थी, ढोंगी लोगो के खिलाफ कोई कानूनी कारवाई हो सके।
भगवान जो कुछ करता है हमारे भले के लिए ही करता है, कुछ लोगो को यह बात बिल्कुल अच्छी नही लगती। क्योकि उनकी दलील तो यही होती है कि हमें दुख देकर भगवान हमारी क्या भलाई कर रहे है? ऐसी बात कहने से पहले वो यह भूल जाते है कि यह सब कुछ हमारे अच्छे या बुरे कर्मो का फल भी तो हो सकता है। हम अपना खान-पान रहन-सहन कुदरती तरीके से जीना छोड, नतीजो की परवाह किए बिना अपनी जीवनचर्या को अपनी सुविधा अनुसार बनाते जा रहे है।
समाज में अच्छे लोग कम होते जा रहे है, दुष्ट लोगो की भीड़ बढ़ती जा रही है। हम मानें या न मानें हमारा देश विनाश की और बढ़ रहा है। घर-घर में रावण जन्म ले रहे है। अब ढेरो रावणों को खत्म करने के लिये इतने राम कहां से आऐगे यह तो भगवान ही जाने। हर कोई पैसा कमाने की होड़ में पागलो की तरह दौड़ रहा है। इन्सान की इच्छाऐं हर दिन बढ़ती ही जा रही है। ऐसे में वो यह भी भूल जाता है कि गलत तरीके से कमाया गया पैसा एक दिन उसके जीवन में बहुत बड़ी परेशानी खड़ी कर सकता है। उस समय हम अपने आप को पाक साफ बता कर सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ देते है। इन हालात में तो जौली अंकल की आत्मा से यही टीस उठती है :
तन के उजले मन के काले, ऐ मालिक तेरे यह दुनियॉ वाले
शुक्र है कि तू परदे में है, वरना तुझे भी बेच डाले, तेरे यह दुनियॉ वाले।    

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