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गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

कोई नही है तेरा

भगवान ने पति पत्नी का रिश्ता भी न जानें किस मर्हुत में बनाया था कि हर मौसम, हर महौल में अनकी नोंक-झोंक चलती ही रहती है। मुद्दा चाहे कोई भी हो, दोनों में से कोई भी झुकने को अपनी शान के खिलाफ समझता है। कुछ दिन पहले इसी तरह की बहस वीरू और बंसन्ती में शुरू हो गई। वीरू ने अपनी मर्दानगी दिखाते हुए कहा कि मैं कह रहा कि आज कहैन्यां नही आयेगा। बंसन्ती अपनी बात पर अड़ी हुई थी कि तुम कुछ भी कहते रहो, परन्तु कहैन्यां जरूर आयेगा। वीरू ने अपनी पतियों वाली अक्ड़ दिखाते हुए कहा कि जब मैं कह रहा  हूँ तो तुम मेरी बात क्यूं नही मान लेती? परन्तु बंसन्ती भी कहां हार मानने वाली थी उसने कहा कि मैने जब-जब कहैन्यां को सच्चे दिल से बुलाया है वो हमेशा मेरी मदद के लिये आया है। अब वीरू को थोड़ा सा झटका लगा और उसने बंसन्ती से पूछा कि तुम किस कहैन्यां की बात कर रही हो। बंसन्ती ने हाथ पटकते हुए कहा कि तुम मेरी बात छोड़ो पहले तुम बताओ कि तुम किस कहैन्यां के बारे मे सोच रहे थे? वीरू ने अपनी अवाज थोड़ी नर्म करते हुए कहा कि मै तो अपने दूध वाले कहैन्यां की बात रहा था। वो असल में कल ही कह गया कि आज दूध देने नही आयेगा। बंसन्ती ने अब हंसते हुए कहा कि मैं तो अपने बांसुरी वाले कृष्ण कहैन्यां की बात कर रही थी। अपने पराये की इस पहेली को जब-जब हम सुलझाने का प्रयास करते है वह उतनी ही और अधिक उलझती जाती है। इस उधेड़ बुन में हमारी आंखों पर ऐसा पर्दा छा जाता है कि हम सारी उम्र परायों को अपना और पल-पल संग रहने वाले और हर मुश्किल में हमारी लाज बचाने वाले भगवान को कभी भी अपना बनाने का कोई प्रयत्न नही करते।
इंसान निजी स्वार्थ हेतू सारी जिंदगी दुनियां के झूठे रिश्तों को ही अपना सबसे नजदीकी और करीबी समझता रहता है। ठेस तो उसे उस दिन लगती है जब किसी दिन अचानक कोई दुख या कष्ट उसे बुरी तरह से घेर लेता है। जिस तरह समुंद्री जहाज में खराबी आते ही चूहे सबसे पहले उसे छोड़ कर भागने लगते है, ठीक उसी तरह कष्ट के समय हमारे सगे रिश्तेदार भी ऐसे गायब हो जाते है जैसे गधे के सिर से सींग। घर में जब कभी कोई उत्सव हो तो एक ही रात में सैकड़ो बोतले शराब उड़ाने वाले हमारे दूर-नजदीक के कई हमदर्द जाग उठते है। परन्तु यदि किसी को अगले ही दिन एक-दो बोतल खून की जरूरत आन पड़े तो दूर-दूर तक ऐसे हमदर्दो का साया तक दिखाई नही देता। यह सब कुछ अपने साथ घटते देख भी हम इस बात को नही समझ पाते कि हमारे यह झूठे रिश्ते सिर्फ एक छलावे से बढ़ कर कुछ नही। हमें यदि अपने जीवनकाल में सुख ही सुख मिलते रहे तो हमे बहुत अच्छा लगता है, लेकिन जरा सा दुख आते ही हम भगवान को उसके लिये दोषी कहने से भी नही चूकते। उस समय हम यह भी भूल जाते है कि भगवान यदि हमें गर्मीै देता है तो हमारे लिये बरसात भी कोई और नही वोहि करता है। भगवान यदि किसी को मौत देता है तो उसे जीवन भी भगवान ही देता है। जो पापी लोग समाज में हर तरफ जहर फैला रहे है वो तो हमें अपने सगे रिश्तेदारो से बढ़ कर दिखाई देते है जबकि हर किसी को अमृत पिलाने वाले भगवान को हम पराया समझते है। सदियों पुराने इतिहास के पन्नों को कभी कोई गौर से देखने का प्रयास करे तो एक ही तथ्य सामने आता है कि साथ-साथ जीने मरने की कसमें खाने वाले सगे-संबधी किसी के साथ मरना तो दूर जीवनकाल में भी साथ नही निभा पाते।
हमसे कुछ लोग पैसे के लोभ और अपने नियत कर्म से जी चुराने के लिये जरूर भगवान के नाम का झूठा साहरा ले लेते है। परन्तु एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि कभी किसी ने पवित्र मन से यह इच्छा नही जताई कि वो एक सच्चा भक्त बन कर भगवान का बन सके या उसे अपना बना सके। भगवान से सच्चा प्यार करने का यह मतलब कभी नही होता कि आप दुनियां की जिम्मेंदारीयों को अनदेखा कर दे। ऐसे लोग जो पूर्ण रूप से भगवान में विश्वास नही रखते वो अक्सर किसी न किसी मानसिक परेशानी के कारण बीमार रहते है। आज आम आदमी भगवान से अधिक अपने खान-पान और रहन सहन को महत्व देने लगा है। ऐसा इसलिये भी कहा जा सकता है क्योंकि इंसान भगवान को तो कभी-कभार भूले भटके याद करता है लेकिन अपना खाना पीना कभी नही भूलता। इंसान यह सब कुछ इसलिये करता है क्योंकि न तो हम अपनी इंन्द्रीयों पर काबू रख पाते है और न ही हम अपने शरीर के अधिकतर सोये हुए भागो को जगाने का प्रयत्न करते है।
जो लोग पूर्ण रूप से जागरूक होते है उन में सभी देवताओ जैसे सद्गुण और ज्ञान आ जाता है। इस प्रविृत के लोग यह जान लेते है कि सत्य ही भगवान का दूसरा रूप है। दुनियां की कोई ताकत उसमें और कुछ सुधार नही कर सकती। भगवान से बढ़ कर किसी भी लोक में कोई खूबसूरत नही हो सकता। यदि भगवान में किसी प्रकार की कोई कमी होती तो शायद दुनियां में कोई भक्त भी न होता। हमारी श्रद्वा जहां इतनी कोमल और कमजोर है कि वो बार-बार टूटती है वही इसमें इतनी ताकत है कि सच्ची श्रद्वा भगवान को भी भक्त के सामने झुकने पर मजबूर कर देती है। ऐसा तभी मुमकिन हो सकता है जब हमारी भक्ति में इतनी शक्ति हो कि रोजमर्रा की परेशनीयां तो क्या चाहे हमारे जीवन में आंधी तूफान भी आ जाऐं लेकिन हमारी भक्ति नही टूटनी चहिये। भगवान तो सिर्फ आपके मन को देखता है, मन को उसके चरणों में अर्पण करते ही हमारा मेल भगवान से हो जाता है। जो दिन रात इस तरह से भगवान की भक्ति में रम जाते है, उन्हें ही दुनियां संत-महात्मा का दर्जा देती है।
ऐसे में जौली अंकल भी भगवान के चरणों में एक ही प्रार्थना करते है कि वो हम सभी को इतनी समझ जरूर दे कि हम अच्छे बुरे के साथ यह भी समझ सके कि हमारा सच्चा हितेषी कौन है? पीर-फकीर तो अपने रूहानी अंदाज में सभी को धर्म की राह पर चलने का सदेंश देते हुए यही कहते है कि ऐ इंसान तू जब तक मेरा-मेरा नही छोड़ेगा उस समय तक नर और नरायण का पवित्र रिश्ता नही कायम हो पायेगा। नरायण के बिना नर अज्ञान के अंधेरे में भटकता रहता है। ज्ञान के इस प्रकाश को जानने के बाद तो मन से यही आवाज उठती है कि इस जग में हरि के बिना कोई नही है तेरा। 

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