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गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है

घर दफतर, बस स्टैंड हो या रेलगाड़ी का सफर, कुछ लोग कभी भी अपनी जुबां पर काबू नही रख पाते। चुगलखोर किसी की खुशी में या किसी के मरने पर जाएं वो अड़ोस-पड़ोस वालों की चुगली किये बिना नही रह सकते। पूरे मुहल्ले के किसी बच्चे की रिश्ते की बात को अंतिम रूप में पहुंचने से पहले ही आधी-अधूरी जानकारी के साथ उस रिश्ते में बीसीयों कमियां गिनवा देगे। साथ में यह कहना कभी नही भूलते कि मैने तो आपको अपना समझ कर यह फर्ज पूरा किया है। अब आप आगे किसी से यह सब कुछ न कहना। ऐसे महान लोगो का बिना किसी मुद्दे के घंटो बोलने के बाद भी शोले फिल्म की बंसन्ती की तरह दावा होता है कि हमें तो फालतू बात करने की आदत तो है नही।
हर बार चुगली शुरू करने से पहले चुगलखोर एक बात जरूर कहते कि मुझे तो चुगली करने की आदत तो है नही, लेकिन क्या करू कि सच देख कर बर्दाशत भी तो नही होता। दुसरो की बुराई और अपनी तारीफ का बार-बार बढ़ा-चढ़ा कर ब्खान केवल इसलिये करते है कि सामने वालों पर उनके बड़पन का अच्छा प्रभाव पड़ सके, लेकिन असल में इसका असर बिल्कुल उल्टा होता है। अपनी बात को इस प्रकार कहने से सदैव अपना घमंड ही झलकता है और यह तो हर कोई जानता है कि घमंड का अंधकार, असली अंधकार की तुलना में अधिक खतरनाक होता है।
कुछ लोग अपनी चुगली करने की आदत से मजबूर होकर बिना सिर पैर की बातों के साथ झूठ बोलने से भी परहेज नही करते। उस समय वो यह भी भूल जाते है, कि अब एक झूठ को छिपाने के लिये अब उन्हें दस झूठ और बोलने पड़ेगे। आदमी कितना भी चतुर क्यूं न हो, उसके झूठ की पोल एक न एक दिन सबके सामने खुल ही जाती है। सत्य बोलने वाले को कुछ पलों के लिये थोड़ी तकलीफ तो जरूर झेलनी पड़ती है, परन्तु लंबी अवधि में सदैव ताकत उसी की बढ़ती है। इसलिए जीवन में सदा ही झूठ बोलने से बचने में अक्कलमंदी है।
भगवान ने हमारे शरीर में वजन के हिसाब से शायद सबसे हल्का अंग हमारी जुबान को ही बनाया है, लेकिन अधिकाश लोग इस पर फिर भी काबू नही रख पाते। हम अक्सर भूल जाते है कि भगवान ने हमारी एक जुबान के साथ दांतो की शक्ल में 32 कठोर पहरेदार भी बिठाये हुऐ है। इसके बावजूद मूर्ख लोग बिना सोच-विचार के बोलते रहते है। जबकि विद्वान लोग कोई भी बात बोलने से पहले दस बार पहले सोचते है। उन्हे सदा यह चिंता सताती रहती है कि उनके द्वारा बोला गया एक भी शब्द किसी के मन को दुखी तो नही कर रहा।
हम सभी जानते है कि दुनियां का सबसे बड़ा महाभारत का युद्व भी सिर्फ चंद शब्दों के बिना सोच-विचार के बोलने से ही शुरू हुआ था। जिस प्रकार चंद सिक्के मिल कर तो बहुत शोर मचाते है, परन्तु बड़े-बड़े हजारों नोट खामोशी से चुप-चाप अलग से एक तरफ पड़े रहते है, ठीक उसी प्रकार मूर्ख लोग इन सब चीजों की परवाह न करते हुए बिना सोचे ही अपने तीरो के बाण चला देते है। आजकल हर कोई दूसरो से पहले अपनी झूठी-सच्ची तारीफ करके घंमड महसूस करता है। बिना अपने अंदर झांके दूसरो का मार्गदर्शन करने की प्रयत्न करते है।
अक्सर देखने में आता है कि कई बार इस प्रकार की चुगलीयों से पैदा हुई छोटी सी समस्यां हंसते खेलते परिवारों की खुशीयों में आग लगा देती है। भगवान न करे कि बदजुबानी की वजह से आपके परिवार में कभी कुछ समस्याएं आ ही गई है, तो व्यर्थ की चिंता करने से उनका कोई हल नही मिलने वाला। आज तक कभी भी किसी समस्यां का हल परेशान होने से नही मिला।
अधिक बोलने वालो की अपेक्षा मौन रहने से हमारे अंदर ऊर्जा का संचार होता है। मौन रहने से परिवारिक कलह कलेश बहुत हद तक कम हो जाते है। यदि सामने वाला गुस्से में हो तो आपके चुप हो जाने से उसका गुस्सा भी कुछ पलों में शांन्त हो जाता है, और कोई भी कार्य बिगड़ने से बच जाता है। आप ने आमतौर पर देखा होगा कि बहुत अधिक बोलने वालों की भीड़ में कभी भी अच्छे लोग नही होते और अच्छा बोलने वाले लोगो की कभी भीड़ नही होती। हर कोई समझता है कि इतिहास में केवल उन महान कर्मीयों का नाम दर्ज है, जिन्होने सदा ही संसार के खिलाफ अकेले खड़े होकर सत्य बात कहने की हिम्मत की है।
जौली अंकल तो सभी पहलूओं को परखने के बाद एक ही बात कहते है कि दूसरो को आंकने से पहले अपने आप को आंके। खुद झूठ का साहरा छोड़ कर सत्य बोलना आना चाहिए। यदि आप स्वयं को सदा ही दूसरो से ऊंचा समझते रहेगे तो आप अवश्य ही अंहकार औरर् ईष्या के शिकार हो जाएंगे। अब और अधिक न बोलते हुए अपनी बात यही खत्म करता  हूँ, क्योंकि अब अगर मैं कुछ भी बोंलूगा तो आप बोलोगे कि बोलता है।   

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