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गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

अजाद पंछी

गांव के एक बर्जुग ने जब गप्पू को दिन में पेड़ के नीचे चारपाई डाल कर सोते हुए देखा तो उससे बोले कि भाई देखने में तो अच्छे तगड़े नजर आ रहे हो। ऐसे में फिर कोई काम काज करने की बजाए दिन में क्यूं सो रहे हो? गप्पू ने कहा कि काम-काज करने से क्या होगा? बर्जुग ने समझाया कि मेहनत करने से आदमी अच्छा पैसा कमा सकता है। गप्पू ने फिर से सवाल कर दिया कि ताऊ अगर मैं कुछ पैसा कमा भी लूंगा तो क्या होगा? उस बर्जुग को लगा कि यह इंसान न जाने किस मिट्टी का बना हुआ है कि दुनियादारी की किसी बात को समझता ही नही। फिर भी उसने गप्पू को समझाना शुरू किया कि पैसे से आदमी अच्छा घर बाहर बना सकता है, अपने लिए हर तरह सुख सुविधाऐं जुटा सकता है। सामने बनी खूबसूरत इमारत की और इशारा करते हुए उस बर्जुग ने कहा कि तुम भी ऐसी बढ़िया इमारत बना कर शांति के साथ रह सकते हो। अब गप्पू ने उस बर्जुग को बताया कि वो सामने वाली सारी इमारत मेरी ही है। उसमें जो बैंक का कार्यलय देख रहे हो वो भी मेरा ही है। इसीलिये मैं यहां खाटियां डाल कर आराम से बैठा हुआ  हूँ। यह किस्सा उस गप्पू का है जिसे उसके पिता ने उसकी कुछ गलतीयों के कारण उसे घर से निकाल दिया था। कुछ बरसों पहले के दिनों को याद करे तो गप्पू की यह कहानी कुछ इस प्रकार से है।
बात उन दिनों की है जब गप्पू कालेज में पढ़ रहा था। उसके पिता बांकें बिहारी ने किसी न किसी जुगाड़ से अपने बेटे की स्कूल की पढ़ाई तो पूरी करवा दी, परन्तु अब वो पिछले कई साल से कालेज में ही अटका हुआ था। आज उनके बेटे गप्पू का फिर से नतीजा आने वाला है, और वो अभी तक घोडे बेच कर सो रहा है। पूरे घर में तनाव का महौल है। क्योंकि इससे पहले भी गप्पू कालेज में दो बार फेल होकर अपने घरवालों को छोटेमोटे झटके दे चुका है। थोड़ी देर बाद ही कम्पूयटर से नतीजा पता करवाया गया, तो वोही हुआ, जिसकी सारे परिवार को चिन्ता थी। सारे परिवार की मेहनत, मिन्नतें और प्रार्थना भी गप्पू के नतीजे के साथ फेल हो गई थी। गप्पू के पिता के शरीर में से तो जैसे किसी ने जान ही निकाल ली हो। इतने में मुहल्ले के सब से बड़े हितैषी मुसद्दी लाल जी सैर करते हुए वहां आ पहुंचे। घर में छाये मातम को देख कुछ देर तो चुप रहे, लेकिन ज्यादा देर चुप बैठना उनके स्वभाव में शामिल नहीं था।
माहौल की गम्भीरता को भांपते हुऐ उन्हाेंने सभी परिवार वालों को तसल्ली देनी शुरू की, आजकल ज्यादा पढ़ने लिखने से भी कुछ नहीं होता, सरकारी नौकरी तो वैसे ही किसी को मिलती नहीं, और प्राईवेट कम्पनियों वाले तो दिन रात बच्चों का खून चूसते है। आजकल बहुत से ऐसे काम है जिनमें बिना अधिक पढ़ाई के लोग लाखों रूपये कमा रहे हैं। अपनी आदतानुसार मुसद्दी लाल जी बिना मागें ही अपनी सलाह और मश्वरे का पिटारा खोल कर बैठ गये। बांकें बिहारी जोकि गप्पू के नतीजे से बिल्कुल टूट चुके थे, टेढ़ी आंख उठा कर मुसद्दी लाल की तरफ ध्यान दिये बिना न रह सके। इससे पहले कि वो मुसद्दी लाल को जाने के लिये कहते, गप्पू की मम्मी गर्मा-गर्म चाय की प्याली मुसद्दी लाल को थमाते हुऐ बोली भाई साहब हमारे गप्पू के लिये ऐसा क्या काम हो सकता है, जो वो बिना ज्यादा पढ़ाई-लिखाई के आसानी से कर सकता है?
भाभीजी अगर आप दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची देखो तो उनमें से अधिकतर लोग पढ़ाई-लिखाई में फिसड्डी ही रहे हैं। दुनिया का सबसे अमीर आदमी बिल-गेट जो शायद कम्पूटयर के कुछ साफ्ट्वेयर वगरैह बनाता है, उसे तो बार-बार फेल होने पर स्कूल से निकाला गया था। सचिन, जो आज लाखो-करोड़ों रूपये का मालिक है, वो अगर पढ़ा लिखा होता तो जरूर किसी दफ्तर में क्लर्क की नौकरी ही कर रहा होता। मुसद्दी लाल जी ने चाय की चुस्कियां लेते हुए अपनी बात जारी रखी। भाभीजी अब आप यह मत कहना, कि आप हमारे देश के राष्ट्र्रपति रह चुके ज्ञानी जैल सिंह के बारे में कुछ नहीं जानती, वो तो सिर्फ चार जमात तक ही स्कूल गये थे। उससे आगे तो पढाई की रेखा उनके नसीब मे थी ही नहीं। अब इससे ऊंचा पद तो हमारे देश में कोई है नहीं, जहां तक हमारे गप्पू ने पहुंचना है।
मुझे समझ नहीं आता आजकल मां-बाप हर समय डंडा लेकर बच्चों के पीछे क्यूं पड़े रहते हैं। आखिर नसीब भी तो कोई चीज है या नहीं? दुनिया के अधिकतर वैज्ञानिकों ने जो भी आविष्कार किए हैं, वो स्कूलों में बैठ कर नहीं पढे। यहां तक की महात्मा बुद्व को भी ज्ञान किसी स्कूल या कालेज में नहीं बल्कि एक पेड़ के नीचे बैठने से प्राप्त हुआ था। इस बात को तो सारी दुनिया जानती है। बांकें बिहारी जो मुसद्दी लाल की बिना सिर पैर की बातें सुनकर मन ही मन कुढ़ते हुए बोले कि तुम मेरे बेटे को बिना पढ़ाई के किस देश का राष्ट्रपति बना सकते हो? क्या हमारे देश में सारे पढे लिखे लोग बेवकूफ है? यदि पढ़ाई लिखाई का कोई महत्व नही होता तो सरकार हर साल करोड़ों रूपये खर्च करके नये स्कूल-कालेज किसके लिये बनवाती है? क्या बडे अफसर, डाक्टर, इन्जीनियर बिना पढ़ाई के ही ऊचें पदों पर पहुंच जाते है?
मुसद्दी लाल ने बांकें बिहारी के टेडे तेवरों को देख कर अपनी जुबान को थोड़ा नर्म करते हुए कहना शुरू किया भाई साहब मेरा कहने का मतलब तो सिर्फ इतना ही था कि हर बच्चा तो हमेशा अव्वल नही आ सकता न। कुछ बच्चे पढ़ाई में असफल रहने के बावजूद भी अपनी मेहनत से अच्छा कारोबार जमां लेते है। आप एक बात को समझने की कोशिश करो कि आज की युवा पीढ़ी को हर प्रकार के आधुनिक और नवीनतम मोबइल फोन से लेकर कार आदि तो सब कुछ चहिये, लेकिन वो न तो घरवालों के दवाब और न ही किसी बॉस के प्रभाव के नीचे रह कर काम कर सकते है। यह तो अजाद पंछी की तरह खुले आसमान में दूर तक उड़ना चाहते है।
आपने यदि अपने किरयाने की दुकान से निकल कर बाहर की दुनियां देखने का प्रयास किया होता तो आपको पता लगता कि मेहनत मजदूरी के अलावा आज की पीढ़ी के सामने रोजी रोटी कमाने के कितने ही सुदंर विक्लप उपलब्ध है। लड़के तो लड़के आज की लड़किया भी घर में बैठे हुए कम्पूयटर से जुडे कम्पनियों के कई प्रकार के कार्ड, तालिका, सूची पत्र, डैटा एंटरी और नामावली आदि बनाने और डिजाईन करने का काम कर रहे है। इसी के साथ किसी खास क्षेत्र में अच्छी पकड़ रखने वाले लेखन कार्य से अच्छी खासी आमदनी कर लेते है।
बहुत सारे फैक्ट्री वाले अपने उत्पाद की बिक्री को आकर्षक और लाभकर स्कीमों के जरिये पार्ट-टाईम काम करने वालों के माध्यम से ही ग्राहको तक पहुंचाना पंसद करते है। ऐसा करने से वो अपने दफतर में मंहगी जगह, बिजली-पानी और अन्य कई प्रकार के खर्चो से बच जाते है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि वो लोग यह सारा काम लोगो को अपने दफतर में नियुक्त करके मोटी तनख्वाह देने की बजाए कमीशन पर करवाने को प्राथमिकता देते है, इससे बड़ी-बड़ी कम्पनियों पर आर्थिक बोझ भी नही पड़ता। जो जितना मुनाफा कम्पनी को लाकर देता है, कम्पनी उसी में से उसकी कमीशन का हिस्सा उसको दे देती है। फिर आपका तो अपना किरयाने का इतना बड़ा कारोबार है। पूरे शहर में आपके नाम की तूती बोलती है। अगर गप्पू कालेज की पढ़ाई पूरी नही भी कर पाया तो भी अपने ही घर में काम धंधे की कोई कमी तो है नही। यह बात सुनते ही अब तक एक कोने में चुपचाप सभी लोगो की बाते सुन रहा गप्पू बोला कि चाहे कुछ भी हो जाये मैं किरयाने की दुकान में तो कभी भी काम नही करूंगा। गप्पू की इस बात ने तो जैसे आग में घी डालने का काम कर दियां।
बांकें बिहारी ने गप्पू को डांटते हुए कहा, कि यदि तुम्हारी यह सोच है कि तुम मेरी दुकान पर काम नही करोगे तो मैं तुम्हें दिल्ली के कनाट प्लेस में दफतर खोल दूंगा तो ऐसे ख्वाब देखना छोड़ दो। मेरे पास न तो इतनी दौलत है और न ही हिम्मत। गप्पू ने अपने पिता से कहा कि अब न तो मुझे और आगे कोई पढ़ाई करनी है और न ही मुझे आपकी दौलत में से कुछ चहिये। यदि आप कुछ दे सकते है तो मुझे थोड़ा सा वक्त दे दो। एक दिन मैं आपसे अच्छा कारोबार कर के दिखा दूंगा।
अगले दिन समाचार पत्र के एक विज्ञापन में होटल में क्लर्क की नौकरी का विज्ञापन देख कर गप्पू भी अपनी किस्मत आजमाने के लिये वहां पहुंच गया। इंन्टरव्यू के दौरान होटल वालो ने जब गप्पू के प्रमाण-पत्र देखे तो पाया कि वो कालेज में दो बार फैल हो चुका है। हालाकि उन्हें गप्पू में वो सभी खूबीयॉ नजर आई जिनकी उन्हें जरूरत थी। होटल वालो ने वादे के मुताबिक गप्पू को आने-जाने के किराये के रूप में 250 रूप्ये देकर उसे कोई भी नौकरी देने की बजाए बाहर का रास्ता दिखा दिया। बुझे हुए मन से घर वापिसी में भूख और प्यास के कारण वो एक नारियल पानी वाले के पास रूक गया। ठंडा और स्वादिष्ट नारियल पानी पी कर गप्पू के शरीर में फिर से जैसे जान आ गई। इससे पहले उसने कभी भी इतना अच्छा और स्वादपूर्ण नारियल पानी नही पीया था। जब उसने दुकानदार को पैसे दिये तो उसने पाया कि यह नारियल तो हमारे इलाके से कही बढ़िया और बहुत ही सस्ता है। गप्पू ने कंम्पनी से मिले 250 रूप्यो के नारियल खरीद लिये और अपने शहर में आकर कुछ ही दिनों में उन्हे अच्छे मुनाफे में बेच दिया। फिर तो यह सिलसिला लगातार ही चल निकला। अब तो गप्पू ट्रक भर कर नारियल मंगवाने लगा था। पूरे इलाके में उसके नारियल सबसे बेहतर और उमदा किस्म के माने जाते थे। पुरानी कहावत है, कि पैसा आते ही इंसान को अक्कल भी अपने आप आ जाती है। कल तक बेरोजगार गप्पू आज बहुत बड़ा समझदार सेठ और एक कामयाब व्यापारी बन चुका था।
एक दिन जब उसके बैंक का मैनेजर उसके घर खाने पर आया तो उसने इतना बड़ा घर देख कर गप्पू को सुझाव दिया कि यदि तुम इसके ऊपर अपने रहने के लिये एक और मंजिल बना लो तो नीचे वाले घर को किसी बैंक को किराये देकर अच्छी खासी आमदनी ले सकते हो। अगर तुम चाहों तो मैं इस काम के लिये तुम्हें अपने बैंक से ऋृणमुक्त कर्ज भी दिलवा सकता  हूँ। गप्पू ने इतनी बढ़ियां ऑफर को अमली जामा पहनाने में एक पल की भी देरी नही की। आज उसी घर में रहते हुए बैंक से किराये के रूप में एक मोटी रकम हर महीने उसकी जेब में आने लगी थी।
जब मुसद्दी लाल को गप्पू के कारोबार के बारे में सारी जानकारी मिली तो वो उसके लिये कई बड़े घरानों से उसकी शादी के लिये प्रस्ताव लाने लगे। रिश्ते की बातचीत के दौरान एक सज्जन ने जब गप्पू से उसकी पढ़ाई-लिखाई के बारे में जानना चाहा तो उसने बताया कि वो कालेज पास नही कर पाया। अब उस सज्जन ने कहा अभी तो तुम ने कालेज की पढ़ाई पूरी नही की तो आपका व्यापार इस कद्र फैला हुआ है यदि आपने कालेज अच्छे से पास कर लिया होता तो फिर तो आप न जानें किन बुलदिंयो तक पहुंच जाते। गप्पू ने मुस्कराहते हुए कहा यदि मैने कालेज पास किया होता तो शायद मैं आज भी अपने पिता की किरयाने की दुकान संभाल रहा होता।
इस बात को कोई नही नकार सकता कि अच्छी पढ़ाई लिखाई का जीवन में बहुत महत्व होता है, लेकिन यह जरूरी नही कि आप उसके बिना जीवन में तरक्की कर ही नही सकते। बहुत से ऐसे क्षेत्र है जहां पढ़ाई लिखाई से अधिक मेहनत अपना रंग दिखाती है। कई बार किसी काम को सिध्द करने के लिए शुरूआती तौर पर मिलने वाली असफलता से हमें कभी भी घबराना नही चहिये। सफलता का सीधा संबंध परिश्रम से होता है और जो व्यक्ति परिश्रम से डरता है वह कभी सफलता नही पा सकता। मुसद्दी लाल ने गप्पू के पिता को समझाते हुए कहा कि जो सच्चे मन से किसी काम को करने के लिए पहल करते है वह अजाद पंछी की तरह एक न एक दिन कामयाबी की राह पर अपना रास्ता बना ही लेते है।

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