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गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

घातक एवं लाइलाज बीमारी है डी.वी.टी

आज के तेजी से बदलते इस युग में इंसान हर प्रकार के रिश्तो की अहमियत को भूलकर उसे पैसे की कसोटी पर परखने लगा है। आज आम आदमी चाहें किसी नौकरी में हो या व्यापार से जुड़ा हो, उसका स्वभाव हर चीज को पैसे से तौलने का बन गया है। किसी भी नए रिश्ते को बनाने से पहले हम कई बार सोचते है कि हमें आने वाले समय में इससे क्या-क्या लाभ हो सकता है? बड़े-बर्जुग अक्सर कहते है कि एक मां अकेले 10 बच्चो को पाल सकती है, लेकिन दस बच्चे मिल कर आज एक मां को नही पाल सकते। आज यह हकीकत किसी से छिप्ी हुई नही है, आए दिन हर तरफ यही सब कुछ देखने को मिल रहा है।
बिखरते परिवारो के कारण मां-बाप को जीवन की ढ़लती शाम के अखिरी दिन किसी अंधेरे कमरे में या किसी सरकारी संस्था के रहमोकर्म पर गुजारने पड़ते है। समाज में सुख-सुविधाओं के साथ इंसानो की भीड़ तो बढ़ रही है, लेकिन बड़े शहरो में खास तौर से हर इंसान अकेला और असहाय होता जा रहा है। अपराध की दुनिया के ग्राफ को देखे तो लगता है कि खून के रिश्तो के मायने बिल्कुल बदल चुके है। इन हालात में भी कुछ लोग ऐसे है जो अपने जीवन की लड़ाई लड़ते हुए भी समाज में अपना सराहनीय योगदान दे रहे है।
इस लेख के माध्यम से हम बनते बिगड़ते रिश्तों के साथ-साथ आपको डी.वी.टी. (Deep Vein Thermbosis) जैसी घातक एवं लाइलाज बीमारी के बारे में जानकारी देना चाहेगे। इस बीमारी का जिक्र करना इसलिये भी जरूरी है क्योकि हमारे देश में अधिकतर लोगो को इस बारे में कुछ भी जानकारी नही है। इसी बीमारी से पीढ़ित ऐसे ही एक सज्जन की जिंदगी के खास पहलूओं से परिचय कुछ इस प्रकार है।
एक दिन टांगो में के दर्द का इलाज करवाने जब वह अस्पताल गये तो डॉक्टरो ने जांच करने के बाद पाया कि वो डी.वी.टी जैसी लाईलाज बीमारी से पीढ़ित है। इस बीमारी में टांगो की नसें फूल जाती है और उनमें खून जम जाता है। जिससे खून का दौरा रूक जाता है। हमारे शरीर की बनावट ऐसी है कि पूरे शरीर में खून का बहाव समान रूप से होता रहता है। खून को पैरो से ऊपर की और गुरूत्वाकर्षण के विपरीत चढ़ाने के लिये इन नसों में लगे वाल्व पंप की तरह काम करते है। यह वाल्व खून को ऊपर चढ़ाने के बाद उसे पैरां की तरफ वापस नही आने देते। कहने और सुनने में यह साधारण सी बीमारी है किंन्तु केवल अमरीका में हर साल 50 हजार से अधिक लोगो को यह प्रतिवर्ष मौत की नींद सुला देती है।
विदेशो में अधिक ठंड और लंबे हवाई सफर के कारण यह बीमारी बहुत आम है। लेकिन हमारे देश में हर प्रकार के मौसम और अधिक गर्मी के कारण बहुत कम ही मरीज देखने को मिलते है। इस बीमारी में जब यह वाल्व बंद हो जाते है तो खून हृदय की और लौटना बंद हो जाता है। जिस कारण हर समय दिल का दौरा पड़ने का खतरा बना रहता है। टांगो में हर समय असहनीय दर्द और पैरो में सूजन से मरीज को बहुत ही तकलीफ होती है। इस बीमारी से पीढ़ित मरीजो का किसी किस्म की भागदोड़, चलने-फिरने, खास तौर से सीढ़िया चढ़ने से जान तक को खतरा हो सकता है। सबसे हैरानगी की बात तो यह है कि विज्ञान की इतनी तरक्की के बावजूद अभी तक इस बीमारी का सारी दुनियां में अभी तक कोई इलाज संभव नही है। ऐसे में डी.वी.टी के मरीजों के पास सारा दिन दुख-दर्द के साथ सोच में डूबे रहने के इलावा कोई चारा नही बचता।
जैसा कि समय-समय पर समाज में साधु-संतो के इलावा कुछ जनसाधारण भी हमारे जीवन में ऐसी छाप छोड़ जाते है जोकि हम सभी के लिये प्रेरणस्रोत बन जाते है। ऐसे लोग अपने दुखो और परेशानीयों से घबराने की जगह दूसरे लोगो के सामने हर हाल मे जीवन जीने की मिसाल कायम कर देते है। ऐसे ही एक शक्स इस बीमारी से पीढ़ित होने के बावजूद दूसरे लोगो के दुख दर्द को कम करने के लिए हंसने-हसाने की एक मुहिम शुरू की है। आज देश के कई जाने-माने समाचार पत्रों में उनके द्वारा लिखे हुए हंसी-मजाक और लेख से घर बैठे लाखो लोगो का मनोरंजन होता है। समय-समय पर रेडियो और टी.वी. के माध्यम से भी इन्हें अपने इस हुनर से जनता का भरपूर मनोरंजन करते देखा जा सकता है। हर वर्ग के हिंदी पाठको के लिये इन्होने दो चुटकलों की पुस्तके भी पेश की है। जी हां यह है आप सब के चहेते 'जौली अंकल'
भगवान न करे कि आपके जीवन में कभी कोई इस तरह की परेशानी आये। लेकिन जब कभी भी कोई दुख सताए तो जीवन से निराश होने की जगह कुछ ऐसा ही सार्थक और रचनात्मक प्रयास करने में जुट जाऐ, जिससे आप भी जौली अंकल की तरह दूसरों के जीवन में एक अमिट छाप छोड़ सके। एक बात सदैव याद रखो कि आप हंसोगे तो दुनियां आपके साथ हंसेगी, लेकिन यदि आप रोओगे तो आपको अकेले ही रोना पड़ेगा और रोने से कभी किसी सम्सयां का हल नही निकल सकता चाहे वो डी.वी.टी. जैसी घातक एवं लाइलाज बीमारी ही क्यूं न हो।   

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